भारतीय कॉमिक्स अथवा भारतीय चित्रकथा वह कॉमिक्स पुस्तकें एवं ग्राफिक उपन्यास जिनका सांस्कृतिक संबंध भारत द्वारा प्रकाशन से जुड़ा हो जिन्हें अंग्रेज़ी अथवा विभिन्न भारतीय भाषाओं में जारी करता है।
भारत में कॉमिक्स पठन एवं उसके प्रसंगों को लेकर एक लंबी परंपरा जुड़ी हुई हैं जहाँ व्यापक पैमाने पर दशकों से लोककथाएं एवं पौराणिक गाथाओं को बाल चित्रकथाओं के शक्ल में पहुँचाया जा रहा है। भारतीय कॉमिक्स बहुतायत संख्या में देश में प्रकाशित होती है। लगभग बीते १९८० से १९९० के दशक तक, जब कॉमिक्स उद्योग का दौर काफी शीर्ष पर था तब उस वक्त की कई लोकप्रिय कॉमिक्स की ५००,००० लाख से अधिक प्रतियाँ एक हफ्तें में बिक जाती थी लेकिन समय गुजरने के बाद अब बमुश्किल ५०,००० हजार प्रतियाँ ही बिक पाती हैं। कभी भारतीय कॉमिक्स उद्योग का रहा स्वर्णकालिक दौर, आज की बढ़ती सैटेलाइट टेलीविजन (विशेषकर बच्चों पर बनने वाले चैनलों) एवं विडियो गेम उद्योगों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा से आज पतन के दौर में संघर्ष कर रहा है। मगर आज भी विगत तीन दशकों से डायमंड कॉमिक्स, राज कॉमिक्स, टिंकल एवं अमर चित्र कथा अपनी व्यापक स्तर के वितर्क नेटवर्क के जरीए देश भर के हिस्से में अपनी पैठ जमाएं है और विभिन्न भाषाओं में उनके लाखों-हजारों की तादाद के नन्हें पाठक पसंद करते हैं।भारत के प्रसिद्ध कॉमिक्स रचियता जिनमें आबिद सुरती, अंकल पैई, प्राण कुमार शर्मा एवं अनुपम सिन्हा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है उनके बनाये किरदार क्रमशः बहादुर एवं डिटेक्टिव मुंछवाला; सुप्पांदी तथा शिकारी शंभु; चाचा चौधरी एवं बिल्लू और नागराज व सुपर कमांडो ध्रुव काफी लोकप्रिय रहें हैं।
अनंत पैई, जिन्हें लोग स्नेह से "अंकल पैई" के नाम से संबोधित करते हैं, उनके सौजन्य से १९६० के दशक में भारतीय कॉमिक्स उद्योग की नींव उन्होंने प्राचीन हिंदू पौराणिक गाथाओं को ध्यान रखते हुए अमर चित्र कथा का प्रकाशन शुरू किया।
प्रकाशन का इतिहास -
भारतीय कॉमिक्स उद्योग का आरंभ १९६० के मध्य ही हुआ जब द टाइम्स ऑफ इंडिया के शीर्ष अखबार ने इंद्रजाल कॉमिक्स का प्रमोचन कराया। हालाँकि इंडस्ट्री द्वारा भारत में प्रस्तुत किया गया ज्यादातर विषय पश्चिम वर्ग के थे। वहीं गत १९६० के दौर तक कॉमिक्स का लुत्फ संभ्रांत परिवार के बच्चे ही ले पाते थे।
यह बात है
1967 की, टेलीविजन ने भारत
में कदम रखे
ही होंगे, अनंत
पई दिल्ली की
एक शाम दूरदर्शन
से टेलीकास्ट हो
रहा क्विज शो
देख रहे थे.
शायद टॉपिक था,
माइथोलॉजी. वे यह
देखकर हैरान हो
गए जब एक
बच्चा भगवान राम
की माता का
नाम न बता
सका. वहीं ग्रीक
माइथोलॉजी से जुड़े
कई सवालों का
जवाब वे फटाफट
देते गए. उसी
साल अनंत ने
टाइम्स आफ इंडिया
की जॉब छोड़
दी और भारतीय
पौराणिक कथाओं पर सरल
भाषा और सुंदर
चित्रों के साथ
कॉमिक्स का प्लान
किया. कई पब्लिकेशंस
ने उनका आइडिया
रिजेक्ट कर दिया.
अंत में बात
बनी इंडिया बुक
हाउस के इनिशियेटिव
से.
इसके बाद वही
हुआ जो हर
सफल इंसान की
कहानी के साथ
होता है. शुरुआत
में स्ट्रगल के
बाद अमर चित्रकथा
बीस भारतीय भाषाओं
में इंडिया की
सबसे ज्यादा बिकने
वाली कॉमिक्स बन
गई. यह वो
वक्त था जब
इंडियन सोसाइटी का अरबनाइजेशन
हो रहा था.
ज्वाइंट फैमिली धीरे-धीरे
न्यूट्रल फैमिली में शिफ्ट
हो रही थी.
दादा-नानी से
सुनी-सुनाई जाने
वाली कहानियों का
चलन खत्म हो
रहा था. घर
में उस खाली
स्पेस को धीरे-धीरे अमर
चित्रकथा भरने लगा.
यह एक ऐसी
कॉमिक्स बन गया
जिसे देखकर पैरेंट्स
नाराज नहीं होते
थे, स्कूलों की
लाइब्रेरी में और
बच्चों के स्कूल
बैग में भी
ये नजर आने
लगे.
जिस वक्त अनंत
पई ने टाइम्स
आफ इंडिया की
जॉब छोड़ी, वह
ग्रुप इंद्रजाल कॉमिक्स
के नाम से
बच्चों के लिए
एक नया पब्लीकेशन
लांच कर रहा
था. ली फॉक
के कैरेक्टर्स फैंटम
और मैन्ड्रेक लाखों
बच्चों के लिए
बन गए वेताल
और जादूगर मैंन्ड्रेक.
‘द घोस्ट हू
वाक्स’ बन गया
‘चलता फिरता प्रेत’.
शानदार मुहावरेदार अनुवाद ने
इन कैरेक्टर्स को
घर-घर में
पॉपुलर कर दिया.
इंद्रजाल कॉमिक्स ने बहादुर
नाम से एक
भारतीय कैरेक्टर भी इंट्रोड्यूस
किया. बहादुर के
क्रिएटर थे हिन्दी-गुजराती के मशहूर
लेखक और पॉपुलर
स्ट्रिप ढब्बू जी के
रचयिता आबिद सूरती.
बाकायदा रिसर्च के बाद
चंबल के बैकड्राप
पर क्रिएट की
गई स्टोरी और
गोविंद ब्राहम्णिया के सिनेमा
के स्टाइल में
फ्रेम की गई
तस्वीरों ने बहादुर
को भारत की
क्लासिक कामिक्स बना दिया.
सन 1980 तक इसकी
पॉपुलैरिटी अपने चरम
पर थी. मगर
आने वाले कुछ
सालों में यह
पब्लीकेशन बंद हो
गया. कामिक्स घरों
से लगभग गायब
होने लगी. कागज
की कीमतें और
प्रोडक्शन कास्ट बढ़ने के
कारण इंडिया बुक
हाउस को भी
कीमत बढ़ानी पड़ी
नतीजा वे मिडल
क्लास की पहुंच
से बाहर हो
गए. पल्प फिक्शन
और पॉपुलर बुक्स
छापने वाले कुछ
पब्लिशर्स ने भारतीय
कैरेक्ट्स इंट्रोड्यूस करने चाहे,
मगर घटिया तस्वीरों,
इमैजिनेशन का अभाव,
बच्चों और टीनएजर्स
की साइकोलॉजी न
पकड़ पाना- कुछ
ऐसे फैक्टर रहे,
जिनके चलते वे
बुरी तरह फ्लाप
हो गए.
एक के
बाद एक कॉमिक्स
पब्लीकेशन खुले और
साल-छह महीनों
में बंद हो
गए. कुछ तो
पहले सेट से
आगे बढ़ ही
नहीं पाए. कुछ
बड़े पब्लिशिंग हाउस
ने इंद्रजाल कॉमिक्स
की सक्सेस स्टोरी
दुहराने की कोशिश
की. अब तक
सिर्फ एलीट क्लास
को उपलब्ध एस्ट्रिक्स
हिन्दी में आया,
चंदामामा ने वाल्ड
डिज्नी के कैरेक्टर्स
इंट्रोड्यूस किए- मिकी
माउस, डोनाल्ड और
जोरो. उन्होंने दूसरी
कोशिश की सुपरमैन
और बैटमैन को
लाने की. अनुवाद
की दिक्कतों के
चलते बच्चे उनसे
दूर रहे.
मोटे तौर पर भारतीय कॉमिक्स क्रम-विकास को चार चरणों पर बाँटा जा सकता है। लगभग १९५० के दौरान में पश्चिम जगत के सिंडीकेट प्रकाशन अपने स्ट्रिप कॉमिक्स द फ़ैन्टम, मैण्ड्रेक, फ्लैश गाॅर्डन, रिप किर्बी को भारतीय भाषा में अनुवादित कर पेश किया गया। कॉमिक्स की इस कामयाबी ने लगभग कई प्रकाशकों को इन शीर्षकों को अनुसरण करने पर मजबूर कर दिया। दूसरा चरण विगत १९६० का दशक के आखिर में अमर चित्र कथा (जिसका लगभग तात्पर्य है "अविस्मरणीय चित्रों की कहानियों") आई, जो पूर्ण तौर भारतीय विषयों को लेकर समर्थित थी। १९७० के दशक विभिन्न स्वदेशी कॉमिक्स पश्चिमी सुपरहीरो कॉमिक्स प्रतिद्वंद्विता देखते हुए उतारा गया। ८० के दशक तक में जैसे सुपरहीरो काॅमिक्सों की लहर सी आ गई, जिसके साथ रचनाकारों एवं प्रकाशकों ने पश्चिम वर्ग के सुपरहीरो पीढ़ी की सफलता के लाभ को लेकर एक नई आशा बांधी।
हालाँकि, पहले भारतीय सुपरहीरो बैतुल द ग्रेट की रचना, १९६० के दशक के दरम्यान हो चुकी थी। सन् १९८० के आस-पास, हीरोज ऑफ फेथ नाम की कॉमिक्स की ५.५ करोड़ प्रतियाँ भारत में बिकने का कीर्तिमान है। दर्जनों प्रकाशकों ने इसी मंथन के बीच हर माह सैकड़ों की संख्या में कॉमिक्स कराते, लेकिन ९० के दशक में इस व्यवसाय का स्तर गिरने लगा जब भारत में लोग केबल टेलीविजन, इंटरनेट और दूसरे साधनों के जरीए मनोरंजन जुटाने लगे थे। हालाँकि, अन्य प्रकाशक जैसे राज कॉमिक्स वं डायमंड कॉमिक्स तथा अमर चित्र कथा (सुप्पांदी जैसे किरदार) अपने पाठकों के मध्य फलते-फुलते रहें।
पॉकेट बुक्स पब्लिश करने वाले राज कॉमिक्स ने सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, परमाणु और डोगा जैसे कैरेक्टर इंट्रोड्यूस किए. देखते-देखते ये बच्चों में पॉपुलर हो गए. दूरदर्शन के विस्तार से स्पाइडरमैन, स्टार ट्रैक और स्ट्रीट हॉक पापुलर हो चुके थे. जमीन तैयार थी. एक बार फिर कॉमिक्स ने बच्चों की दुनिया रंगीन कर दी. पहले से पॉपुलर चाचा चौधरी, राजन इकबाल, बांकेलाल, भोकाल, फाइटर टोड्स, भेड़िया जैसे अनगिनत कैरेक्टर सामने आए. इन पर टीवी सीरियल प्लान होने लगे. कार्टून नेटवर्क और पोगो जैसे चैनलों ने बच्चों के पढ़ने का स्पेस तो छीना मगर इंडियन कॉमिक्स इन छोटे-मोटे झटकों को झेलने के लिए मजबूती से खड़ा था. इस मंदी के दौर में भी, नई प्रकाशन कंपनियों जैसे वर्जिन कॉमिक्स फेनिल कॉमिक्स ग्रीन गोल्ड. जुनियर डायमंड आदि ने विगत वर्ष पहले बाजार में पैठ जमाने की कोशिश की। क्लाइमेक्स बंगलूरु में इंजीनियर और मैनेजमेंट के बैकग्राउंड वाले एक युवा श्रेयस श्रीनिवास ने अपने कुछ साथियों की मदद से लेवेल टेन कामिक्स स्टैबलिश किया. वे बतौर यंग इंटरप्रन्योर ब्लूमबर्ग के शो द पिच के विनर रहे और उन्हें पांच करोड़ की इन्वेस्टमेंट अपारचुनिटी मिली है. फेसबकु पर लेवेल टेन कामिक्स के दस हजार से ज्यादा फैन्स हैं. वहीं कॉमिक्स प्रकाशकों को भी वर्तमान प्रतिस्पर्धा के दौर में नई रचनाओं को जन्म ना दे पाने का भी आलोचकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया सहनी पड़ी।
वहीं २००० की शुरुआत में वेब कॉमिक्स भारत में एक लोकप्रिय माध्यम साबित हुआ। भारतीय वेब कॉमिक्स बड़ी संख्या में पाठकों के बीच मुफ्त मनोरंजन का साधन बना है और लगातार देश की युवा वर्ग के मध्य राजनीतिक एवं नारीवाद मुद्दों के बाद अपनी सामाजिक जागरूकता बढ़ा रहें हैं। लोगों में वेब कॉमिक्स पहुँच बनाने में विभिन्न सोशल मिडिया भी अपना योगदान दे रही है।
इस तरह भारत ने पहली बार फरवरी २०११ में काॅन-कॉमिक्स की मेजबानी की। साल २०१२ के अनुमान अनुसार, भारतीय काॅमिक्स प्रकाशक उद्योग का कारोबार अब $१०० करोड़ डाॅलर पार कर चुका है।
वहीं भारत में मैंगा तथा एनिमे की बढ़ती लोकप्रियता देखते हुए उन्हीं जापानी मैंगा प्रेरित काॅमिकॉमिक्सकों के जरिए, हिंदू पौराणिक गाथाओं को पौराणिक काॅमिकॉमिक्सप में भारत, सिंगापुर, मलेशिया एवं युरोप में बिक्री जारी कर रहा है।
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