हारी शर्त - किरण अग्रवाल
पैरा कमांडर ज़ीशान की आंखें अब नींद के चलते बोझिल हो चली थी कि अचानक उसके ट्रांसमीटर पर सन्देश आया।
उसने ऊंघते हुए रिसीवर उठाया।
सामने से कुछ कहा गया और उसकी आँखे एक झटके से खुल गई।
"क्या?"
अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ वह।
"कब हुआ ये?"
सामने से जवाब नहीं दिया गया।
उसने बाहर निकल कर तेजी से हथियार उठाये और जवानों के साथ शामिल हो गया।
(उड़ी के सैन्य मुख्यालय से कुछ ही मिटर दूर आत्मघाती हमला हुआ था।बैस कैंप में उस हमले के कारण आग लग गई थी और कई जवान शहीद हो गए थे)
"या अल्लाह!काश अनीस को कुछ न हुआ हो।"
दिल में दुआ चल रही थी ज़ीशान के।
(ज़ीशान और अनीस बचपन के दोस्त थे।साथ ही स्कुल और कॉलेज भी गए।साथ ही आर्मी में भी।ज़ीशान स्कुल लाइफ से ही बहुत आगे था।बेहद होशियार।दोनों के बीच शर्त लगती और अब तक सिर्फ ज़ीशान ही जीतता रहा था।
लेकिन आर्मी ने उन दोनों को अलग अलग कर दिया।और साथ ही शर्तों ने भी नया रूप ले लिया था।अब उनके बीच सबसे ज्यादा आतंकियों को मारने की शर्त लगती थीं।)
ज़ीशान के दिमाग में अनीस के कहे शब्द गूंज रहे थे, जो उसने आखिरी मुलाकात के दौरान कहे थे।
"ज़ीशान,कुछ भी हो तू हर बार मुझसे बाजी मार ही लेता है।लेकिन यह हर बार नही होगा।बस मुझे उस दिन का इंतज़ार है,जब मै तुझसे पहले तिरंगे के कफ़न में दफ़्न होकर तुझे हरा दूंगा।"
ज़ीशान हंस पड़ा था तब।
"हाहाहा,मेरे होते हुए ये सम्भव नही।दूसरी बात, ये शर्त भी मै ही जीतूंगा।"
"देखते हैं।"
***************************
उड़ी का सैन्य मुख्यालय
अंदर 3 आतंकी थे।
गोलाबारी की आवाज चारों तरफ गूंज रही थी।सभी पैरा कमांडर तेजी से अंदर दाखिल होते चले गए।
अनीस ने तेजी से अपनी पोजीशन ले ली।अचानक उसका पैर किसी से टकराया।
उसने नजर झुका कर क शर्त वो हार ही गया।)
एक गोली तेजी से उसके कंधे को छिलती हुई निकली।कंधे में दर्द महसूस करते ही उसकी तन्द्रा भंग हुई।
"कोई बात नहीं अनीस!तुम्हारे हिस्से के आतंकी भी इस बार मै ही मार दूंगा।"
ज़ीशान जबड़े भींचे गोलियां चलाता रहा।
आखिर जंग खत्म हुई और साथ ही ख़त्म हुआ उन दोनों के बीच लगने वाली शर्तों का सिलसिला।
(उस जंग के दौरान ज़ीशान ने सिर्फ अपनी पहली शर्त ही नही हारी,बल्कि इंडियन आर्मी ने भी काफी कुछ हारा।)
सैल्यूट टू इंडियन आर्मी
उसने ऊंघते हुए रिसीवर उठाया।
सामने से कुछ कहा गया और उसकी आँखे एक झटके से खुल गई।
"क्या?"
अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ वह।
"कब हुआ ये?"
सामने से जवाब नहीं दिया गया।
उसने बाहर निकल कर तेजी से हथियार उठाये और जवानों के साथ शामिल हो गया।
(उड़ी के सैन्य मुख्यालय से कुछ ही मिटर दूर आत्मघाती हमला हुआ था।बैस कैंप में उस हमले के कारण आग लग गई थी और कई जवान शहीद हो गए थे)
"या अल्लाह!काश अनीस को कुछ न हुआ हो।"
दिल में दुआ चल रही थी ज़ीशान के।
(ज़ीशान और अनीस बचपन के दोस्त थे।साथ ही स्कुल और कॉलेज भी गए।साथ ही आर्मी में भी।ज़ीशान स्कुल लाइफ से ही बहुत आगे था।बेहद होशियार।दोनों के बीच शर्त लगती और अब तक सिर्फ ज़ीशान ही जीतता रहा था।
लेकिन आर्मी ने उन दोनों को अलग अलग कर दिया।और साथ ही शर्तों ने भी नया रूप ले लिया था।अब उनके बीच सबसे ज्यादा आतंकियों को मारने की शर्त लगती थीं।)
ज़ीशान के दिमाग में अनीस के कहे शब्द गूंज रहे थे, जो उसने आखिरी मुलाकात के दौरान कहे थे।
"ज़ीशान,कुछ भी हो तू हर बार मुझसे बाजी मार ही लेता है।लेकिन यह हर बार नही होगा।बस मुझे उस दिन का इंतज़ार है,जब मै तुझसे पहले तिरंगे के कफ़न में दफ़्न होकर तुझे हरा दूंगा।"
ज़ीशान हंस पड़ा था तब।
"हाहाहा,मेरे होते हुए ये सम्भव नही।दूसरी बात, ये शर्त भी मै ही जीतूंगा।"
"देखते हैं।"
***************************
उड़ी का सैन्य मुख्यालय
अंदर 3 आतंकी थे।
गोलाबारी की आवाज चारों तरफ गूंज रही थी।सभी पैरा कमांडर तेजी से अंदर दाखिल होते चले गए।
अनीस ने तेजी से अपनी पोजीशन ले ली।अचानक उसका पैर किसी से टकराया।
उसने नजर झुका कर क शर्त वो हार ही गया।)
एक गोली तेजी से उसके कंधे को छिलती हुई निकली।कंधे में दर्द महसूस करते ही उसकी तन्द्रा भंग हुई।
"कोई बात नहीं अनीस!तुम्हारे हिस्से के आतंकी भी इस बार मै ही मार दूंगा।"
ज़ीशान जबड़े भींचे गोलियां चलाता रहा।
आखिर जंग खत्म हुई और साथ ही ख़त्म हुआ उन दोनों के बीच लगने वाली शर्तों का सिलसिला।
(उस जंग के दौरान ज़ीशान ने सिर्फ अपनी पहली शर्त ही नही हारी,बल्कि इंडियन आर्मी ने भी काफी कुछ हारा।)
सैल्यूट टू इंडियन आर्मी
4 comments
जबरजस्त.....पेज पर शेयर कर रहा हूँ....निशु कॉपी करके pm करो....👌👌
Replyउरी क घटनाक्रम को बdhiya तरीके से शब्दों मे ढला गया
Replyबहुत ही खूबसूरत कहानी कम शब्दों में बहुत कुछ कह गई। आगे भी लिखते रहिये।
ReplyHats off to the writer
And a big salute to the Indian army
Ise kahte hai thoda bolna par sidhe Dil se!
ReplySalute to Indian Army