Friday 29 December 2017

#उम्मीद मत मारना

घर में पूरा खुशी का वातावरण था, मिश्रा जी भी दुकान बंद करके घर पर आ गये थे , साथ तीन-चार किलो 'रसकदम' भी लेते आए थे, रौशनी तो अब तक आठ पीस खा भी चुकी थीं और सोहन के बड़े भैया तो सबको ठूंस-ठूंस कर रसकदम खिला रहे थे । बात भी कुछ ऐसी ही थी , सोहन ने मैट्रीक परीक्षा में पुरे राज्य में तीसरा स्थान प्राप्त किया था ,सोहन तो दो बजे ही गया था कैफे रिजल्ट देखने , अभी साढ़े तीन बज गये थे पर वह आया नहीं था , दरअसल पूरे बिन्दुधाम में एक ही कैफे था इसलिए भीड़ के कारण फंसा होगा पर तीन बजे तक बिजली आयी थी और रौशनी ने टीवी पर देखा कि झारखंड टाप-टेन में सोहन का भी नाम दिखाया जा रहा था, फिर तो मिश्रा जी बीस मिनट में ही दुकान बंद कर के घर पर आ गए और अभी रसकदम पार्टी चल रहा था। चार बजे तक सोहन भी आ गया और फिर पार्टी-शार्टी और तेज हो गयी ।दो दिन तक सोहन घर पर रह ही नहीं पाया उसका तो सिर्फ मिठाई बाँटने का प्रोग्राम चल रहा था, कभी चाचा के घर तो कभी मौसी के, तो कभी फूआ के , तो कभी गुरुजी के । दो दिन तो इसी तरह बीत गये पर तीसरे दिन दोस्तों ने उसे छोड़ा नहीं , पूरे पाँच हजार खर्चा करवाये उसके दोस्तों ने उस दिन , सोहन सोच रहा था इतने में तो एक एंडड्राइड फोन आ जाता ।

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दिन बीतते रहे दूसरे रविवार को विज्ञान वाले गुरुजी घर आए । सोहन उनसे डरता था इसलिए प्रणाम करके टीवी वाले कमरे मे आ गया था । पापा , भैया , मम्मी और गुरूजी सभी के बीच दो घंटे तक मिटींग चली और फिर वे दोपहर का खाना खाकर चले गए । सोमवार को पापा ने सोहन को बताया कि अब आगे की पढ़ाई वो कोटा से करेगा, वहां से इंजीनियरिंग की तैयारी और फिर आइआइटी निकाल कर परिवार का नाम फिर से रौशन करेगा । सोहन के ग्रुप में सोहन जितना तेज मैथ और साइंस में कोई और नहीं था और साथ ही किसी के पिताजी के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो अपने बच्चों को बाहर भेज सकें । यही तो दिक्कत होती हैं मिडील क्लास वालों की आगे कोई बढ़ने नहीं देता और सरकार पीछे खिसकने नहीं देती । बीच मे ही झूलते रहते हैं ये । न बीपीएल ले सकते हैं और न ही बीएमडब्लयू जिंदगी बस दो पहिए में ही गुजर जाती हैं ।
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दो सप्ताह बाद सोहन के भैया और पापा गए थे सोहन को कोटा छोड़ने । विज्ञान वाले गुरुजी के कुछ विद्यार्थी थे जिन्होंने सोहन को रूम और कोचिंग दोनों दोनों दिलवा दी । दो साल के लिए एक ही बार में पाँच लाख रुपये डाल कर आ गए थे मिश्रा जी । विज्ञान वाले गुरुजी ने चेताया था इसलिए सोहन को नोकिया का एक सिंपल फोन ही थमाये थे मिश्रा जी ने । पाँचवें दिन फोन किये थे मिश्रा जी , फोन करते ही पूछा- "बेटा फोन नहीं करते हो ?"
"पापा बैलेंस नहीं डलवाये हैं मोबाइल में और यहाँ होमवर्क भी बहुत मिलता हैं।" सोहन ने कहा तो पापा कुछ बोलने वाले थे कि उससे रौशनी मोबाइल छीन कर ले गयी , फिर मम्मी से बात हुई फिर भैया से ,भैया थोड़े समझदार थे उन्होंने पूछा - "पढ़ाई कैसी चल रही हैं ,कोई दिक्कत तो नहीं हो रही ?"
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सोहन का उनके भैया से बहुत अच्छी बनती थीं , सोहन ने भैया को सच बताया - "भैया यहाँ बहुत दिक्कत हो रही हैं , सबकुछ इंग्लिश में ही हैं यहाँ और जितना होमवर्क हम एक सप्ताह में बनाते थे उतना तो यहाँ एक दिन में बनाते हैं, टीचर क्या बोलते हैं कुछ समझ में ही नहीं आता।"

सोहन के भैया कुछ देर चुप रहे फिर बोले - "देखो सोहन , धीरे-धीरे सबकुछ ठीक हो जाएगा , मेहनत करो और उम्मीद को कभी मत मारो, उम्मीद को कभी मत मारना सोहन , समझे न। "

"हाँ भैया ।" सोहन ने बहुत धीरे से कहा।

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दो तीन बार फिर सोहन ने भैया को वहां की परेशानियों के बारे में बताया पर हर बार भैया का यही जवाब होता कि "उम्मीद मत मारना" उसके बाद सोहन ने भैया से कभी कोई परेशानी का जिक्र नहीं किया । क्योंकि उसे मालूम होता था कि भैया क्या जवाब देंगे । मानव मन की यही कमजोरी होती हैं या शायद आदत की कोई पूछे "कैसे हो ?" तो ये हमेशा यही जवाब देता है "बढ़िया , मस्त , शानदार।" मन झूठ बोलना और सच छिपाना सीख ही जाता हैं ।
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सोहन ने भैया को कई बार यह सच बताया पर भैया ये सुनना नहीं चाहते थे , क्योंकि ये सच भैया के मन मुताबिक नहीं होता था। सोहन का बार बार ये इंजीनियरिंग की तैयारी छोड़ देने का मन होता पर फिर उसे भैया और पापा के उम्मीदों का ख्याल आता और उसके बाद वह अपने मन को कोई तर्क-वितर्क करने नहीं देता । क्योंकि वो भैया और पापा के उम्मीदों को नहीं मार सकता था ।

रौशनी उससे तीन साल बड़ी थी , दीदी के साथ साथ वह उसकी बेस्ट फ्रेंड भी थी।सोहन ने उसे ये सब बताया तो रौशनी ने कहा - "छोड़ दो ये आईटी की तैयारी करना ,इंट्रेस्ट नहीं और मन नहीं लगता तो ये तैयारी करके कोई फायदा नहीं ,वैसे भी अपने गाँव से अभी तक कोई आईएएस नहीं बना है ,मैं पापा और भैया से बात कर लूंगी।" रौशनी जानती थी कि सोहन का सपना आर्टस लेकर आईएएस बनने का हैं ।
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सोहन जानता था कि रौशनी पापा और भैया से बात कर सकती है और शायद उन्हें मना भी सकती है पर फिर भी सोहन ने रौशनी को मना कर दिया ,उसने कहा कि "नहीं नहीं छोड़ दो ,मैं कर लूँगा मैं पापा और भैया के सपने को नहीं तोड़ सकता ,उनके उम्मीदों को नहीं मार सकता।"

पता नहीं क्यों पर अतिसंवेदनशील लोग ही अतिपीड़ित होते हैं ।ज्यादा 'फील' करने वाले ही ज्यादा 'फूल' होते हैं ।
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मम्मी हमेशा यही पूछती थी कि 'कब आओगे ?' 'हर रोज हनुमान चालीसा पढ़ते हो की नहीं ?' सोहन रोज तो नहीं पर जब भी वो हनुमान चालीसा पढ़ता , हनुमान जी का तो नहीं पर माँ का चित्र मन में जरूर उभरता था ।मम्मी को कहा था उसने की छठ में आएगा ।माँ रोज रौशनी से कलैंडर निकलवा कर छठ के आने के दिनों को गिनवाया करती। अनपढ़ माँ थी पर पहली बार तो सोहन उससे उतना दूर गया था ।

खैर समय बीतते देर नहीं लगती और तब तो बिलकुल भी नहीं जब आप आईआईटी की तैयारी कर रहे हो ।एक सप्ताह रह गये थे छठ को , माँ छठ घाट का चयन कर चूकी थी ,सोहन जितने दिन घर में रहने वाला था उतने दिन की खाने की मैन्यू भी तैयार हो गयी थी।
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पर सोहन घर नहीं पहुँच पाया ,भैया और पापा गए थे लाश लाने कोटा। सोहन ने सुसाइड नोट छोड़ा था - "माफ कर देना भैया , माफ कर देना पापा ,मुझे माफ कर देना मम्मी मैं छठ पर नहीं जा पाऊंगा ,मुझे माफ कर दीजिए भैया और पापा मैं आपके उम्मीदों को नहीं मार सकता।"

#विकास

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