Friday 29 December 2017

#अरमान
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सैय्यद मियाँ को पूरे आठ बेटियों के बाद एक लड़का हुआ था। हालाँकि सैय्यद मियाँ को लड़कियों का होना बुरा नहीं लगता था और न ही उन्हें लड़कियों से बहुत ज्यादा प्यार या बहुत ज्यादा नफरत था पर एक बेटा के बाप होने की चाहत ,एक लड़का का बाप होने की चाहत ने उन्हें आठ बेटियों का बाप बना दिया था ।पता नहीं कैसा आकर्षण हैं सैय्यद मियाँ का लड़का के प्रति पर हाँ आठ बेटियों के पिता होने पर बराबर अधिकारों की माँग करने वाली नारी संगठन सैय्यद मियाँ की प्रशंसक जरूर हो सकती है ।
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सैय्यद मियाँ का बिन्दुधाम के मेन-बाजार में थोक सब्जियों का दुकान हैं, अच्छा-खासा व्यापार चलता हैं, पूरे बारह कमरों का घर है । पहले व्यापार में ही व्यस्त रहा करते थे सिर्फ ईद , बकरीद जैसे त्योहारों में ही नमाज अदा करने जाते थे मस्जिद ।पहले मजहब से दूर ही रहा करते थे पर बेटे की चाहत ने इन्हें मस्जिद , मंदिर , बाबा , मजार , मौलवी , तांत्रिको सब के करीब ला दिया था । न जाने क्या-क्या नहीं किया था सैय्यद मियाँ ने बेटे को पाने के लिए , लाखों रुपये उड़ा दिए थे । ऐसा कहा जाता हैं कि अगर आप हृदय की गहराईयों से किसी चीज की ईच्छा करते हैं तो पूरा ब्रह्मांड आपकी ईच्छा पूरी करने में लग जाता हैं।शायद सैय्यद . मियाँ के साथ भी यही हुआ था।
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अंतिम बार वे एक ख्वाजा के दरबार पर गये थे,उनके बाद ही उनका बेटा हुआ था और अब उनका बेटा 'अरमान' ढाई साल का हो गया है। बड़ा ही खूबसूरत है अरमान ,कोई भी देख ले तो बिना गोदी उठाए रह ही नहीं सकता ।'अरमान' सिर्फ रात में ही घर पर रहा करते थे , दिन भर तो वे अपने दादी के साथ कभी इसके तो कभी उसके घर घूमा करते थे । घर के साथ-साथ पूरे मोहल्ले में अरमान के आने से खुशियाँ आ गयी थी । सैय्यद मियाँ इसे ख्वाजा के दरबार की मेहरबानी समझते थे , वे एक बार ख्वाजा के दरबार में जाना चाहते थे शुक्रिया अदा करने को पर व्यापार उन्हें फुर्सत ही नहीं दे रहा था । इंसानों के लिए यही परेशानी है पेट के लिए कमाता हैं और पेट से ही बंधकर रह जाता हैं ।पेट बड़ा ताकतवर होता हैं वह श्रद्धा , मजहब,याद, स्वाभिमान , इच्छाए, सपने सबको मार सकता हैं पर पेट से भी ताकतवर होता हैं प्रेम , प्यार । सैय्यद मियाँ अरमान से बेहद प्यार करते थे इसलिए वे ख्वाजा के दरबार जाना चाहते थे उनका शुक्रिया अदा करने और अरमान की सलामती की दुआ माँगने।
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उनकी यह दृढ़ इच्छा आखिरकार पुरी हो ही गई।वे अगले महीने ख्वाजा के दर पर थे ।अरमान भी उनके साथ गया था , मौलवी साहब अरमान को देखते ही बोल गए थे , "माशाअल्लाह , ये तो खुदा का चमत्कार है ,इतना खूबसूरत वाह वाह" फिर उन्होंने पूछा "अरमान का खतना करवाए कि नहीं मियाँ ?"
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"नहीं मौलवी साहब , हमलोग नहीं करवाते अच्छा नहीं लगता ये सब."
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"पर ये जरूरी होते हैं मियाँ " मौलवी साहब बोले तो सैय्यद मियाँ चुप हो गए और काफी देर तक चुप ही रहे फिर मौलवी साहब ने ही बोलना शुरू किया "खतना करना प्राकृतिक सुन्नतों (पैगंबरो की सुन्नतों) में से हैं । यह बच्चे के लिए अनिवार्य हैं क्योंकि इसका संबंध तहारत (पवित्रता) से भी होता हैं जो नमाज के सही होने के लिए शर्त है । अरे खतना हमें बहुत सी बीमारियों से भी बचाती है भाईजान । एचआईवी से भी बचाने में खतना बहुत मददगार होती हैं भाईजान।" ख्वाजा के मजार पर सैय्यद मियाँ जितनी देर रहे मौलवी साहब उन्हें अरमान के खतना के बारे में ही बोलते रहे ।मौलवी साहब ने कहा कि "ख्वाजा के मेहरबानी से अरमान हुआ है तो ख्वाजा के लिए आपको अरमान का खतना कराना ही होगा।"
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घर आने के एक सप्ताह बाद ही सैय्यद मियाँ के साथ एक आदमी घर पर आए। जब अरमान के अम्मी और दादी को पता चला कि वे अरमान का खतना करने आए हैं तो उन्होंने सैय्यद मियाँ का विरोध करना शुरू कर दिया।अरमान के अम्मी ने नौ महीने तक अरमान को अपनी कोख में रखा था वो अभी भी अरमान के तन और मन से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करती ।अरमान के शरीर पर पड़ने वाला हल्का सा भी चोट सौ गुणा होकर अम्मी को तकलीफ देता था , क्योंकि वो माँ थी। घर में सबको खुली आजादी थी इसलिए सबने विरोध किया पर सैय्यद मियाँ अड़े रहे ।आज घर के सभी सदस्यों को , सैय्यद मियाँ को भी यह अहसास हुआ कि घर में आजादी तो हैं पर लोकतंत्र नहीं ,ये सिर्फ नाममात्र की आजादी थी ।आखिरकार अरमान का खतना हो गया।सैय्यद मियाँ बहुत खूश थे। सब कार्यक्रम निपटा कर सैय्यद मियाँ दुकान चले आए।उन्होंने खुद को विश्वास दिलाया कि ख्वाजा अब उनसे बहुत खुश हैं।
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शाम सात बजे तक सैय्यद मियाँ को घर से फोन आया । अरमान की अम्मी थी बोल रही थी कि "अरमान रोये जा रहा है , न खा रहा है न खेल रहा है ।"
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सैय्यद मियाँ ने कहा "ये दर्द के कारण हो रहा है ,एक-दो दिन में अपने आप ठीक हो जाएगा।"
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दो दिन हो गया था पर अरमान का रोना रूक ही नहीं रहा था,सिर्फ अम्मी का दूध पी रहा था इसके अलावा वो या तो रोता या फिर सोता। सैय्यद मियाँ भी बहुत ज्यादा चिंतित थे । जब अरमान की अम्मी उनके सामने रोने लगी तो वे हकीम साहब को लेकर आए।हकीम साहब ने कहा "ये दर्द के कारण ही हो रहा है , कुछ महलम और चूरण देता हूँ ,तीन-चार दिन में ठीक हो जाएगा , चिंता की कोई बात नहीं है।"
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ये तीन दिन अरमान के लिए बहुत तकलीफदेह था वो हमेशा रोता ही रहता ,पिछली रात को सोया भी नहीं , इससे अरमान की अम्मी बहुत परेशान हो गयी । अगले सुबह ही अरमान को लेकर डॉक्टर के पास गयी । अरमान का जाँच करने के बाद डॉक्टर भी थोड़ा परेशान हो गया , डॉक्टर ने सैय्यद मियाँ को बुलवाया ,डॉक्टर ने सैय्यद मियाँ से कहा - "सर किसी माहिर आदमी से ये सब करवाते , नौसिखिया से करवाने की क्या जरूरत थी ?"
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"हमलोग ये सब करवाते नहीं है डाक्टर साहब बस अल्लाह से वादा किया था इसलिए किया और वो नौसिखिया नहीं थे ,मैंने पता कर के ही उन्हें बुलवाया था।" सैय्यद मियाँ ने धीरे-धीरे कहा तो डॉक्टर साहब इसको छोड़ कर सीधा 'मेन' मुद्दा पर आते हुए कहना शुरू किया - "देखिए सर ,खतने की वजह से बच्चे को संक्रमण हो गया था और आपलोग इतने दिन बाद आए हैं , संक्रमण बहुत फैल गया है पर मैं कोशिश कर रहा हूँ , एक-दो दिन यहाँ कोशिश करता हूँ नहीं तो बाहर रेफर कर दूँगा।"
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सैय्यद मियाँ कोशिश और रेफर का मतलब समझते थे , उन्होंने डॉक्टर को जोर देते हुए कहा - "आप पैसे की चिंता नहीं कीजिएगा सर , बस मेरे बच्चे को ठीक कर दीजिएगा।"
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सैय्यद मियाँ को अपने फैसले पर पछतावा हो रहा था , वे सब को देख तो रहे थे पर किसी से नजर नहीं मिला रहे थे और न ही किसी से बात कर रहे थे । अरमान की अम्मी का भी यही हाल था वो बस रोये जा रही थी । एक दिन से पूरा परिवार अस्पताल में ही था ,पैंतालीस हजार खर्च हो चुके थे , सबको आशा थी कि अरमान यही ठीक हो जाएगा।
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पर दूसरे दिन डॉक्टरों ने जवाब दे दिया , डॉक्टरों ने कहा की 'अरमान को हावड़ा ले जाइये'
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सैय्यद मियाँ गाड़ी भी ले आए थे पर अब इसका कोई उपयोग नहीं हो पाना था । अरमान चुप हो गया था ,हमेशा के लिए चुप हो गया था ।सैय्यद मियाँ ने सबको देखा पर कुछ समझ नहीं पाए , किसी की भी आवाज उनके कान के अंदर तक आ ही नहीं पा रही थीं , उन्हें तो बस इतना ख्याल था कि आधा घंटा में हावड़ा निकलना है ।वे सीधा वार्ड की ओर गए ।उन्होंने अरमान को देखा ,भरपूर आँखों से देखा ।अरमान आज बहुत खूबसूरत लग रहा था जैसे मानों खुद खुदा उसके चेहरे में उतर आया हो।
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वे उन्हें देखते रहे पर धीरे-धीरे अरमान धुंधला होते जा रहा था ।सैय्यद मियाँ को समय का ख्याल आया कि हावड़ा निकलना है ,उन्होंने तुरंत अरमान को गोदी में उठा लिया पर आज अरमान भारी लग रहा था कुछ ज्यादा भारी । सैय्यद मियाँ के हाथ अरमान को संभाल नहीं पा रहे थे ,उनके हाथ काँपे जा रहे थे,उन्होंने अरमान को वही रख दिया जहाँ से उन्होंने उठाया था । अरमान के शरीर के तरह ही उनको अपना वजूद भी भारी लगने लगा था । उन्होंने चारों ओर देखा सब रो रहे थे , सबकी आँखें गीली थी उनके भी आँखों से आँसू आ रहा था । हाथों की कपकपाहट धारे-धीरे पूरे शरीर में फैलने लगी , उनका मस्तिष्क भी कपकपाने लगा । उनका मस्तिष्क यह कपाकपाहट सह नहीं सकता था उन्होंने जोर से चिल्लाया "अरमान" और वे वही धड़ाम से गिर गये । वो जो वहां गिरे फिर उठ नहीं पाये ,वे हमेशा के लिए गिर गये थे , उनका उठना अब संभव नहीं था,उनकी साँसें रूक चुकी थी ।पहले पिंजरा खुल चुका था अब पंछी भी हमेशा के लिए उड़ गया ।

#विकास

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