Thursday 17 December 2015


प्राण कुमार शर्मा को दुनिया कार्टूनिस्ट प्राण के नाम से जानती है। उनका जन्म 15 अगस्त, 1938 को कसूर नामक कस्बे में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। एम.ए. (राजनीति शास्त्र) और फ़ाइन आर्ट्स के अध्ययन के बाद सन 1960 से दैनिक मिलाप से उन्होंने कॉमिक्स की दुनिया में कदम रखा। तब हमारे देश में विदेशी कॉमिक्स का चलन था, ऐसे में प्राण ने भारतीय पात्र गढ़ना शुरू किया और भारतीय कॉमिक्स कला की शुरूआत हुई। भारतीय कॉमिक जगत के सबसे प्रसिद्ध और सफल रचयिता कार्टूनिस्ट प्राण के चाचा चौधरी और साबू जैसे पात्र बेहद लोकप्रिय हुए। और इस तरह कार्टूनिस्ट प्राण भारत में कॉमिक्स की दुनियां के मुखिया के रूप में उभरे।

अपने समय में बेहद लोकप्रिय रही पत्रिका लोटपोट में उनके कार्टून पात्र भी काफी चर्चा में रहे। उसके बाद कार्टूनिस्ट प्राण ने चाचा चौधरी और साबू को मुख्य पात्र बनाकर स्वतंत्र कॉमिक पत्रिकाएं प्रकाशित कीं।

बड़े से बड़ा अपराधी या छोटा-मोटा गुन्डा-बदमाश या जेब कतरा, कुत्ते के साथ घूमने वाले लाल पगड़ी वाले बूढ़े को कौन नहीं जानता। यह सफ़ेद मूंछों वाला बूढ़ा आदमी चाचा चौधरी है। उसकी लाल पगड़ी भारतीयता की पहचान है। कभी-कभी पगड़ी बदमाशों को पकड़ने के काम भी आती है। कहते हैं कि चाचा चौधरी का दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता है इसलिए चाचा चौधरी बड़े से बड़े अपराधियों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर देते थे। चाचा चौधरी की रचना का आधार चाणक्य युक्ति थी, जो बेहद बुद्धिमान व्यक्ति थे। अमेरिका के इंटरनेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ कार्टून आर्ट में उनकी कार्टून स्ट्रिप ‘चाचा चौधरी’ को स्थाई रूप से रखा गया।

कार्टूनिस्ट प्राण ने विदेशी पात्रों से हटकर भारतीय छाप वाले पात्रों की रचना करना ज्यादा उचित समझा जो दिखने में सामान्य हो पर, उसकी क्षमतांए असीमित हों। इसीलिए काफ़ी सोचविचार के बाद उन्होंने सामान्य से दिखने वाले गंजे, छोटे कद के, बूढ़े चाचा चौधरी को बनाया, जिसका दिमाग कम्बप्यूटर से भी तेज था। जो अपने दिमाग से बड़े से बड़ी समरस्या का हल निकालने में सक्षम थे। वहीं जुपिटर ग्रह से आया साबू अपनी भारी भरकम शारीर के साथ असीमित क्षमता से चाचा चौधरी के साथ रहकर उनका सहयोग अपराधिकयों को पकड़ने के लिए करता था। चाचा चौधरी का दिमाग़ कंप्यूटर से भी तेज़ चलता है और साबू को ग़ुस्सा आता है तो ज्वालामुखी फटता है। 1960 के दशक में कार्टूनिस्ट प्राण ने जब कॉमिक स्ट्रिप बनाना शुरू किया, वो वक्त भारत में इस लिहाज से बिल्कुल नया था कि कोई भी देसी किरदार मौजूद नहीं थे।  इसके अलावा डायमंड कॉमिक्स के लिए प्राण ने कई अन्य कामयाब किरदारों को जन्म दिया, इनमें रमन, बिल्लू और श्रीमतीजी जैसे कॉमिक चरित्र शामिल किया।

भारत के मशहूर कार्टूनिस्ट प्राण का निधन4 अगस्त 2014 को 75 साल की उम्र में मंगलवार की रात हो गया। कैंसर से पीड़ित प्राण पिछले दस दिनों से आईसीयू में भर्ती थे।

बदलावों को जारी रखेगी कॉमिक्स की दुनिया:कार्टूनिस्ट प्राण

एक अखबार में छपा कार्टूनिस्ट प्राण साहब का वार्तालाप
एक गलत धारणा बन गई है कि कॉमिक्स की दुनिया सिमट रही है। हालात इसके ठीक उलट, बल्कि बेहतर हैं। मैंने 1960 से कॉमिक्स की दुनिया को बहुत करीब से देखा है। उन अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि कॉमिक्स की दुनिया अपने सबसे बेहतर वक्त में जाने वाली है। मैंने जब इस फील्ड में कदम रखा था तब देश में सिर्फ एक ही प्रकाशक हुआ करता था। आज इनकी संख्या 20 से अधिक है। हां, बीच में एक ऐसा वक्त जरूर आया, जब ऐसा लगा कि कॉमिक्स की दुनिया सिमट रही है। बच्चे इससे दूर हो रहे हैं। यह वक्त था ग्लोबल तकनीक और टीवी के प्रवेश का।

इधर कॉमिक्स की दुनिया स्थिरता के दौर से गुजर रही थी। नए प्रयोग नहीं हो रहे थे। बदलते वक्त के मुताबिक कॉमिक्स की दुनिया नहीं बदल रही थी। लेकिन जैसे ही वक्त की नब्ज को पकड़कर आगे बढ़ने की कोशिशें शुरू हुईं, अच्छे नतीजे सामने आने लगे। दरअसल, कॉमिक्स की ‘नॉस्टैल्जिया वैल्यू’ इतनी मजबूत है कि इसकी हस्ती मिटाना आसान नहीं होगा। मैं 2006 में अमेरिका गया था- वर्ल्ड कार्टून सोसायटी ऑफ अमेरिका में भाग लेने। वहां आम राय बनी कि हमें टीवी की शक्ति को स्वीकार कर उससे होड़ लगाने की बजाय एक दूसरे के पूरक सहयोगी के रूप में खुद को ढालना होगा।

पुराने कॉमिक किरदारों पर टीवी सीरियल बन रहे हैं। और मेरे चर्चित किरदार चाचा चौधरी सहित तमाम कॉमिक किरदारों पर बने सीरियल न सिर्फ टीवी के लिए हिट रहे, बल्कि इनका असर इधर भी हुआ और कॉमिक्स की बिक्री बढ़ी। लोगों तक कॉमिक्स पहुंचने के पहले दो ही जरिये थे – प्रकाशक और विक्रेता। लेकिन अब कॉमिक्स के बाजार में आने के कई माध्यम हैं।

तकनीक के जरिए ऑनलाइन कॉमिक्स लाई गईं और डिजिटल कॉमिक्स की मांग बढ़ी। चूंकि आज के बच्चे ज्यादा स्मार्ट हैं, इसलिए हमारा जोर कॉमिक्स के कंटेंट को भी स्मार्ट बनाने का है। कॉमिक्स के कंटेंट को वक्त के साथ नहीं, उससे आगे रखना होता है। ‘चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से तेज चलता है’ जैसी पंचलाइन एक दौर में इसलिए हिट हुई, क्योंकि यह उस वक्त से आगे थी। लेकिन आज के वक्त में इस पंचलाइन का कोई असर नहीं रह गया है। इससे यही बात साफ होती है कि हमें परंपरागत शैली को छोड़ना होगा।

इसके अलावा एक बात और अहम है। वह यह कि कॉमिक किरदारों से पढ़ने वाले खुद को कनेक्ट रखें, इसके लिए वराइटी पर भी जोर देना चाहिए। आप देखिए कुछेक सुपरपावर के किरदार को छोड़ हर देश, हर संस्कृति से ताल्लुक रखने वाला किरदार ही उस देश में हिट होता है। मसलन, अभी हमने आईपीएल पर आधारित एक कॉमिक्स निकाली। यह अपने देश में हिट हो सकती है, क्योंकि क्रिकेट यहां जुनून है, लेकिन दूसरे देश में शायद इससे लोग खुद को जोड़ न पाएं। मुझे पक्का यकीन है कि कॉमिक्स की दुनिया बड़ी शिद्दत के साथ इन बदलावों को जारी रखेगी।

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