अभिशप्त योद्धा (An Accursed Warrior) : Season 2 [Capter 7] - निशांत मौर्य
COP प्रस्तुत करते हैं
लेखक - निशांत मौर्य
यक्षों का निवास स्थल - भूतकाल
" उन साधारण मनुष्यों ने ये दुस्साहस करके अपनी मृत्यु को आमंत्रण दिया है!",
यक्षराज अत्यंत क्रोधित थे।
" शांत हो जाइये पिताजी, उन्होंने आपसे आपका पुत्र छीना था और हमने उनसे उनकी पुत्री छीन ली",
अक्षांश ने अपने पिता को शांत करने के उद्देश्य से कहा यद्यपि इस बात का प्रभाव यक्षराज से अधिक यक्षांशी पर हुआ।
"आपने हमारे राज्य की रक्षा की हम इसके लिए आपके सदा आभारी रहेंगे और हमें खेद है कि आपके साथ इतना बड़ा विश्वासघात हुआ परंतु हमारा विश्वास कीजिये इसमें हमारे पिता लेशमात्र भी दोषी नही हैं",
यक्षांशी ने परिस्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया।
" विश्वासघातियों पर एक बार पुनः विश्वास ! असंभव", अक्षांश ने यक्षांशी की बात को बीच से ही काट दिया।
" समझने का प्रयत्न कीजिये यक्षकुमार, हमारे चाचाश्री की भूल के कारण आप सम्पूर्ण यक्षनगर को दोषी नही ठहरा सकते।", यक्षांशी ने कहा।
यक्षांशी और अक्षांश के मध्य तीक्ष्ण विवाद जारी था जिसका समापन यक्षराज के शब्दों के साथ हुआ,
" व्यर्थ विवाद आवश्यकता नही है पुत्र। अब धर्मपुत्र की उपस्थिति में ही निर्णय होगा कि दोषी कौन है। और एक विशेष बात ये बालिका हमारे वरदान से जन्मी है अतः यह भी हमारी पुत्री के समान है, इसे किसी भी प्रकार का कष्ट नही होना चाहिए|"
स्वर्गलोक-
अग्निपुत्र कृशानु अपने कक्ष में विचारमग्न टहल रहे थे। ललाट पर चिंतन के भाव उनके मुख के तेज को मध्दिम कर रहे थे, तभी उनकी विह्वलता को उस वाणी ने विराम दिया।
" क्या हुआ मित्र जब से हम पृथ्वी भ्रमण से लौटे हैं आप अत्यंत विचलित प्रतीत होते हैं"
"हम लौटे ही कहाँ हैं देवांग! हमारा हृदय तो निर्झर के उसी जल में गोते लगा रहा है जिसे उस सुंदरी ने अपने कोमलंगो से स्पर्श किया था।", ध्वनि में ठहराव था।
" उनका नाम सुंदरी नही यक्षांशी हैं देवपुत्र, यक्षनगर की युवराज्ञी हैं वो। मुझे ज्ञात हुआ है उनका जन्म यक्षों के आशीष से हुआ है। केवल सौंदर्य में नही वरन कुमारी यक्षांशी युद्धकला में भी उतनी ही श्रेष्ठ हैं।..."
देवांग ने कृशानु को यक्षांशी का विस्तृत विवरण देना आरम्भ किया।
"आपने मेरे हृदय को प्रफुल्लित कर दिया मित्र। एक श्रेष्ट मानव कन्या का अर्धांगिनी के रूप में चयन हमारे पिताश्री को भी गर्वित कर देगा।", अग्निपुत्र कृशानु के नेत्रो में चमक स्पष्ट थी।
यक्षों का निवास स्थल -
" ये भोजन यथाशीघ्र लेकर लौट जाओ सेवक, मुझमे अधिक धैर्य शेष नही है और तुम्हे क्षति पहुँचाने की मेरी कोई विशेष इच्छा नही है।",
यक्षांशी ने उस दास से कहा जो काफी समय से उसके भोजन ग्रहण करने की प्रतीक्षा में खड़ा था।
" अपना क्रोध इस भोजन और निर्दोष दास पर प्रदर्शित पर मत व्यर्थ कीजिये कुमारी। ये तो सिर्फ हमारी आज्ञा का पालन कर रहा है जैसे हम आपका उचित सत्कार करने की अपने पिताश्री की आज्ञा का पालन कर रहे हैं|",
अक्षांश के कक्ष में प्रवेश का भान इस यक्षांशी को इन शब्दों को सुनने के पश्चात् हुआ।
" यक्षकुमार आप अपना शिष्टाचार भूल चुके हैं अथवा आपको किसी ने सिखाया ही नही कि किसी कन्या के कक्ष में बिना आज्ञा के प्रवेश वर्जित होता है|",
" अतिथि सेवन से बड़ा भी कोई शिष्टाचार होता है क्या ?"
" अतिथि या अपहृत?" यक्षांशी ने सीधे अक्षांश के नेत्रों में देखते हुए पृश्न किया।
प्रथम बार अक्षांश ने यक्षांशी को इतने निकट से देखा। उसके तीखे नेत्र सीधे अक्षांश के हृदय तक जा चुभे। कमल की अधखिली पंखुड़ी के समान खुली पलकों ने पलों को थाम लिया।
(अद्भुत)
अक्षांश के मुख से यह शब्द निकलते निकलते रह गया।
" हमने आपका अपहरण क्रोधवश किया था राजकुमारी, आपको कष्ट पहुँचाने के निमित नही। कुछ दिवस में ही दोषी निर्णय हो जायेगा। दोषी को उचित दंड मिलेगा और आपको स्वतन्त्रता, तब तक आप हमारा आतिथ्य स्वीकार कीजिये।", अक्षांश के स्वर में सहानुभूति के साथ आकर्षण भी उपस्थित था।
वर्तमान काल
राजनगर में कहीं
"अरे अरे आज सुपर कमांडो ध्रुव की जबान लड़खड़ा रही है च च च...ऐसा कैसे हो सकता है, हाँ ऐसा हो ही नही सकता।", चंडिका ने सिर खुजाते हुआ कहा।
" तुम कहना क्या चाहती हो?"
ध्रुव अपने माथे का पसीना पोंछ रहा था।
"अरे दिमाग के जादूगर को मेरी सीधी सी बात समझ में नही आ रही। ध्रुव की जुबान अगर लड़खड़ा रही है तो वो ध्रुव की जुबान है ही नही|"
" मैंने सही कहा न मिस्टर नक्षत्र ?"
कथा जारी है...........
नोट - कथा को पूरी तरह से समझने के लिए इस कथा के पिछले भाग पढ़िए
अभिशप्त योद्धा (An Accursed Warrior) : Season 2
लेखक - निशांत मौर्य
Chapter 7
यक्षों का निवास स्थल - भूतकाल
" उन साधारण मनुष्यों ने ये दुस्साहस करके अपनी मृत्यु को आमंत्रण दिया है!",
यक्षराज अत्यंत क्रोधित थे।
" शांत हो जाइये पिताजी, उन्होंने आपसे आपका पुत्र छीना था और हमने उनसे उनकी पुत्री छीन ली",
अक्षांश ने अपने पिता को शांत करने के उद्देश्य से कहा यद्यपि इस बात का प्रभाव यक्षराज से अधिक यक्षांशी पर हुआ।
"आपने हमारे राज्य की रक्षा की हम इसके लिए आपके सदा आभारी रहेंगे और हमें खेद है कि आपके साथ इतना बड़ा विश्वासघात हुआ परंतु हमारा विश्वास कीजिये इसमें हमारे पिता लेशमात्र भी दोषी नही हैं",
यक्षांशी ने परिस्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया।
" विश्वासघातियों पर एक बार पुनः विश्वास ! असंभव", अक्षांश ने यक्षांशी की बात को बीच से ही काट दिया।
" समझने का प्रयत्न कीजिये यक्षकुमार, हमारे चाचाश्री की भूल के कारण आप सम्पूर्ण यक्षनगर को दोषी नही ठहरा सकते।", यक्षांशी ने कहा।
यक्षांशी और अक्षांश के मध्य तीक्ष्ण विवाद जारी था जिसका समापन यक्षराज के शब्दों के साथ हुआ,
" व्यर्थ विवाद आवश्यकता नही है पुत्र। अब धर्मपुत्र की उपस्थिति में ही निर्णय होगा कि दोषी कौन है। और एक विशेष बात ये बालिका हमारे वरदान से जन्मी है अतः यह भी हमारी पुत्री के समान है, इसे किसी भी प्रकार का कष्ट नही होना चाहिए|"
स्वर्गलोक-
अग्निपुत्र कृशानु अपने कक्ष में विचारमग्न टहल रहे थे। ललाट पर चिंतन के भाव उनके मुख के तेज को मध्दिम कर रहे थे, तभी उनकी विह्वलता को उस वाणी ने विराम दिया।
" क्या हुआ मित्र जब से हम पृथ्वी भ्रमण से लौटे हैं आप अत्यंत विचलित प्रतीत होते हैं"
"हम लौटे ही कहाँ हैं देवांग! हमारा हृदय तो निर्झर के उसी जल में गोते लगा रहा है जिसे उस सुंदरी ने अपने कोमलंगो से स्पर्श किया था।", ध्वनि में ठहराव था।
" उनका नाम सुंदरी नही यक्षांशी हैं देवपुत्र, यक्षनगर की युवराज्ञी हैं वो। मुझे ज्ञात हुआ है उनका जन्म यक्षों के आशीष से हुआ है। केवल सौंदर्य में नही वरन कुमारी यक्षांशी युद्धकला में भी उतनी ही श्रेष्ठ हैं।..."
देवांग ने कृशानु को यक्षांशी का विस्तृत विवरण देना आरम्भ किया।
"आपने मेरे हृदय को प्रफुल्लित कर दिया मित्र। एक श्रेष्ट मानव कन्या का अर्धांगिनी के रूप में चयन हमारे पिताश्री को भी गर्वित कर देगा।", अग्निपुत्र कृशानु के नेत्रो में चमक स्पष्ट थी।
यक्षों का निवास स्थल -
" ये भोजन यथाशीघ्र लेकर लौट जाओ सेवक, मुझमे अधिक धैर्य शेष नही है और तुम्हे क्षति पहुँचाने की मेरी कोई विशेष इच्छा नही है।",
यक्षांशी ने उस दास से कहा जो काफी समय से उसके भोजन ग्रहण करने की प्रतीक्षा में खड़ा था।
" अपना क्रोध इस भोजन और निर्दोष दास पर प्रदर्शित पर मत व्यर्थ कीजिये कुमारी। ये तो सिर्फ हमारी आज्ञा का पालन कर रहा है जैसे हम आपका उचित सत्कार करने की अपने पिताश्री की आज्ञा का पालन कर रहे हैं|",
अक्षांश के कक्ष में प्रवेश का भान इस यक्षांशी को इन शब्दों को सुनने के पश्चात् हुआ।
" यक्षकुमार आप अपना शिष्टाचार भूल चुके हैं अथवा आपको किसी ने सिखाया ही नही कि किसी कन्या के कक्ष में बिना आज्ञा के प्रवेश वर्जित होता है|",
" अतिथि सेवन से बड़ा भी कोई शिष्टाचार होता है क्या ?"
" अतिथि या अपहृत?" यक्षांशी ने सीधे अक्षांश के नेत्रों में देखते हुए पृश्न किया।
प्रथम बार अक्षांश ने यक्षांशी को इतने निकट से देखा। उसके तीखे नेत्र सीधे अक्षांश के हृदय तक जा चुभे। कमल की अधखिली पंखुड़ी के समान खुली पलकों ने पलों को थाम लिया।
(अद्भुत)
अक्षांश के मुख से यह शब्द निकलते निकलते रह गया।
" हमने आपका अपहरण क्रोधवश किया था राजकुमारी, आपको कष्ट पहुँचाने के निमित नही। कुछ दिवस में ही दोषी निर्णय हो जायेगा। दोषी को उचित दंड मिलेगा और आपको स्वतन्त्रता, तब तक आप हमारा आतिथ्य स्वीकार कीजिये।", अक्षांश के स्वर में सहानुभूति के साथ आकर्षण भी उपस्थित था।
वर्तमान काल
राजनगर में कहीं
"अरे अरे आज सुपर कमांडो ध्रुव की जबान लड़खड़ा रही है च च च...ऐसा कैसे हो सकता है, हाँ ऐसा हो ही नही सकता।", चंडिका ने सिर खुजाते हुआ कहा।
" तुम कहना क्या चाहती हो?"
ध्रुव अपने माथे का पसीना पोंछ रहा था।
"अरे दिमाग के जादूगर को मेरी सीधी सी बात समझ में नही आ रही। ध्रुव की जुबान अगर लड़खड़ा रही है तो वो ध्रुव की जुबान है ही नही|"
" मैंने सही कहा न मिस्टर नक्षत्र ?"
कथा जारी है...........
नोट - कथा को पूरी तरह से समझने के लिए इस कथा के पिछले भाग पढ़िए
7 $type={blogger}
Yaksh lok ki sair karaane ka dhanyawad Nishant bhai, Maine abhi pichhle bhag nahi padhe hain isliye kahaani thoda kam samajh aayi lekin aapne jis bhasha ka prayog kiya hai shuruwaat me wo Yakshlok ki hi lagti hai.
ReplyMain pahle poora padhta hun, adbhut kathashaili.
Kahaani ke agle bhaag ki pratiksha rahegi.
Nishant bhai...aapne ye seedhe chapter 7 likha h kya...season 2 ka koi or chapter ni mil rha
ReplySeason 2 Isliye likha hai kyunki ye kahani maine 1 saal baad continue ki.... 1st season me kahani adhoori thi
ReplyDhanyawad Rajnish bhai.... har chapter ka review chahiye mujhe
ReplyAn accursed warrior: lost year kaha upload hai.ya abhi upload Kari nahi hai?
ReplyKafi acha likha hai Nishant Bhai , agla part kb aa raha hai
Replybhai agla part kb aayegi ye story kaafi acchi
Replylagi