Friday 29 December 2017

 सिंदूर मिटाना होगा

बोडो की माँ पिछले एक घंटे से उसी गंदे दरवाजे की चौखट पर बैठी हुई है,एक हाथ माथे पर और दूसरा जमीन पर पड़ा हुआ है और उसकी आँखें एकटक घर के बाहर खड़े सूखे बबूल के पेड़ को बस अपलक देखे जा रही हैं , आँखों मे ग़म के भाव नहीं है पर निराशा के भाव जरूर हैं और प्रायः इनकी आँखों मे यह निराशा का भाव तब ही रहता हैं जब इन्हें मालूम हो कोई ग़म का पहाड़ बहुत जल्द टूटने वाला है ।.
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. हालाँकि बात बोडो के पिता "चेटका" की हैसियत जितनी ही छोटी थी,पर फिर भी इस बात ने घर के सभी सदस्यों की नींद उड़ा रखी थीं, दरअसल बोडो पिछले चार दिनों से बुखार से पीड़ित था ,बहुत ही तेज बुखार आया था बोडो को । बोडो के दादाजी कह रहे थे कि "मेरे जन्म से इस घर में आजतक कोई बीमार नहीं पड़ा , मैंने तो आजतक किसी डॉक्टर का चेहरा नहीं देखा , इ सब इ साला चेटका का किया धरा हैं, अरे कितनी ही उम्र हुई है मेरे बोडो की , अभी नौ साल का ही तो है , क्या जरूरत थी इसको खेत ले जाने की ? दिनभर तो गाय चराता ही रहता हैं , मेरे बच्चे से न जाने कितना काम करा लिया । हे आकाश में विचरने वाले अग्निदेव थोड़ी सी तो बुद्धि दो इस कूबड़ को ।" .
चेटका ओसरा के कोने में बैठा अपने पिता के तानों को चुपचाप सुन रहा था । बोडो को खेत ले जाने का अफसोस उसे भी था और भीषण गर्मी में उसके चेहरे से निकल रहे. पसीने के साथ उसके आँखों से बह रहे आँसू इस बात की गवाही दे रहे थे , पर वो क्या करता ? वो भी तो मजबूर ही था, एक तो पहाड़ी जमीन पर हल चलाना बहुत मुश्किल होता हैं ऊपर से इस बार उसे ग्रामप्रधान के एक बंजर टुकड़े पर भी खेती करनी थी , इसलिए उस दिन वह मदद के लिए बोडो को लेते गया था पर उसी रात को ही बोडो तेज बुखार से पीड़ित हो गया । दूसरे दिन बोडो के दादाजी ने कुछ जड़ी-बूटी दी पर बुखार नहीं उतरा, बोडो की माँ सिर पर बार -बार भींगे हुए कपड़े डालती पर बुखार था कि उतर ही नहीं रहा था । .
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क्रशर मालिक ने पत्थर तोड़ने की नई-नई मशीनें लगवाई थी इसलिए पहाड़ पर रह रहे अठारह परिवारों में किसी भी परिवार को पिछले तीन महीने से कोई काम न मिला था। यही कारण था कि चेटका किसी के भी घर मदद माँगने न गया था, बोडो की माँ गई थी पर खाली हाथ ही लौटी थी सभी के घरों से , बोडो के दादाजी तरह-तरह के जड़ी-बूटी दे रहे थे पर कोई असर न हो रहा था । .
चेटका ने अपने हाथों से अपने आँसुओं को पोछा और धीरे से अपनी पत्नी के पास गया और पीछे से अपनी पत्नी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा - "जाओ कुछ अच्छा बना लो,वो लोग आते ही होंगे,बोडो को भी भूख लगी होगी और तुम चिंता मत करो वे लोग न बहुत पढे-लिखे डॉक्टर हैं, वो बोडो को दो-तीन दिन में ही ठीक कर देंगे।"
चेटका की पत्नी सीता के चेहरे पर इस बात पर कोई भाव नहीं आया पर उसकी आँखों ने चेटका की आँखों के जरिए चेटका की अंतरात्मा से बिना कोई शब्द के कई सवाल पूछ डालें , चेटका ने नजरें चुराकर अपनी आँखें नीचे कर ली और आत्मग्लानि के भाव से अपने पिता के कमरे की ओर बढ़ गया । .
"मुझे माफ कर दीजिएगा बाबूजी" चेटका दरवाजे पर खड़ा था, उसके पिता खटिया पर बैठे खिड़की से बाहर देख रहे थे, चेटका ने अपने पिता के पीठ. के पीछे से वही बात दोहरायी पर उसके पिता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ,इस बार चेटका तेजी से जाकर अपने पिता के पैरों के पास जमीन में बैठ गया और धीमे से बोला - "मुझे माफ कर दीजिए बाबूजी , मेरे पास कोई और रास्ता नही है, वे पढ़ें-लिखे लोग हैं बोडो जल्दी ही ठीक हो जाएगा ।"
इस बार चेटका के पिताजी की प्रतिक्रिया बहुत ही तीव्र थी वे तेजी से खड़े हुए चेटका को लात मारी और चिल्ला कर कहे - "अरे तुम हम सब की आत्मा को बेचकर उसे ठीक करना चाहते हो इससे तो अच्छा की उसे मर ...." इतना ही कह पाये थे वो फिर उनकी जिव्हा कोई शब्द नहीं निकाल पाई , वो भी जमीन पर बैठ गये और चेटका को गले लगाकर रोने लगे, बाप-बेटे दोनों रो रहे थे ,दोनों के आँखों से आँसू बह रहे थे कि तभी बाहर से एक आवाज सुनाई दी । .
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"ओ चेटका , चेटका रे घर में हैं कि नहीं।"
चेटका तेजी से बाहर की ओर भागा , सीता भी बाहर की ओर आई पर चेटका के पिता नहीं आए ।
दरवाजे पर तीन लोग थे , एक चेटका की ही तरह कोई आदिवासी ,एक डॉक्टर और एक चर्च के फादर।
चेटका को देखकर फादर ने पूछा - "सारी मूर्तियाँ और फोटो फेंक दी हैं न ? चेटका ने धीरे से सिर हिलाते हुए 'हाँ' कहा ।
"चलो ठीक है ,अब घर के सारे सदस्यों को बुलाओ , मैं पवित्र बाइबिल पढ़ूगा और तुम सब दोहराओगे , फिर तुम पर भी प्रभु ईशु की कृपा होने लगेगी और तुम भी दुख भरे संसार में सुख से रह सकोगे ।" फादर ने अंदर आते हुए कहा ।
चेटका की पत्नी सीता को मालूम था कि इसमें समय लगेगा , इसलिए उसने सर झुका कर नम्रता से कहा - "फादर अगर पहले डॉक्टर साहब बोडो को देख लेते तो अच्छा...."
सीता की आवाज को बीच मे ही काटते हुए उस डॉक्टर ने कहा "नहीं पहले ये सब करना होगा उसके बाद बोडो को देखुगा।"
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फादर की नजरें भी चेटका की पत्नी सीता पर पड़ी और उसने उसे घूरते हुए कहा - "तुमलोगो ने हमलोगों के साथ धोखा किया हैं, तुमलोगो ने कहा कि हमने सब कुछ मिटा दिया हैं पर तुमने तो अभी भी माँग में सिंदूर भर रखा हैं , तुमलोग मेरा धर्म भ्रष्ट करना चाहते हो, हे प्रभु मुझे माफ करना , चलो यहाँ से चलो..." फादर दरवाजे से आने को मुड़े पर सीता उनके पैरों में गिरकर रोते हुए बोली -
"ये मेरे सुहाग की निशानी है "
फादर ने इस बार गुस्से से कहा - "सिंदूर मिटाना होगा ।"
चेटका चुपचाप खड़ा था सिर उसका झुका हुआ था सीता कुछ पल फादर के पैरों के पास बैठी रही फिर अचानक उठ कर बाहर गयी और घड़े में रखे पानी को सिर पर डाल लिया तथा माँग से सिंदूर मिटा दिया।
बाइबिल का पाठ तीन-चार घंटे चला फिर डॉक्टर ने बोडो को देखा, चार दिन की दवा दी और बोडो तीन ही दिन में एकदम भला-चंगा स्वस्थ हो गया ।
#विकास

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