Saturday, 11 February 2017

कॉप प्रस्तुत करते हैं

परिकल्पना- नरेंद्र कोठारी

पटकथा, संवाद और लेखन- राम चौहान


The cross (part 4) : Battle begins



विदूषक के लिये खुद के होश संभाले रखना मुश्किल हो गया था,और जैसा कि होना ही था,कुछ दूर जाकर उसके शरीर ने उसका साथ न देने का फैसला कर लिया।
जमीन पर गिरा अब वो मरने का इंतजार करने लगा।
जब तक ध्रुव और तिरंगा उस तक पहुंचते,वो मर चूका था।
"ये तो मर गया।"उसकी नब्ज चेक करता ध्रुव बोला।
तिरंगा की नजर विदूषक के चेहरे पर टिकी थी।एकाएक उसने हाथ बढ़ाकर उसके चेहरे से मास्क खींच लिया।
"ये है इसकी सच्चाई।"ये तो कोई और ही था।तो विदूषक था कहाँ?
क्रॉस अपनी रिवॉल्विंग चेयर पर झूलता हुआ अतीत में डुबकी लगा रहा था।
Flashback
"
"रुक जाओ रोबो,वर्ना गोली चल जायेगी और अपनी मौत के जिम्मेदार तुम खुद होगे।"सामने भागते रोबो की तरफ तनी हुई थी वो गन।रोबो के कदम ठिठक गए।
वो एक टंनल था,जिसमें रोबो भाग रहा था और पीछे था "क्रॉस"(तब वो क्रॉस नहीं था)
"वेरी गुड।अब अपने हाथ सिर पर रखो और घूम जाओ।"रोबो ने आदेश का पालन किया।
घूमते ही रोबो की लेजर आई चमकी पर सामने वाला ज्यादा फुर्तीला था।बिना वार्निंग चली गोली ने सीधे उसकी लेजर आई का काम तमाम कर दिया।
"उफ्फ्फ"की तेज आवाज के साथ वो नीचे गिर पड़ा।
(क्रॉस)करीब पहुंचा।गन रोबो की तरफ।
एकाएक कदमों की आहटें बढ़ गई।बहुत से लोग उसकी तरफ आ रहे थे।
उसने रोबो को उठाया और एक तरफ हो लिया।पीछे नताशा थी,रोबो आर्मी के साथ।
"पता नहीं कितनी बार ध्रुव को धोखा देगी।उसे देखते ही जबड़े भींच गए थे क्रॉस के।वो रोबो को लेकर कोने में छिपा था,बावजूद इसके नताशा की नजर उसपर पड़ ही गई।
"वो रहा।"नताशा ने उसकी तरफ इशारा किया।
रोबो आर्मी उसकी तरफ लपकी।
तेजी से उसने रोबो को कंधे पर डाला और दौड़ लगा दी।
एकाएक वो किसी चीज़ से टकराया और जमीन पर जा गिरा।रोबो उसके कंधे से छिटक कर दूर जा गिरा।
पीछे पलट कर देखा तो सामने "नताशा"खड़ी थी।"
Flashback over
अचानक ही तेज आवाज ने उसका ध्यान भंग किया।विदूषक के कमरे से आई थी वो आवाज।
क्रॉस चुपचाप वहाँ पहुंचा।
देखा तो विदूषक तोड़ फोड़ कर रहा था।
"ये सारे केमिकल्स तुम्हारे बाप ने यहाँ नहीं छोड़े थे,समझे?"साफ़ गुस्सा झलका उसके शब्दों में।
"सॉरी,पर हर बार तिरंगा मेरे प्लान में टांग अड़ा रहा है, इसलिए आपा खो बैठा।"विदूषक के चेहरे पर मायूसी झलक रही थी।
"यानि,तुम्हे बाहर निकाल कर कोई मतलब नहीं निकला मेरा।"क्रॉस ने मुँह बनाया।
"क्यों न हम अपने शिकार बदल लें।"विदूषक ने ऑफर सरकाया।
"सोचना भी मत।"दहाड़ा क्रॉस।"अगर तुम्हारी परछाई भी उसके आसपास नजर आई,तो तुम इस दुनिया में नजर नहीं आओगे।"
गुस्से में ही क्रॉस बाहर निकल गया।
"नजर तो आऊंगा,शायद तुम नजर नहीं आओगे।"पीछे विदूषक बड़बड़ाया।
रेनू अपने घर से निकल रही थी कि एकाएक ही डोरबेल बज उठी।
"इस वक़्त कौन आया होगा?"सोचते हुए वो आगे बढ़ी।
दरवाजा खोला उसने और साथ ही उसकी आँखें चौड़ी होती चली गई।
ध्रुव कमांडो हेडक्वार्टर पंहुचा।जैसे ही उसने अंदर कदम रखा,एक तेज धमाके के साथ उसकी बाइक उड़ गई।ध्रुव सहित जो भी वहाँ मौजूद था,सबके होश उड़ गए।
ध्रुव बाइक के करीब पहुंचा।
"ये क्या है?"उसे साइलेंसर पाइप में छिपी एक चिट्ठी नजर आई।
("मेरा ख्याल है, तुम अपनी माँ से बेहद प्यार करते हो।")
चिट्ठी में लिखे इन शब्दों ने जैसे उसे पागल ही कर दिया।
मानसी ने जैसे तैसे खुद को संभाला और रेनू के घर पहुँच ही गई।(अब तक उसने खुद के लिये कोई होटल का रूम बुक नहीं किया था)
विदुषक की नशीली गैस ने उसे काफी देर तक बेहोश रखा था।उठते ही वो सीधे हॉल में पहुँची, जहाँ रेनू का कोई अता पता नहीं था।उसने खुद को अपग्रेड करने का फैसला किया था।
अब उसे विदूषक को खत्म करने के लिये ज्यादा बेहतर होने की जरूरत थी।
श्वेता ने अब विषनखा को ढूढ़ने का फैसला किया था।उसकी नजरों में तो उसकी अपहरणकर्ता वही थी।
ध्रुव पागल हुए जा रहा था।
"विदूषक की इतनी हिम्मत की उसकी माँ को चोट पहुँचाने की सोचे,।"उसने हेडक्वार्टर से ही श्वेता को फोन लगाया।
"श्वेता, माँ कहां है?"चिंता उसके शब्दों में झलक रही थी।
"किचन में।क्यों?क्या हुआ?"श्वेता ने उसकी चिंता कम की।
"कुछ नहीं,माँ के साथ ही रहना।"ध्रुव ने लाइन काटी।अब घर तो निकलना ही था उसे।
भारत अब ध्रुव के घर पर नजर रखने के काम पर लग गया था।क्या पता उसे क्यों अब भी विदूषक की चाल का कोई हिस्सा ध्रुव के आसपास लगता था।
"श्वेता,मुझे मार्केट जाना है, मै होकर आती हूँ।"रजनी देवी की आवाज गूंजी।
"मै भी चलती हूँ।"शायद श्वेता की आवाज थी ये।
"अरे नहीं,कोई घर पर भी तो होना चाहिए न।"रजनी देवी शायद कहीं निकलने वाली हैं।
"तो आप रहो।मुझे बताओ क्या लाना है।"श्वेता ने जाने का फैसला किया है।
डिंग डाँग
पुरानी चाल?
नहीं ये तो ध्रुव है।
रजनी देवी ने दरवाजा खोला।
"अरे,क्या हुआ?तुम परेशान क्यों हो?"माँ बेटे की परेशानी कैसे देख सकती है भला।
"कोई आया था क्या?"ध्रुव हड़बड़ाहट में बोला।
"नहीं तो।"
"श्वेता कहाँ है?"
"मार्केट गई है।"
"मैने उसे कहा था यहीं रहने को।"ध्रुव के चेहरे पर गुस्सा नजर आने लगा।
"अरे,हुआ क्या है?"धैर्य की भी सिमा होती है।रजनी देवी की भी थी।
"हुआ नहीं है।होगा।"ध्रुव की आवाज संयत हुई।"तुम्हारा सफाया।"
ध्रुव ने चेहरे से मास्क हटाया।और पीछे छलका।
"विदूषक"
"और तुम्हारा सफाया मै करूँगा।"
वापस आते ही श्वेता की मुलाकात ध्रुव से हो गई।
"भैया,तुम?"श्वेता को ध्रुव की मौजूदगी की उम्मीद नहीं थी वहाँ।
ध्रुव पलटा, उसकी आँखें भीगी थी।
श्वेता पर जैसे बिजली गिरी।
"क्या हुआ भैया?"वो लपककर उसके करीब पहुँची।
ध्रुव ने सामने की तरफ इशारा किया।
सामने रजनी देवी घायल अवस्था में पड़ी थी और पुलिसकर्मी उन्हें अस्पताल ले जाने में लगे थे।
कार के पीछे लगा था तिरंगा,और तिरंगा के पीछे थी।
"विषनखा"
(विषनखा ने ध्रुव के घर की तरफ आना ही था,जब विदूषक को बाहर आते देखा।हुआ क्या था।अंदर जाते ही उसके होश उड़ गए।ध्रुव को काल करके उसने विदूषक को ढूंढने की सोची ही थी कि तीरंगा ने नजर आकर उसकी सारी परेशानी दूर कर दी।)
"अगर विदूषक बच गया तो इसका मतलब "पोलोनियम" नाम का वो जहर नाकाम हो गया।पर कैसे?"विषनखा को उसकी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था।"इसका मतलब अब सबसे खतरनाक जहर इस्तेमाल करना होगा।"
बहुत ज्यादा दूर तक विदूषक भाग नहीं पाया,क्योंकि तिरंगा ने उसे भागने नहीं दिया।उसकी कार के ठीक आगे आ खड़ा हुआ तिरंगा।
वो एक शॉर्टकट था उसके लिए लैब तक पहुचने का।
क्रोस की दी हुई कार चला रहा था इस वक़्त विदूषक।
तिरंगा को सामने देखकर भी उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे।शायद उसे उड़ाने का विचार था उसके मन में।तिरंगा के नेत्र सिकुड़े।
"ये तो कार धीमी कर ही नहीं रहा।"तिरंगा अपने वार के लिये तैयार हो चूका था।एकाएक ही विदूषक ने कार की स्पीड बढ़ाई।
अचानक कहीं से एक क्रॉस आकर कार के अगले पहिये में धंसा और कार हवा में उड़ती हुई तिरंगा के सिर के पास से गुजरी।तिरंगा ने हवा में उछल कर खुद को बचाया।
कार कुछ 20 फिट दूर जाकर पलट गई।
विदूषक घायल अवस्था में बाहर निकलने लगा।
"ओह्ह,घायल हो।"उसकी नजरें उठी।सामने विषनखा थी।"तुम्हारी सारी तकलीफे अब ख़त्म होने को हैं।"
"और तुम्हारी तकलीफे शुरू हो चुकी है।"आवाज पीछे से आई थी।विषनखा पीछे पलटी।
पीछे चंडिका खडी थी।
तिरंगा अबतक उठ चूका था।जैसे ही वो कार की तरफ बढ़ा,किसीने उसके कंधे पर हाथ रखा।
"तुम ठीक तो हो?"तिरंगा पीछे पलटा।
सामने जो इंसान था,उसका एक हाथ नहीं था।बल्कि उस जगह स्टील का क्रॉस मौजूद था।
पीछे जो इंसान मौजूद था,वो थी "रेनू"।
"देखो लड़की,तुम जो कोई भी हो।मेरी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं।बेहतर है अपना काम करो और मुझे अपना काम करने दो।"विषनखा ने चंडिका को दो टूक जवाब दिया और विदूषक को बाहर निकलने लगी।
तेजी से चंडिका का पाँव घुमा और विषनखा के घुटने के पिछले हिस्से पर पड़ा।विषनखा के घुटने टिक गए।वो जमीन पर टिकी ही थी कि चंडिका ने एक किक उसके चेहरे पर जमा दी।
विषनखा जमीन पर जा गिरी।
"ओह्हके"उसके मुँह से निकला।शायद वो जंग के लिये तैयार हो गई थी।
"तुम?"तिरंगा ने पूछा।
"मेरा नाम विराट है।कैप्टन विराट।"उसने रेनू की तरफ इशारा किया।"और ये है मेरी बहन,रेनू।कमांडो हेडक्वार्टर की कैडेट।"
तिरंगा की भंवे उठी।"ध्रुव"उसके दिमाग में घूम गया।
To be continued

1 $type={blogger} :

bhai story acchi h but zyada khichon mat .. full ek saath post karo... interest khatam ho jaata h ..... review full padh kar hi de paunga...

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