Saturday 5 August 2017


मोहित शर्मा ज़हन का नाम भारतीय कॉमिक कम्युनिटी या ऑनलाइन साहित्य प्रेमियों के लिए नया नहीं है। पिछले कई वर्षों से वो अपनी कहानियों, कविताओं, ई-बुक्स, कॉमिक्स, प्रतियोगिताओं, पत्रिकाओं आदि से हमारा मनोरंजन कर रहे हैं। सिकुड़ती कॉमिक कम्युनिटी के बीच मोहित जी ऐसे गिने चुने लोगो में से हैं जो अपने अथक प्रयासों से भारतीय कॉमिक्स के प्रचार प्रसार में लगे हुए हैं। पेश है प्रख्यात कॉमिक समीक्षक युद्धवीर सिंह द्वारा लिये गया उनके साक्षात्कार का द्वितीय भाग




Q) - आपको सबसे मुश्किल कौनसी जॉनर लगती है और किन विषयों/थीम्स पर आप आसानी से लिख लेते हैं?
मोहित - मुश्किल की जगह चुनौती ज़्यादा सही शब्द है। प्रयोग करते हुए कई थीम, जॉनर आप खंगालते हैं, हर तरफ अथाह संसार है इसी वजह से कई लेखक जीवन भर एक या दो जॉनर की गहराई में उतरते चले जाते हैं। इस वजह से मैंने किसी जॉनर से दूरी नहीं बनाई बस एक तरह से बाद के लिए बचा के रखी हैं। रोमांस, साइंस फिक्शन और मिलती-जुलती थीम्स पर कम लिखा है, अब यही कोशिश है कि आगे इन थीम्स पर और ज़्यादा लिखूँ। 

Q) - भविष्य में कौनसे प्रोजेक्ट्स आयेंगे? क्या नावेल के क्षेत्र में उतरने का मन है?
मोहित - लक्ष्य तो छोटे-बड़े बहुत हैं पर अभी के लिए यही सोचा है कि जीवन मे स्थाईत्व पाकर अपनी और औरों की मदद करते चलें। हाँ, कहानियाँ, कॉमिक्स और काव्य पर पकड़ है पर 60 हज़ार शब्दों से ऊपर उपन्यास लिखने का बड़ा मन है। शुरुआत करता हूँ तो ऐसी आदत पड़ी है कि कहानी बन जाती है पर आशा है जल्द ही नावेल भी पूरा होगा। 

Q) - अबतक आप किन जॉनर में लिख चुके हैं?
मोहित - अभी तक अपने काम का अवलोकन करता हूँ तो कॉमेडी, हॉरर, सोशल, ड्रामा, एडवेंचर, ट्रेजेडी, स्पोर्ट्स, हिस्टोरिकल फिक्शन आदि जॉनर पर तुलनात्मक अधिक लिखा है। बाकी जॉनर पर कभी-कभार लिखता रहा हूँ जिसकी फ्रीक्वेंसी बढ़ाने का लक्ष्य है। 

Q) - क्या आप अन्य राइटर्स के साथ मिलकर भी प्रोजेक्ट्स करते हैं? अगर हाँ, तो ऐसे कौनसे काम रहे हैं?
मोहित - मैंने कुछ पत्रिकाओं की एडिटिंग, ट्रांसलेशन मे सहयोग किया है। इसके अलावा कुछ एन्थोलॉजी (कथा/काव्य संकलन) में किसी थीम पर अन्य लेखकों के साथ मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। लेखकों व अन्य विधाओं के कलाकारों के साथ किसी टॉपिक पर चिंतन करना मुझे पसंद हैं, इसमें दोनों को ही बहुत से विचार मिल जाते हैं। मेरा एक संदेश क्रिएटिवस को ये भी है कि खुद तक सीमित ना रहें, अन्य कलाकारों का काम देखें, उनसे सीखें, संभव हो तो उनसे विचार साझा करें। इस तरह आपकी कला में कई आयाम जुड़ते हैं, आपकी ग्रोथ होती है, ऐसी छोटी बातों से बड़ा अंतर आता है। 

Q) - क्या रोज़ कुछ ना कुछ लिखते हैं या कभी लंबा ब्रेक लेते हैं? सबसे लंबा अंतराल क्या था जिस बीच आप कुछ नहीं लिख पाये?
मोहित - हाँ, मैं लगभग रोज़ ही कुछ न कुछ लिखता रहता हूँ और ऐसा पिछले एक दशक से चल रहा है। वैसे 2011 में जब एमबीए करने देहरादून गया था तब 2013 तक लेखन काफी कम हो गया था। 

Q) - आपका कितना पुराना काम ऐसा रह गया जो आप अबतक हस्तलिखित फॉर्मेट से डिजिटल फॉर्मेट में नहीं कर पाए? 
मोहित - मेल में काफी सारे हिंगलिश में अधपके ड्राफ्ट्स सेव हैं कि कभी आराम से लिखूँगा पर उनकी संख्या बढ़ती जाती है। अधिकतर अगर कुछ टल गया तो फिर टल ही जाता है। बाकी डायरी, कॉपी जिनमे लिखता था वो तो इधर उधर हो गयी हैं 2-4 को छोड़कर।  

Q) - क्या आपको कभी ये लगा कि आपके अंदर की क्रिएटिविटी भगवान् का दिया गिफ्ट है जो सबको नहीं मिलता?
मोहित - इस बात का जवाब तो नहीं है मेरे पास पर भगवान को रोज़ धन्यवाद करता हूँ कि मुझे ये दिशा दिखाई और इतना सब्र दिया। 

Q) - अपने वर्क के क्रिटिकस को आप कितना सुनते हैं? क्या आपको लगता है समीक्षकों/आलोचकों और लेखन का रिश्ता भारत में गंभीरता से नहीं लिया जाता?
मोहित - किसी रचना का रिव्यु लोग अपने टैस्ट और एक्सपोज़र के अनुसार करते हैं। जैसे अगर मैं आम भारतीय पाठक या दर्शक वर्ग के लिए बेसबॉल पर कहानी/फिल्म बनाऊं तो उनमे से ज़्यादातर को यह रचना जमेगी नहीं, इसी तरह अगर मैं हद से अधिक हिंसा, घृणित अपराधों को पूरी डिटेल के साथ लिखूं तो एक बड़ा पाठकवर्ग रचना के बाकी पहलु देखे बिना मुझे और रचना को बकवास बता देगा। फीडबैक जो आपकी शैली, आईडिया, संवादों, किरदारों जैसी बात पर हो तो वो आगे के लिए मदद करता है, ऐसे फीडबैक पर मैं पूरा ध्यान देता हूँ। बाकी किसी की पसंद के दायरे से बाहर आपने कुछ कलात्मक काम किया जो उसे पसंद नहीं आया, ऐसी बात बस आपको रीडर प्रीफरेंस, डेमोग्राफिक का अंदाज़ा करवा सकती हैं और कुछ नहीं। 

Q) - आपके किसी काम पर मिले फीडबैक का कोई ऐसा दिलचस्प किस्सा आप बताना चाहेंगे जिसके बारे में सोचकर आज भी हँसते हैं?
मोहित - एक बार किसी व्यक्ति को कहीं प्रकाशित हुई मेरी कहानी इतनी वीभत्स लगी कि उन्होंने इंटरनेट पर मेरा नंबर खोजकर मुझे बताया कि मुझे मानसिक इलाज की ज़रुरत है। इस सफर में कई पाठक ऐसे मिले जो अब हमेशा के लिए साथ हो लिए और उनमे से कुछ बिना किसी रिफरेन्स के मेरी किसी कहानी के सीन-संवाद आदि पर बात करने लगते हैं तो हँसते हुए मुझे पूछना पड़ता है कि मेरा कोर्स छूट गया है, कहाँ-किस बारे में बात हो रही है पहले बता तो दो। 

Q) - आपके प्रेरणा स्रोत क्या हैं?
मोहित - हर तरफ कण-कण में संघर्ष कर रही दुनिया दिखती है, बस वही देख कर कुछ ना कुछ करते रहने की प्रेरणा मिलती है। 

Q) - पसंदीदा व्यंजन और कलर?
मोहित - चावल मुझे बहुत पसंद हैं। बाकी हर तरह का शाकाहारी खाना अच्छा लगता है। रंगो में स्यान और मैरून। 

Q) - पसंदीदा खिलाडी?
 मोहित - हौली होल्म, जैक कैलिस, राहुल द्रविड़, ब्रायन ब्रदर्स और कुछ एथलीट हैं। 

Q) - लेखन के अलावा आपके क्या शौक हैं?
मोहित - कभी गुनगुना लेता हूँ, स्पोर्ट्स खेलना-देखना, नंबर्स के साथ अच्छा हूँ, बाकी वाकिंग - चलते हुए लोगो को ऑब्ज़र्व करना। 

Q) - लेखन में सबसे मुश्किल और सबसे आसान बात क्या होती है?
मोहित - निरंतर अच्छा लेखन एक चुनौतीपूर्ण काम है। अक्सर लेखकों, कवियों को आत्मुग्धता में डूबा देखता हूँ जिस वजह से उन्हें अपनी लिखी हर चीज़ सही लगती है और उनका काम एक स्तर से ऊपर नहीं उठ पाता। वैसे कोई नई शैली आज़माना या प्रयोग करना मुश्किल होता है पर एक बात लेखन में सबसे मुश्किल भी है और आसान भी - नजरिया। कुछ लिखने से पहले लेखक का उस ख़ास विषय पर नजरिया जैसा होता है, वह उसी अनुसार बातों पर ध्यान देता है और बाकी को नज़रअंदाज़ करता है। कहानी का क्रम, उसका प्रारूप और संदेश अच्छी-निष्पक्ष ऑब्जरवेशन से काफी बेहतर हो सकता है। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं कि निष्पक्ष रहने के लिए ज़बरदस्ती सही या गलत में फेरबदल किया जाए। तो कभी-कभी यह संतुलन बनाना कठिन हो जाता है। 

Q) - आपकी रचनाओं में अक्सर भारतीय परिदृश्य और संस्कृति के घटक झलकते हैं, इस बारे में क्या मानना है?
मोहित - भारत का इतिहास, संस्कृति और यहाँ की विविधता से अनगिनत सम्भावनाएँ मिलती हैं। ट्राइड एंड टेस्टेड सफल कांसेप्ट देख कर कुछ लिखने के दौर में बीच-बीच में दोबारा से मूल बातों लौटना बुरा नहीं। 

Q) - क्या अब तक के सफर में रीडर्स से आपको कोई शिकायत रही है, जिसका दुख होता हो?
मोहित - पहली बात पाठकवर्ग का एक बड़ा हिस्सा लेखन में प्रयोगो पसंद नहीं करता। जिस चीज़ की उन्हें आदत नहीं वो बेकार। जैसे कहीं रहते हुए व्यक्ति की जीभ की टैस्ट बड्स वैसे खाने की अभ्यस्त हो जाती हैं और जब वह कोई बाहर का व्यंजन खाते हैं तो उन्हें समझ नहीं आता इस खाने का इतना नाम क्यों है, इसमें कोई ख़ास टैस्ट नहीं, बेकार स्वाद है। समय के साथ नए व्यंजन का स्वाद बनाया जा सकता है यानी वो विदेशी खाना ख़राब नहीं बस आपको उसकी आदत नहीं जो बन सकती है। कइयों को बस शब्द में रस चाहिए चाहे थीम घिसी-पिटी, ओवरयूज़्ड हो। धीरे-धीरे कई पाठको की आदत बदलने में सफल हुआ हूँ। दूसरी बात कोई ख़ास गंभीर नहीं है बस यूँ ही, मुझपर एंटी-फेमिनिस्ट या नारीवाद के खिलाफ होने के आरोप लगते हैं, जबकि मैंने महिलाओं के मुद्दों पर काफी लिखा है। एक कहानी संग्रह "नारीपना" पूरा महिलाओं को समर्पित है, पिछले वर्ष प्रकाशित शार्ट कॉमिक "इंसानी परी" में नीरजा भनोट के माध्यम से महिलाओं के धैर्य, जज़्बे को दिखाने की कोशिश की थी।  समय-समय पर ऐसे और भी प्रयास करता रहता हूँ। मैंने नोट किया है कि अपनी रचनाओं में मान लीजिये मैं 10  बार नकारात्मक किरदार, आदत या सीन पुरुष पर दिखाऊं तो कोई ध्यान नहीं देता और सब कहानी के फ्लो में बढ़ते हैं, पर अगर 11वी बार कोई नकारात्मक बात किसी महिला से जुडी लिखूं या नेगेटिव महिला किरदार दिखाऊं (कमियाँ, गलतियाँ जो इंसान होने की निशानी है) तो बहुत से लोग मुझे टोकते हैं कि यह बात तो नारी विरोधी है। इस आधार पर तो मैं जितना नारी विरोधी हूँ उसका 10 गुना पुरुष विरोधी हुआ? यहाँ पाठको को ध्यान रखना चाहिए कि दुनिया बहुत बड़ी है और साढ़े सात अरब लोगो के संसार में करोडो महिलाएँ गलत, आपराधिक मानसिकता वाली भी हैं। तो कभी-कभार ऐसे संदेशो को अपने नज़रिये के अनुसार नकारने के बजाये तस्वीर का दूसरा पहलु देखना चाहिए। देश-विदेश में असंख्य सामाजिक संस्थाएँ, विश्वविद्यालय, सरकार महिलाओं के लिए इतना मटेरियल प्रकाशित करते हैं, फिर हर लेखक महिलाओं से जुड़े विषयों पर लिख ही रहा है तो गाहे बगाहे कुछ मुद्दों पर सुन भी लें। 

Q) - आप खुद किस तरह की बुक्स पढ़ना पसंद करते हैं?
मोहित - मैं किताबें कम पढता हूँ, बचपन और किशोरावस्था में कॉमिक्स खूब पढ़ीं। अब जैसा पहले बताया दुनिया को ज़्यादा पढता हूँ, आस-पास इतनी चलती-फिरती कहानियाँ हैं। मुझे शांताराम नावेल काफी पसंद आई थी। आजकल कभी-कभार स्वर्गीय यशपाल जी का साहित्य पढ़ लेता हूँ, क्योकि लखनऊ में उन्ही के घर में किराये पर रह रहा हूँ। 

Q) - आपने कुछ साल पहले फ्रीलैंस टैलेंट्स, इंडियन कॉमिक्स फैंडम इनिशिएटिव शुरू शुरू किये। उस बारे में कुछ बताएं।
मोहित - फ्रीलैंस टैलेंट्स कम्युनिटी की शुरुआत आर्टिस्ट, राइटिंग कम्युनिटी में उभरती प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए की थी। इसके अंतर्गत बहुत सी प्रतियोगिताएँ, ई-बुक्स, कॉमिक्स, पत्रिकाएं हुई जिसमे कई विधाओं के कलाकार जुड़ते गये। आशा है आगे यह इनिशिएटिव और बढ़ेगा, बड़े स्तर पर पहुँचकर अधिक लोगो तक पहुंचेगा। इसी तरह इंडियन कॉमिक्स फैंडम भारतीय कॉमिक्स और  जुड़े कलाकारों के प्रचार प्रसार के शुरू किया था। 

Q) - नए कलाकारों, लेखकों को आप अपने अनुभव से कुछ टिप्स दीजिये। 
मोहित - 
i) - एक कहावत है अंग्रेजी में - "पे वंस ड्यूज़" यानी किसी चीज़ पर अति-आत्मविश्वास के साथ हक़ जताने से पहले उसके काबिल बनें। बिना मेहनत किये यह सोचना कि जो बड़े नाम करते हैं वो तो आप आराम से कर लोगे भ्रम है। निरंतर परिश्रम करने से आत्मविश्वास तो आता है और साथ ही काम निखरता जाता है। 
ii) - एकदम से स्टार बनने का अनुपात लाखो-करोडो में कुछ लोगो का है तो सिर्फ उस सपने में बाकी छोटे प्रयास, अवसर रिजेक्ट ना करते रहें यह सोचकर कि 'भगवान ने तो आपके लिए कुछ ख़ास सोच रखा है, बाकी मध्यम दर्जे के काम क्यों करना?'
iii) - आपके किसी प्रयोग पर नेगेटिव फीडबैक आये तो आगे प्रयोगों में सुधार करें पर यह कभी नहीं माने कि अब कोई नया प्रयोग करना ही नहीं है। अपने क्षेत्र के  कलाकारों के साथ मिलकर कुछ प्रोजेक्ट्स ज़रूर करें। 
iv) - अपनी आँखों के सामने नित नए स्वरुप में बहते जीवन से प्रेरणा लेकर सीखते और लिखते रहें। 

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