Thursday 14 December 2017

  जब भी हम सभी किसी  कॉमिक्स को पढ़ते  हैं...तो सबसे पहले  दिमाग यह सवाल पूछता है की हमारे हीरो का क्या  रोल होगा...उसने कैसा काम  किया है.....अगर एक्शन हीरो है...तो विलेन को कैसे पीटा और यदि कॉमेडी हीरो  है तो कितना हंसाया !
  लेकिन क्या कॉमिक्स सिर्फ इतना ही होती है?
कॉमिक्स क्या होती  है..इसके बारे में सभी के पास अपने अपने विचार हैं...कोई कथाचित्र कहता है...कोई अपना   बचपन....किसी के लिए वो कला से प्रेम है..तो किसी के   लिए सिर्फ मनोरंजन.

   हमें कॉमिक्स का संसार काफी व्यापक और असीम   संभावनाओं से भरा लगता है....वो इसलिए क्यूंकि   कॉमिक्स को बनाने में पूरी तरह से मानवीय दिमाग और   हाथ लगते हैं....जो असंभव को संभव बना देने की ताकत   रखते हैं....उन्हें कोई बंदिश रोक नहीं सकती और ना ही   किये जा चुके काम को मन मुताबिक़ बदलने की मनाही   है.

कॉमिक्स का पहला उद्देश्य सचमुच मनोरंजन ही है...यदि कहानी को पढ़कर दिमाग में उथल पुथल ना हो पाए..और उसके बारे में एक बार ही सही...कुछ ना कुछ सोचने का मन ना हो...तो सचमुच वो कॉमिक्स अपना महत्व खो देती है.
   इस तरह से कॉमिक्स के अन्दर जो संसार दिखाया जाता है...वो भी अपने आप में अनोखा है..और यदि कोई खुद को सबसे बड़ा कॉमिक्स प्रेमी कहता है..तो सबसे पहले इस अनोखे संसार को गहराई से जान लेना और उसे समझना चाहिए!
  कॉमिक्स के अन्दर बहुत सारे “पात्र” होते है...हाँ हम उन सभी को पात्र यानी charactersही मानते हैं....मुख्यतः लोगों को हमने इन characters की कई सारी categorie  बनाकर बात करते ही देखा है...लेकिन यह काफी हद तक ठीक नहीं लगता.
  कॉमिक्स में कई तरह के पात्र रहते हैं....उनमे जो सच्चाई के रास्ते पर चलते सदात्मा और अच्छे चरित्र वाले होते हैं.....उन्हें हीरो या नायक कहा जाता है....जैसे नागराज,ध्रुव,परमाणु, और बाकी जितने भी हैं...वहीँ जो दुष्चरित्र और बुरे काम करते हैं...उन्हें विलेन या खलनायक.

इन 2 categorie के अलावा सहायक पात्र होते हैं..

  आम पाठक इसी नज़र से कॉमिक्स को देखता है...अपने नायको को हमेशा एक ही रास्ते पर बार बार चलते देखना उनका सपना होता है...नायक को कभी खरोंच भी ना लगे...वो एक वार में 10 गुंडों को पीट दे...कॉमिक्स के अन्दर उसके रुतबे का कद आसमान तक हो जाए...इसके अलावा पूरी लिस्ट बनाई   जा सकती है.
  कुछ ऐसा ही सोचना बाकी खलनायको और सह्चरित्रो के बारे में है....जबकि यह बहुत गलत परिपाटी बना दी गयी है...चाहे कॉमिक्स बनाने वालो की तरफ से सोचा जाए या फिर पाठको की तरफ से....यह चीज़ असीम संभावनाओं को खत्म कर देती है...जो बहुत घातक है.!
  कॉमिक्स के अन्दर के सभी पात्र भी अपनी एक आम ज़िन्दगी जीते हैं...और उस आम ज़िन्दगी का एक हिस्सा ही समाज और दूसरो के लिए खर्च करते हैं...वो सभी भी हम सभी की तरह दाल-रोटी खाते हैं..हवा में सांस लेते हैं...चोट लगने पर उन्हें भी दर्द होगा.!
  इसके अलावा इन् सभी के जीवन में भी उतार चढ़ाव आता है...जो हीरो है जरूरी नहीं हमेशा One Man Army ही बना रहे...उसकी भी कोई कमजोरी,मजबूरी हो सकती है...जिसके नीचे वो ख़ास से आम इंसान बन सकता है...और वही एक खलनायक के अन्दर भी अच्छाई जाग सकती है..जो उसे नायक बना दे.
  कई बार यह सुनने में मिलता है...की फलां काम किसी हीरो ने पहले कभी नहीं किया...तो अब क्यूँ कर रहा है??....यानी उसे एक ही रास्ते पर ताजिंदगी पूरी उम्र चलते रहना चाहिए...उसमें बदलाव की गुंजाइश मार दी जानी चाहिए....या यह विलेन तो बुरा था...अब यह सुधर कैसे रहा है?
  इस मामले में अनुपम सिन्हा जी ने एक कॉमिक्स बनाई थी...नाम था “विध्वंस”...इसमें अधम और सधम नाम के दो पात्र होते हैं...जिसकी शक्ल अच्छी थी...वह बुरा था और जिसकी शक्ल खराब थी वो अच्छा..लेकिन ज्यादातर पाठक इस सन्देश को ज्यादा महत्व नहीं देते और ना इस बात को कि अनुपम जी क्या बताना चाहते थे?
  इसी तरह से एक कॉमिक्स आई थी—“पाकिस्तान जिंदाबाद”....इसमें सभी खलनायको के बदलते दिल दिखाए गए थे..की उनमे भी अच्छाई के कुछ कीटाणु मौजूद हैं.
एक कॉमिक्स और थी...”ठंडी आग”....जिसमे एक नायक एंथोनी अपने प्रतिशोध में खलनायक बन जाता है.
  इन सभी कहानियों की एक ही ख़ास बात है..वो यह बताना कि ज़िन्दगी में कभी-कभी समय और हालात ऐसे बन जाते हैं...जब इंसानी दिमाग अपनी मूल सोच के बिल्कुल उल्टा काम कर सकता है...ऐसे में वो सही-गलत का ध्यान नहीं रखता...बल्कि सिर्फ अपने काम और लक्ष्य को सबसे बड़ा मानता है!
  कहानी की मांग ज़िन्दगी का ही एक हिस्सा होती है...ज़िन्दगी में अच्छा-बुरा,सुख-दुख,अमीरी-गरीबी,बीमारी-तंदुरुस्ती आती जाती रहती है...कभी तेज़ दिमाग भी काम करना बंद कर देता है...और कभी कभी मूर्ख व्यक्ति भी अकलमंदी की बात कर देता है...इंसानी फितरत कब बदल जाए कौन जाने?...उसी तरह ऊपर बैठा भगवान् कब किसकी ज़िन्दगी में उसे क्या दिन दिखा दे यह भी कोई नहीं कह सकता!
  इसलिए कॉमिक्स के मनोरंजन देने वाले पक्ष को ज्यादा मजबूत बनाने के लिए कहानीकारों को लचीला रुख अपनाना चाहिए...और पाठको को भी कहानी कि जरूरत और पात्र कि बढती और बदलती ज़िन्दगी के नज़रिए को महत्व देते हुए राय रखनी चाहिए!

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