शुक्राल
उत्पत्ति कथा
शुक्रहारा जाति जिसने कश्यप की मानव संतानों से अलग होकर दुर्दांत हत्यारों के रूप में अपना जीवन यापन करने की प्रथा चलाई। शुक्रहारा जाति अपने निर्दयी व्यवहार के लिए पूरे संसार में कुख्यात थी। ऐसा माना जाने लगा था कि शुक्रहारा जाति अपने रास्ते में आने वाले सभी कबीलों को और नगरों को लूटते हुए लोगों को मारते हुए आगे बढ़ना ही जानती है। शुक्रहारा सिर्फ एक ही बात जानते थे कि जो दूसरों से जीने का हक छीन सकता है उसी को जीवन जीने का अधिकार है।
शुक्रहारा जाति का सरदार निर्दयता में सभी शुक्रहारा लोगों से ज्यादा ही खूंखार था उसके आगे असुर भी कम ही लगते थे। शुक्रहारा कभी एक स्थान पर नहीं टिकते थे वे आंधी की तरह आते और तूफान की तरह सब कुछ रौंदते हुए आगे बढते जाते थे।
शुक्रहारा जाति का सरदार था शुक्रसाल जिसकी अभेघ ढाल शाकल्य और अचूक तलवार श्लाका के आगे बड़े से बडे वीर भी अपने हथियार डाल देते थे। (जिसको शुक्रसाल को उसके किसी अज्ञात कुलगुरू ने दिया था।) परन्तु शुक्रसाल की इक कमजोरी थी उसकी पत्नी जिस पर वह अपनी जान न्यौछावर करता था । जो कि कुछ ही दिनों में शुक्रसाल को उसके वंश का कुल दीपक देने वाली थी। लेकिन भाग्य और समय को कुछ और ही मंजूर था । शुक्रहारा जाति के आतंक से त्रस्त होकर मानव सभ्यता के सभी चौदह सम्राटों ने एक जुट-होकर शुक्रहारा जाति पर आक्रमण करने की रणनीति बनाई और शुक्रसाल की ढाल और तलवार से बचाव के लिए वो पहुँच गए शैतान की शरण में।
समय और भाग्य के हाथों मजबूर नियति के निर्णय से परिचत नहीं था और वो अपनी गर्भवती पत्नी और पूरे कबीले के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर जा रहा था। तभी उन पर आक्रमण कर दिया मानव सभ्यता कें 14 सम्राटों की संयुक्त सेना ने। जो युद्ध लड़ा जा रहा था जो सतयुग का सबसे रक्तिम युद्ध बन गया जमीन खून से लाल हो गई और मानव सभ्यता के सम्राटों ने शुक्रहारा जाति को खत्म करने के लिए युद्ध के सभी नियमों को तोड़ते हुए बच्चों और औरतों को भी मारना शुरू कर दिया। भाग्य का खेल कुछ ऐसा चला कि बीच युद्ध में ही शुक्रसाल की पत्नी कुशाला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। और कुशाला को अपने आने वाले पुत्र के जन्म लेने के नक्षत्र की चिंता हो गई कि यह कैसा बालक है जो युद्ध की विभीषिका के बीच जन्म ले रहा है। अभी तक यह नहीं पता कि वो जीवित बचेगा या नहीं। अपने कबीले की ऐसी दुर्गति देखकर शुक्राल का खून खौल गया और वो अपने इष्टदेव की दी हुई शाकल्य और श्लाका लेकर मानव सभ्यता के संयुक्त सेना पर टूट पड़ा और अकेले ही उन सबका खात्मा कर दिया। अपने जीवन में जिसने अनेक लोगों की जाने ली वो भी इतना रक्तपात और जन हानि देख कर द्रवित हो गया यह युद्ध का प्रभाव था या फिर अपने पुत्र की जान को युद्ध में खोने का डर जिसकी वजह से उसका मन ह्रद्य परिवर्तन हो चुका था। लेकिन इंसान को अपने जीवन में सभी किये गये कार्यो का फल इसी जीवन में भुगतना पड़ता है किसी को पहले तो किसी को बाद में । शुक्राल की पत्नी अपने पुत्र को जन्म देते ही इस दुनिया से चल बसी और शुक्राल के हाथ से उसके शाकल्य और श्लाका छूट गये। उसको यह वरदान प्राप्त था कि जब तक यह दोनों उसके हाथों में है वह अविजित रहेगा लेकिन यह उसके पुत्र शुक्राल का दुर्भाग्य था या फिर शुक्रसाल के कर्मो का फल 14 जीवति बचे सम्राटों ने पीछे से उस पर हमला कर दिया। अपने पुत्र को बचाने के लिए उसे अपनी शाकल्य और श्लाका को उठाया नहीं और वे निर्दयी उस पर लगातार हमला करते रहे। अपने पुत्र को बचाते हुए उसने अपनी जान न्यौछावर कर दी लेकिन मरते मरते उसने अपने पुत्र शुक्राल के जीवन की एक दिशा निश्चित कर दी । उन सभी राजाओ को श्राप दिया कि वो हर युग में हर योनि में वो सिर्फ और सिर्फ उसके पुत्र शुक्राल के हाथों मारे जायेगें।
लेकिन अपने पुत्र की जान की चिंता ने उसको तब तक अपने प्राण नहीं छोड़ने दिये तब तक कि उसने अपने शाकल्य और श्लाका को अपने पुत्र की रक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी। शुक्रसाल को मारने के बाद उन सम्राटों ने शुक्राल को मारकर शुक्रहारा जाति को खत्म करने का प्रयत्न किया ये श्राप था या फिर एक पिता का अपने बेटे को जिंदा रखने का प्रयत्न तभी पूरी पूरी को एक आंधी ने अपने आगोश में ले लिया और जब ये आंधी रूकी तो वहाँ न तो शुक्राल था और न हीं वहाँ थी चमत्कारी शाकल्य और श्लाका ।
शाक्ल्य और श्लाका की मायावी शक्तियों ने शुक्राल के लिये एक योग्य गुरू की तलाश कर ली थी और उसे पहुँचा दिया था असुरों के गुरू शुक्राचार्य के पास । उस वक्त शुर्काचार्य भगवान विष्णु के छल से कुपित बैठे थे। शुक्राल के रोने के आवाज से उनका ध्यान वहाँ गया और उसके साथ रक्तिम शाकल्य और श्लाका को देखकर उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से शुक्राल और शुक्रहारा जाति का इतिहास देख लिया और निश्चय किया शुक्राल को अपना एक मात्र मानव शिष्य बनाने का और भगवान विष्णु से अपने अपमान का बदला लेने के लिये। उन्होंने विष्णु भगवान को यह दिखाने के लिए कि अगर गुरू दृढ़ हो और शिष्य योग्य तो एक मानव भी देवताओं से अधिक शक्तिशाली और श्रेष्ट बन सकता है। और निश्चित किया यह अपने कुंटुंब का प्रतिशोध लेगा और उसे इस लायक बनाऊँगा।
गुरू शुक्रचार्य ने उसे अपना संपूर्ण ज्ञान और अपनी संपूर्ण विधांए सिखाई। उसे देवताओं से श्रेष्ट और असुरों से अधिक हिंसक बनाया और बनाया उसे शाकल्य और श्लाका धारक शुक्राल।
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