Saturday 2 April 2016

कॉप यूनिवर्स प्रस्तुत करते हैं.....

         "जब वी मेट"

लेखक : अभिराज ठाकुर (सटकी खोपड़ी)

नोट : इस कहानी को समझने के लिए पूर्व मैं प्रकाशित कहानी सटकी का बदला  पढ़ें जो की हमारे ब्लॉग पर हैं


पिछले वृतांत मैं आपने पढ़ा की किस तरह से अभिराज ने ब्रम्हा से अपना बदला लिया...खैर इस चक्कर मैं ब्रम्हा की ठुकाई भी ज्यादा हो गयी.......! अब देखते हैं इस चंडाल चौकड़ी ने आगे और क्या गुल खिलाये....!

स्थान- ब्रम्हा का गेस्टहाउस...समय सुबह के 9 बजे....


हालाँकि डॉक्टर ने तो सुबह जाने को कहा था पर लौंडे जबरजस्ती रात मैं धर लाये उसे घर...! गेस्ट हाउस के हॉल मैं सब लाश की तरह पड़े हुए थे....प्रिंस फ़ोन हाथ मैं लिए सो रह था...शरिक भाई आधा मुँह खोल के सो रहे थे...!अभिराज तकिये को टांगो के बिच मैं दबा कर सो रहा था...कबीर भाई सजल और आकिब के बिच मैं लेटे थे...और दोनों ने कबीर भाई को आलिंगन कर रखा था.(हीहीही)....!

तभी कमल भाई ने हॉल मैं प्रवेश किया....

कमल : अरे उठ जाओ...भाइयो...सुबह हो गयी....!

कोई कहाँ सुनने वाला था...फिर कमल भाई ने कबीर भाई को जगाया....!

कबीर भाई आँखे मलते हुए आकिब और सजल को दूर धकेलते हुए उठ खड़े हुए..!

कबीर- गुड मॉर्निंग कमल भाई..!

कमल - सुप्रभात् मित्र कबीर....इन सब को भी उठाईये...मैं तब तक आप सब के लिए नाश्ते का प्रबंध करता हूँ....!

कबीर- जी कमल भाई....और हाँ ब्रम्हा उठ गया अब कैसा महसूस कर रहा है...???

कमल- हाँ वो ठीक है बहुत जल्दी ही उठ गया था..अभी बस अड्डे गया है किसी का फ़ोन आया था....!

कबीर - ओके कमल भाई!!!

कमल भाई हॉल से चले गए...उसके बार कबीर भाई ने जम्हाई लेते हुए पुरे हॉल पर नजर दौड़ाई...सबको देख कर उनके होंठो पर एक हलकी सी मुस्कान आ गयी...मन ही मन मैं सोचने लगे..." कमीने सोते हुए कितने मासूम लग रहे हैं...जागते मैं तो पूरा शहर ही सर पर उठा लेते हैं...!!!

उसके बाद उन्होंने प्रिंस को जगाया..और और सजल और आकिब की भी नींद खुल गयी थी......! प्रिन्स ने शरिक को उठाया...बचा अभिराज...! उसे प्रिंस ने कई बार हिलाया पर उसकी नींद नहीं खुली...

नोट: यहाँ एक बात बताना चाहूँगा...की सटकी नींद के मामले मैं बहुत अजीब है सोयेगा नहीं तो कहो 2 3 दिन न सोये पर अगर सो जाये और सोते से कोई उसे जबरजस्ती उठाये तो उसका पिटना तय है...!

खैर प्रिंस ने कई बार कोशिश की पर कोई फायदा नहीं...हुआ...!

प्रिंस-कबीर भाई ये सटकी को देखो..कुम्भकर्ण बना हुआ है...??

कबीर - अरे पहले कमीने के टांगो के बिच से तकिया खींचो...तब परियो के सपनो से बाहर निकलेगा कम्बख़त...(गुर्रर्र)....!

प्रिंस ने वैसा ही किया...जैसे ही उसने तकिये को जोर से खींच के अलग किया...हाल मैं भूचाल आ गया..! सटकी बिजली की रफ़्तार से खड़ा हो गया...आँखे फिर भी नहीं खुली थी उसकी... और जोर जोर से चिल्लाने लगा...!

अभिराज- कौन है जिसने अपनी मौत को दावत दी है...सामने आये उसके टुकड़े टुकड़े कर के...चीन के मार्किट मैं बेंच दूंगा...गुर्रर्र!

और इतना बोल के खड़े से फिर गिर पड़ा और खर्राटे भरने लगा...!

कबीर - साला पूरा नौटंकी है ये...😡😡

प्रिंस - हँसते हुए...भाई इसे किसने जोड़ा था ग्रुप मैं और क्या सोच के...लेकिन कुछ भी हो बंदा है रिसर्च करने लायक...( हा हा हा हा )...!
अब इसे फिर से जगाओ...!!...

कबीर- (कुछ सोचते हुए)....प्रिंस जरा मेरा बैग इधर लाओ...!

प्रिंस ने कोने मैं टेबल पर रखा कबीर का बैग उन्हें ला कर दिया....! कबीर ने उसमे से एक बोतल निकाली..!

प्रिंस - अरे कबीर भाई ये तो उस दिन आपके लिए मैं और सटकी लाये थे आपने अभी तक राखी ही हुयी है.!???

कबीर - हाँ उस दिन टाइम नहीं मिला....पर आज ये काम आएगी...!!

प्रिंस- वो कैसे???

कबीर - देखते जाओ...!!

फिर कबीर ने बोतल खोल के उसके ढक्कन मैं....थोड़ी रम भरी...और सटकी के नाक के पास ले गया...फिर तो जैसे सटकी मशीन बन गया जैसे जैसे कबीर ढक्कन ऊपर करता गया....सटकी आपने आप बिस्तर से उठता गया...! और जैसे ही पूरा खड़ा हुआ....प्रिंस से जग मैं रखा हुआ पानी उसके मुँह पर फेंक दिया....सटकी ने हड़बड़ा के आँखे खोली...और जैसे ही उसे समझ मैं आया ये करतूत प्रिंस की है उसने प्रिंस की तरफ छलांग मारी...!

प्रिंस- बचाओ कबीर भाई इस सटकी खोपड़ी से मुझे..!!

कबीर - शांत सटकेले मैंने ही कहा था उससे ये करने को....!!

अभिराज- गुर्रर्रर्रर्र..

ये सब चलने के दौरान आकिब सजल और शरिक जो फ्रेश होने को गए थे वो भी आ गए..!

शरिक -क्या भाई प्रिंस आपके चेहरे पर 12 क्यों बजे हुए हैं.....???

प्रिंस जो अभी भी कबीर के पीछे छुपा हुआ था...अब निकल कर सामने आया...

प्रिंस - अरे कुछ नहीं शरिक भाई ये सटकी को होश मैं ला रहे थे हम लोग...!

तभी कमल भाई ने 2 लोगों के साथ कमरे मैं प्रवेश किया...!

कमल- चलो भाइयो नाश्ता तैयार है...और कुछ नए मेहमान भी...!!

सजल - मेहमान???

तभी ब्रम्हा ने हॉल मैं प्रवेश किया और पीछे पीछे से एंट्री मारी आदित्य और विपुल ने...!

आकिब - ओहो आदि भ्राता और विपुल जी भी आ गए...!

कबीर- ओह तो ब्रम्हा इन्ही को लेने बस अड्डे गया था...स्वागत है भाइयो.!

फिर सब एक दूसरे के गले मिले...आदि और विपुल सब से पहली बार मिल रहे थे और बाकि लोग उनसे पहली बार...तो सब एक दूसरे को घेरे हुए थे...बातचीत का दौर चालू था..तभी कमल भाई की आवाज ने सबका ध्यान भंग किया....

कमल- अरे दोस्तों पहले पेट पूजा करलो फिर बातें बाद मैं करलेना...!

अभिराज- अरे हाँ यार मेरे तो पेट मैं " हाथी " दौड़ रहे हैं...!

आकिब- पर भ्राता अभिराज कहावत तो चूहे दौड़ने की है...!??

अभिराज- वो तो तुम जैसे " नाबालिग" लोगो के लिए है..हम बड़े लोग है...हमारे हांथी ही दौड़ते हैं...(हीहीही)...!

आकिब- देखिये भ्राता कबीर ये मुझे कल से यूँ ही परेशान कर रहे हैं....(बहूऊऊ)...!!

कबीर- अभिराज मजाक नहीं....उसे बुरा लगता है...अब आइन्दा मत बोलना...!

अभिराज- ओके कबीरा.!!!

फिर सब नास्ते के लिए बैठ गए...!

तभी शरिक बोल पड़ा..

शरिक - अरे भाई ब्रम्हा जी ये मेले के बारे मैं कुछ बताएं..???


ब्रम्हा : इसके बारे मैं कमल भाई आपको ज्यादा अच्छे से बता पाएंगे.......!

कमल भाई: पहले सब नाश्ता खत्म करो बातें मैं.....!

फिर सब जल्दी जल्दी नाश्ता खत्म करके कमल भाई को घेर कर बैठ गए....!


कमल : हाँ तो भाइयो अब सुनो....पहली बात तो ये जो मेला आप घूम के आये वो असली नहीं था ....!

आकिब : क्या मतलब श्रीमान????

अभिराज : अबे बिच मैं टपकना जरुरी है जन्नत....!

ब्रम्हा : (चौंककर) जन्नत ????

अभिराज : (जल्दी से).....म मेरा मतलब जन्नत मैं पहुंचा दूंगा फिरसे बिच मैं बोला तो...!

कबीर: सब शांत....हाँ आप बोलो कमल भाई....!

कमल : हाँ तो मैं कह रहा था की ये मेला जो आप घूम के आये हो वो तो बस ट्रेलर था यहाँ तो बस खाने पिने की चींजें मिलेंगी और बाकी मनोरंजन का समान टाइप असली मेला तो यहाँ से 1 km दूर तट पर पर लगता है जहाँ 3 नदियों का संगम हैं......और छोटा नहीं बहुत प्रसिद्ध और पुराना मेला लगता है असल मैं ये मेला हर साल शिवरात्रि के कुछ समय बाद लगता है......यहाँ एक पौराणिक महादेव का मंदिर मैं जिसकी वजह से ये मेला लगता है...ये मंदिर मैं नदी के बिच मैं है....इस मेले मैं देश भर से साधू संत और खासतौर से नागा बाबा आते हैं यहाँ लगभग 4 5km लंबा मजमा लगता है साधुओं का.....लोग बताते हैं इस मेले मैं हिमालय मैं तपस्या कर रहे लोग भी यहाँ आते हैं पर वो किसी को नजर नहीं आते क्योंकि वो अपने तपोबल से अपने मानस रूप को यहाँ भेजते हैं... बहुत से रहस्यों से भरा हुआ है ये मेला....आप सब एक बार तट वाला मेला जरूर घूमना चाहिए....कमल भाई ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा.....!

कबीर : वाह ये बहुत अच्छी बात बताई कमल भाई....अब मेरी भी तीव्र इच्छा हो रही है मेला देखने की.....!

तभी सजल और आकिब भाई का फ़ोन बजा....वो दोनों उठ कर बाहर निकल गए.....

ब्रम्हा : तो दोस्तों आज मैं आपको घुमाऊंगा....!

अभिराज : घूम हम खुद लेंगे तुम बस साथ चलो ताकि बाकी लोग भी अपना हिसाब कर सकें(अभिराज ने ये बात शरिक को आँख मरते हुए बोली)

ब्रम्हा : (हड़बड़ा कर )....क क्या मतलब....??

शरिक : अरे कुछ नहीं ब्रम्हा भाई ये तो बस हर वक़्त कुछ न कुछ बोलता रहता है ज्यादा ध्यान मत दिया करो....!!

ब्रम्हा :बात तो सही बोली शरिक भाऊ....

तभी सजल और आकिब बुरा सा मुँह बनाते हुए अंदर घुसे....!

कबीर : क्या हुआ तुम लोगो को???

आकिब : अरे भ्राता कबीर हमलोगो के घर से फ़ोन था एग्जाम आने वाले हैं इसलिए वो लोग पूँछ रहे की वापस कब आ रहे....!

शरिक : अब एग्जाम का मामला है तो कुछ नहीं कर सकते तुम लोगो को जाना ही चाहिए....!

ब्रम्हा : अरे यार ये दोनों चले जायेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा यार....😥.....

कबीर : कोई बात नहीं ब्रम्हा...कैरियर पहले जरुरी है अभी इनकी शुरुआत है अच्छे से नहीं पढ़ेंगे तो तेरे जैसे हो जायेंगे😂😂....!


ब्रम्हा : क्या कबीर भाई आप भी....गुर्रर्र

कबीर: अरे यार वो तो मैं माहोल हल्का करने की सोच रहा था....!

अभिराज: लो सुबह सुबह लोग पेट हल्का करते हैं....और ये जनाब माहौल हल्का कर रहे..... हीहीही.....

प्रिंस : भाई तू थोड़ी देर अपना मुँह बंद नहीं कर सकता????

अभिराज : आप हुक्म तो करें जनाब हम अपना मुँह हमेशा के लिए क्यों न बंद करले....तो कहियेगा....!

खैर इन सब नौटंकी के साथ....सभी लोग तैयार हुए....और तय हुआ की आकिब और सजल को बस अड्डे पर छोड़ते हुए....सब मेले के लिए निकल जायेंगे.....!
और पूरी टीम कबीर आकिब सजल प्रिंस शरिक विपुल और आदित्य और अभिराज....ब्रम्हा निकल लिए बस अड्डे के लिए....! कमल भाई को कहीं और जाना था इसलिए वो अपने काम से निकल गए

स्थान- बस अड्डा......

आकिब और सजल जा तो रहे थे....पर उनकी शक्ल देख के ऎसे लगता था जैसे हमेशा ककए लिए जा रहे हों....कुछ यही हाल बाकी लोगों का था....आकिब की आँखों मैं तो पानी आ गया था....सब एक दूसरे से ऎसे गले मिल रहे थे जैसे ये आखिरी मुलाकात हो....सिर्फ एक ऐसा बंदा था जिसे कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा था....और वो था अपना ठरकी अभिराज.....वो एक विदेशी महिला को ताड़े जा रहा था.....! जैसे ही बस आगे बढ़ी जिसमे आकिब और सजल जा रहे थे....अभिराज ने प्रिंस के पेट मैं कोहनी मारी....!

प्रिंस: हाय मार डाला.....अबे क्या है बे...???

अभिराज : ओये उधर देख तेरी भाभी....!

प्रिंस:( चौंक कर ) अबे भाभी यहाँ कहाँ आ गयीं उन्हें तो मैं घर छोड़ कर आया हूँ....??

अभिराज : अबे वो वाली नहीं ये पटोला देख....!😍😍

प्रिंस: तू न भाई एक दिन खुद तो बहुत जूते खायेगा ही मुझे भी खिलवायेगा....सुधर जा भाई....!

अभिराज : जा बे फट्टू....!

तभी कबीर ने आवाज दी....!

कबीर : अबे ओ बिन पेंदी के लोटों...क्या नयी वारदात प्लान कर रहे हो....!

अभिराज: क क कुछ नहीं कबीर भाई मैं इसे ये बता रहा था की....देख भाई ये मेला बहुत प्रसिद्ध है....यहाँ विदेशी भी आते हैं....!

ब्रम्हा : हाँ भाई आते हैं....बहुत से देशो के लोग यहाँ आते हैं....अब फिलहाल हम लोग चलें...?

अभिराज : तो चलो न मैंने कब मना किया है....!

फिर सबने ऑटो पकड़ा और चल दिए नदी के संगम की ओर..... रस्ते मैं कबीर से बताया की कैसे सजल को विषर्पी और उसे ऋचा दिखी थी...ब्रम्हा ये बात सुन कर अचानक बोल पड़ा....!

ब्रम्हा: अरे यार एक बहुत जरुरी बात तो तुम लोगो को मैं बताना ही भूल गया....!!

सब एक स्वर मैं बोले....वो क्या....???


ब्रम्हा: मैं कुछ दिन पहले जब सो रह था तो मैंने एक अजीब सा सपना देखा......मैंने देखा की मैं अपनी दूकान की सफाई कर रहा हूँ....और मुझे कुछ मिलता है....कुछ ऐसा जो मेरी दूकान मैं नहीं होना चाहिए था.......
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और थी एक अंगूठी....!

अभिराज: अबे जब तेरी दूकान मैं लड़कियों का सामान ही मिलता है....तो उसमें अंगूठी क्यों नहीं मिल सकती...???

ब्रम्हा: सटकी वो कोई मामूली अंगूठी नहीं थी.....ये बिलकुल वैसे ही अंगूठी थी....जैसे की मैंने अपने ड्रीम ऑफ़ माय लाइफ वाली काल्पनिक स्टोरी मैं दर्शायी थी.....same to same वही बनावट की....!!!

आदित्य: हाँ तो हो सकता है....की आपने उसी अंगूठी को देख कर स्टोरी लिखी हो....!?

ब्रम्हा : नहीं हो सकता है आदि क्योंकि....पहली बात तो मैं अंगूठी रखता ही नहीं हूँ....और जो थोड़ी बहुत रखता हूँ....वो सब ऎसे ही काम चलाऊ सामान होता है.....!!

कबीर: बात तो फिर सोचने वाली है....तुमको अंगूठी मिली....मैंने और सजल ने विषर्पी और ऋचा को देखा....ये सब संयोग नहीं है....कुछ तो हो रहा है....हमारे साथ....काल्पनिक चीजें सामने आ रहीं है....!

प्रिंस: हाँ भाई ये तो बहुत अजीब बात है....इसपर तो रिसर्च करनी पड़ेगी....!

अभिराज: अरे ओ भूतों के सौदागर....हर वक़्त रिसर्च न किया कर....कहीं मरने के बाद अगर नर्क मैं गया ना....तो सारे भूत मिलकर तेरे ऊपर phd की थीसिस लिख देंगे....!

प्रिन्स: गुर्रर्रर्रर्रर्रर

तभी विपुल बोल पड़ा.....

विपुल: भाई मैं क्या बोलता हूँ....हमलोग फिरसे मैदान वाले मेले मैं चलते हैं...क्या पता ऋचा और विषर्पी से फिर मुलाकात हो जाये....???

कबीर : हाँ चलो चलो ऋचा मिल गयी तो सब क्लिअर हो जायेगा....!😍😍

ब्रम्हा: कण्ट्रोल कबीरा कण्ट्रोल....पता है ऋचा मैडम का नाम आते ही....आपके गालो की सुर्खियां लाल हो जातीं हैं....और दिल की धड़कन राजधानी बन जाती है....पर अभी इसे ब्रेक मारो क्योंकि हम लोग...संगम बस पहुँचने ही वाले हैं यहाँ का एक राउंड लेलें....फिर वहां चलेंगे....!

अभिराज: हे हे हे.....कण्ट्रोल कबीर भाई भाभी मिल जाएँगी जस्ट चिल....!

तभी ऑटो अपने गंतव्य पर पहुँच गया.....!

सब लोग उतर गए....कबीर भाई ने ऑटो वाले को किराया दिया...(अब भाई पैसे वाली पार्टी है तो देना तो बनता है न सुने हैं एक दो बार विदेश का चक्कर भी मार आएं हैं....तो इन्ही को कटने दो...)


सब लोगों ने सबसे पहले वहां से प्रसिद्ध महादेव जी के दर्शन किये....वहां के महंत जी से सबने उस मंदिर के इतिहास के बारे मैं जाना और समझा.....फिर सैर सपाटा होने लगा....!

तभी आदित्य के दिमाग मैं एक कीड़ा कुलबुलाने लगा.....

आदित्य: ब्रम्हा भाई कबीर भाई....ये नागा साधू लोग ऎसे साधू क्यों बनते हैं???

ब्रम्हा: अरे आदि ये लोग ऎसे ही नहीं बन जाते इतना आसान नहीं होता है...बहुत कठिन परीक्षा के बाद इन्हें ये उपाधि मिलती है....और इनकी शुरुआत मेरे ख्याल से वारियर के तौर पर हुयी थी....इससे ज्यादा जानकारी मुझे नहीं है.....

कबीर : हाँ बस इतना ही मुझे पता है....बाकि बातें तो कोई जानकार ही बता सकता है....

सभी ऎसे ही बातें करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे....और इधर उधर का नजारा देख रहे थे....
तभी अचानक शरिक भाई ठिठक गए....!

अभिराज: क्या हुआ शरिक भाई????

शरिक: यार अभिराज वो तीन साधुओ को देखो....मुझे उनकी शक्ले कुछ देखि हुयी सी लग रहीं हैं....!

अभिराज: हाँ यार ये तीनो मैंने कहीं देखे हुए लगते हैं....पर कहाँ देखें हैं याद नहीं आ रहा है....!

तभी ब्रम्हा उत्साहित होते हुए बोल पड़ता है....!

ब्रम्हा : मैं बता सकता हूँ......पर वादा करो कोई चिल्लाएगा नहीं न ही बेहोश होगा....??

कबीर : यार ये कैसी बात हुयी भाई..???

ब्रम्हा: पहले हाँ बोलो सब....!

सबने एक स्वर मैं हामी भरी....!

ब्रम्हा : क्या तुम लोगो को नहीं लगता की ये तीनो की शक्ल कालदूत से मिलती हुयी है....!

अभिराज: अब ये कालदूत कौन है बे....!!!

विपुल: अरे सटकी भाई महात्मा कालदूत फ्रॉम नागद्वीप....!

कबीर : यार ये हो क्या रहा है....शक्ल बिलकुल कालदूत से ही मिल रही है

आदित्य: चलो न चल कर बात ही कर लें...सब क्लियर हो जायेगा.....


!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

अब कोई ऑनलाइन ही नहीं है इसलिए इतनी ही लिख रहा हूँ.....वरना और लिखता....यहाँ तक पढ़ के बताएं कैसी लगी अब इसमें ज्यादा हास्य रस न ढूंढे क्योंकि अब स्टोरी मैं सस्पेंस और एक्शन थ्रिल सब देखने को मिलेगा....

क्या इस चण्डाल चौकड़ी ने जो देखा वो सही था...??. और आगे सही था...तो कोई काल्पनिक किरदार कैसे सच हो सकता है....आगे क्या क्या हंगामे हुए जानने के लिए इंतज़ार करिये अगले भाग का....जो की तब मिलेगा जब मेरी फिरसे सटकेगी.....!!

तब तक के लिए जय हिन्द

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