Friday 21 July 2017


मोहित शर्मा ज़हन का नाम भारतीय कॉमिक कम्युनिटी या ऑनलाइन साहित्य प्रेमियों के लिए नया नहीं है। पिछले कई वर्षों से वो अपनी कहानियों, कविताओं, ई-बुक्स, कॉमिक्स, प्रतियोगिताओं, पत्रिकाओं आदि से हमारा मनोरंजन कर रहे हैं। सिकुड़ती कॉमिक कम्युनिटी के बीच मोहित जी ऐसे गिने चुने लोगो में से हैं जो अपने अथक प्रयासों से भारतीय कॉमिक्स के प्रचार प्रसार में लगे हुए हैं। पेश है प्रख्यात कॉमिक समीक्षक युद्धवीर सिंह द्वारा लिया गया उनके साक्षात्कार का प्रथम भाग। 



Q) - अपने और अपने परिवार के बारे में बताएं, बचपन के शुरुआती वर्ष कहाँ बीते और क्या उस माहौल का लेखन के प्रति रुझान पर कोई असर पड़ा?
मोहित - मेरे पिता 2016 में विजिलेंस (सतर्कता विभाग) से रिटायर हुए और माँ ग्रहणी हैं। मुझसे 8 साल बड़े भाई हैं, जो एक निजी कंपनी में वरिष्ठ अभियंता हैं और 7 साल बड़ी शिक्षिका बहन हैं (दोनों का जन्मदिन एक दिन पड़ता है, भईया को दीदी मिली बर्थडे गिफ्ट में!). पापा अपने 38 साल के करियर के लगभग 30 वर्ष पुलिस में कार्यरत रहे। उनकी नौकरी में अलीगढ़, मेरठ, आगरा और लखनऊ में रहना हुआ। वैसे बीच-बीच में उनका तबादला ग्रामीण इलाकों या अलग शहरों में भी हुआ पर हम लोगो की पढाई के लिए घर बदलने की कम से कम कोशिश हुई। मेरा जन्म अलीगढ़ में हुआ पर बचपन के जो वर्ष ठीक से याद हैं वो आगरा के हैं। जहाँ हम सरकारी अपार्टमेंट्स के एक फ्लैट में रहते थे। ख़ास बात ये थी कि इतनी अधिक संख्या में लोग होने के कारण हर किसी को अपनी एज ग्रुप के कई लोग मिल जाते थे। आती-जाती लाइट, दूरदर्शन-डी डी मेट्रो के ज़माने में अलग-अलग प्रवृति के लोगो से मिलना और कइयों का जीवन देखना एक अलग अनुभव था। मेरा स्कूल, आगरा पब्लिक स्कूल घर से काफी दूर था, तो घर से स्कूल आते-जाते हुए आधा शहर घूमने का अपना ही मज़ा था। एक्स्ट्रा करिकुलर गतिविधियां होती रहती थी, अफ़सोस 5-6 वर्ष ही बिता पाया वहाँ। शुरुआती वर्षो में कहानियाँ, कल्पनाएं लुभाती ज़रूर थी पर इतना विश्वास नहीं था कि खुद लिख सकता हूँ, ना ही बच्चो के अधपके किस्सों को कोई ध्यान से सुनता या गंभीरता से लेता है। इसके बाद 6 क्लास से लेकर स्नातक के बाद तक लखनऊ में रहा जहाँ लेखन की शुरुआत हुई।  

Q) - आपकी पहली रचना क्या थी, क्या आपको याद है?
मोहित - पहली रचना सही से तो याद नहीं क्योंकि छुटपन से ही कहानियाँ, काव्य गढ़ना शुरू किया था पर एक बार नवरात्र में जगरातों के भजन, भेंट सुनकर लगा ऐसा तो मैं भी लिख सकता हूँ। फिर मैंने दुर्गा माँ पर एक भेंट लिखी जो घर में सबको बहुत पसंद आई और मम्मी ने वो भेंट कॉलोनी में जगराता कर रही भजन मंडली को गाने को दी। 

Q) - क्या स्कूल में आपकी लेखन प्रतिभा को किसी टीचर ने पहचाना, या प्रोत्साहन दिया या फिर टिपिकल माइंडसेट कि यह सब बेकार है। 
मोहित - लखनऊ आने के बाद स्कूल का माहौल बड़ा डिस्करेजिंग था। अब पता नहीं कुछ बदलाव आया हो पर तब शिक्षक किसी में प्रतिभा होने का उल्टा मज़ाक उड़ाते थे, कोई ग़लती होने पर किसी अन्य छात्र के गायन, मेरे लेखन या किसी के अच्छे डांसर होने पर ताने मारे जाते थे। स्कूल छोड़ने के बाद भी काफी समय तक आत्मविश्वास की कमी का एक बड़ा कारण मैं स्कूल में शिक्षकों के ऐसे व्यवहार को मानता हूँ। 

Q) - जब आपके लेखन के बारे में घरवालों को पहली बार पता चला तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी? घर से आपको इस दिशा में कितना सपोर्ट मिला?
मोहित - मेरी प्रवृति ऐसी रही कि मैं लेखन अधिक दर्शाता नहीं था घर में, कभी-कभार कोई कविता, कहानी दिखा दी या किसी अखबार-पत्रिका में रचना आ गयी। स्कूल से हतोत्साहित होने के बाद मैं ये नहीं चाहता था कि घर में भी वैसा कुछ हो। घर में कह सकते हैं न्यूट्रल माहौल था। 

Q) - आप पहले अपने-आप लिखने लगे थे या किसी लेखक को पढ़ने के बाद इस दिशा में कुछ करने का मन हुआ?
मोहित - खुद लेखन शुरू किया था, ना घर में पहले कोई लेखक था। कह सकता हूँ भारत में नब्बे का दशक ही ऐसा था कि एक बच्चे तक की कल्पना को ईंधन देने को इतनी बातें थी और एक सुकून था, लोगो में ठहराव था जो अब काफी कम हो गया है।

Q) - इंटरनेट के आम होने से पहले क्या आपने प्रकाशकों को अपनी कविता, कहानियां भेजी थीं? अगर हाँ तो उनका क्या पॉजिटिव रिस्पांस मिला?
मोहित - हाँ, कुछ अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ था। तब ख़राब लगता था जब फोटो के साथ रचना आती थी और स्कूल में किसी को दिखाने का मन तक नहीं करता था क्योंकि काम पूरा न होने की वजह से टीचर ने ज़मीन पर बैठाया हुआ था या 3 दिन पहले किसी बात पर स्कूल असेंबली में बेइज़्ज़ती हुई थी या ऐसा ही कोई बचकाना कारण। 

Q) - 2006 में आप राज कॉमिक्स फ़ोरम्स और अन्य कॉमिक कम्युनिटीज़ से जुड़े, आपके मन में तब क्या भाव थे? क्या आप कॉमिक फैन की तरह जुड़े थे या मौके की तलाश करते एक राइटर के रूप में?
मोहित - 2006 में 12 करने के बाद, कॉलेज में कोई बंदिश नहीं थी इसलिए काफी समय बच जाता था जो खेलने, घर पर टीवी या मित्रों के साथ बीतता था। ऑरकुट का क्रेज ज़बरदस्त था उस समय, नवंबर-दिसंबर 2006 में नेट सर्फ करते हुए एक फैन की तरह राज कॉमिक्स की वेबसाइट और फ़ोरम्स पर आया। उस समय सोचा था कि कुछ दिन की बात होगी पर बाद में कॉमिक, लेखन कम्युनिटीज़ से ऐसा जुड़ा की जीवन की दिशा ही बदल गई। 

Q) - आपने अपनी ऑनलाइन एक्टिविटी का काफी समय लेखकों और कलाकारों के लिए रचनात्मक प्रतियोगिताएं या गतिविधियां आयोजित करने में दिया है, इसके पीछे आपकी क्या सोच रही है?
मोहित - 2006 से अबतक देखें तो 11 साल जीवन का बड़ा हिस्सा होते हैं। इस बीच काफी लिखा, अनेकों रचनाएँ प्रकाशित हुई, कई बातें सीखी पर मुझे लगता है कि 11 साल बाद मुझे जहाँ होना चाहिए था वहाँ नहीं हूँ। मैं चाहता हूँ उन वर्षों में जो मार्गदर्शन मुझे नहीं मिल सका वो अब सक्रीय युवा लेखकों, कवियों, कलाकारों को मिले ताकि वो अपने लक्ष्य तक कुछ वर्ष जल्दी पहुँच सकें। इस कारण समय-समय पर ऐसे कांटेस्ट, एक्टिविटी आयोजित करता रहता हूँ।  

Q) - आपने पिछले 11 सालों में बहुत से शौकिया कलाकारों, लेखकों को धक्का देकर उन्हें अपनी क्षमताओं पर भरोसा करना सिखाया है। कई लोग अपने काम को तराशने या गंभीरता से शुरू करवाने का श्रेय आपको देते हैं। ये मेंटरशिप सभी नहीं करते, इसमें रूचि की आप क्या वजह सोचते हैं?
मोहित - मैं आपको दस तरह की फिलोसॉफी बता सकता हूँ पर सच कहूँ तो मुझे इस बात का जवाब नहीं पता, ना जानने की कोशिश करता हूँ कि पता नहीं जवाब पता होने के बाद बंद ना कर दूँ। वैसे बहुत अच्छा लगता है जब कोई नामी कलाकारों के बीच मेरा नाम लेता है या मुझे श्रेय देता है। 

Q) - लखनऊ में आपके जीवन का एक बड़ा हिस्सा गुज़रा है। आपके और आपके लेखन के ऊपर इस शहर की क्या पॉजिटिव और नेगेटिव बातें रहीं। 
मोहित - लखनऊ में जादू है, खूबसूरत शहर है। वो नब्बे के दशक का ठहराव मेंशन किया था मैंने, वो अब भी महसूस कर सकते हैं यहाँ कि कुछ बातों में। यहाँ की कोई बुरी बात नहीं लगी, हाँ थोड़ा आलसी या कहलें लैड बैक शहर है। 

Q) - पिछले कुछ वर्षों में आपने इतना अधिक काम किया है। आप जब खुद को 2005 में देखते हैं तो आज की अपनी प्रोग्रेस से कितना संतुष्ट होते हैं? क्या अब तक का काम बढ़िया है या चीज़ें और बेहतर हो सकती थीं। 
मोहित - जी! काम की वॉल्यूम देखकर चौंकता हूँ कि इतना तो सोचा नहीं था कभी कर पाऊंगा। हालांकि, इंडी कलाकार वाली दिशा के साथ-साथ कमर्शियल क्षेत्र में पहले से कोशिश शुरू कर देनी चाहिए थी। कमर्शियल माध्यमों से कलाकार की पहुँच और उसका स्तर किसी इंडी कलाकार से हज़ारो गुना बढ़ जाते हैं, इन बातों के फायदे से आगे व्यक्ति अच्छे बजट में अपने मनचाहे प्रोजेक्ट कर सकता है जो इंडी कलाकारों के लिए लगभग नामुमकिन होता है। 

Q) - अपने ब्लॉग्स के बारे में जानकारी दें। क्या मोहितपन (Mohitness) आपका मुख्य ब्लॉग है? उस समय ब्लॉग बनाने की सलाह किसने दी?
मोहित - लेखन, रिसर्च, नॉनफिक्शन और कॉमिक्स के आधार पर मैंने कुछ ब्लॉग्स बना रखें हैं। लेखन में जो मुझे अच्छा लगता है या कोई बड़ी अपडेट होती है वो मैं Mohitness (मोहितपन) ब्लॉग पर पोस्ट करता हूँ, बाकी प्रयोगात्मक काम मैं अन्य ब्लॉग्स पर डाल देता हूँ। Tumblr, Wordpress आदि साइट्स पर मिरर ब्लॉग्स हैं जहाँ बिना किसी श्रेणी के लगभग सारी रचनाएँ, उपडटेस डालता रहता हूँ। पिछले वर्षों में इन ब्लॉग्स के माध्यम से कई पाठकों तक पहुँचा हूँ। अपने प्रयोगों पर लोगो की प्रतिक्रिया मिलती रही है। ब्लॉग पहले बना लिया था पर मेरे काम एक जगह लिखने के बाद अलग से कहीं और पोस्ट नहीं करता था, तो ब्लॉग पर एंट्री कम रहती थी। अपने ब्लॉग मैंटेन करने की सलाह मुझे कलाकार, पब्लिशर विवेक गोयल ने दी। 

Q) - सामाजिक मुद्दों पर आपने बहुत कुछ लिखा और बनाया है, एक राइटर के तौर पर इन विषयों के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या लेखन से आप चीज़ों को कुछ हद तक प्रभावित कर पाते हैं, कुछ अनछुए पहलु उजागर होते हैं?
मोहित - देखिये कहने को सामाजिक थीम होती है पर असल में हर काम एक हाइब्रिड होता है। जहाँ एकसाथ कुछ एलिमेंट्स साथ रखे जाते हैं। अक्सर मेरी कोशिश  होती है कि मेरे काम में लोगो को मैसेज दिखे। सामाजिक परिधि में गढ़ी रचना अपनेआप वास्तविकता के अधिक पास होती है। ऐसी रचनाओं में एक मुद्दे पर लोगो की मानसिकता बदलने तक की शक्ति होती है। हालांकि, इस काम से होने वाले बदलाव को संख्या में नापा नहीं जा सकता।  

Q) - आप अपना सबसे बेस्ट काम किसे मानते हैं और आपने किन कामों को अबतक सबसे ज़्यादा रिस्पांस मिला है?
मोहित - अपनी पसंद की एक कहानी चुनना तो मुश्किल है पर अब तक प्रकाशित कॉमिक्स, ईबुक्स, किताबों में "ज़हनजोरी" कथा संग्रह में कई अच्छी कहानियाँ हैं, फैन फिक्शन में "बचा लो!", काव्य में "अमारा लास्ट विश" मुझे पसंद हैं। जहाँ तक पाठकों की प्रतिक्रिया की बात है तो "मरो मेरे साथ", "84 टीयर्स", "देसी-पन", "नारीपना" पर विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर सबसे ज़्यादा रिस्पांस मिला है। 

Q) - फ्लाइट 297 से आपने कहानियों के साथ कला लाकर प्रकाशित करना शुरू किया। इसके पीछे क्या कहानी थी, इसके बाद आई नियमित शार्ट कॉमिक्स की प्रेरणा क्या थी? 
मोहित - खुद को भाग्यशाली मानता हूँ कि उस समय ऑनलाइन कॉमिक कम्युनिटीज में यह पहल हुई और मुझे ज़िम्मेदारी मिली। एक कांटेस्ट के बाद मेरी हॉरर कहानी चुनी गई और एडिटिंग का ज़िम्मा मुझे मिला। वैसे तो 10 पेज की साधारण सी कॉमिक है पर प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद जुड़े कई कलाकारों में हिम्मत बंधी कि वो कुछ कर सकते हैं। अपनी बात करूँ तो उसके बाद मैंने अनेकों कलाकारों के साथ काव्य कॉमिक्स, शार्ट कॉमिक्स पूरी की जिनको बहुत सी वेबसाइट्स पर ज़बरदस्त रिस्पॉन्स मिला है, कुछ कांसेप्ट इतने विज़ुअल लगते हैं कि मन करता है ये सिर्फ टेक्स्ट, संवाद तक ना सीमित रहे। 

क्रमशः...........

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