Sunday 31 July 2016

*【℃OP】 प्रस्तुति*
        ● *षड्यंत्र भाग-2* ●

कथा एवं संपादन - *अंकित निगम*
कैलीग्राफी - *गूगल हिंदी फ़ॉन्ट्स*
चित्रांकन एवं रंगसज्जा - *जो करेगा उस पर ईश्वर की असीम अनुकम्पा होगी* 😜

नोट-: ( ) के अंदर लिखी गयी बात मन में कही जा रही है
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*'असम' के घने जंगल*,
जितने शांत और सुन्दर, उतने ही विषम और वीभत्स.....
कहीं जीवन की जंग है, तो कहीं प्रेम का वातावरण....
एक तरफ भेड़िया के नियम हैं, तो दूसरी तरफ कोबी की नृशंषता....
ये सभी चीज़ें एक साथ कार्यरत रहती हैं और जंगल का जीवन ऐसे ही चलता रहता है..... लेकिन आज.... आज कुछ अलग होने वाला है।

*कोबी*.... जंगल का जल्लाद, अद्भुत शक्तियों का मालिक, मानव शरीर में जानवर....

"कैसा मरियल हिरण मार के लाये हो हरामखोरों"
एक भेड़िये को लात मारकर कोबी ने कहा

"अब देख क्या रहे हो कम्बख्तों, जाओ अपने लिए कोई और शिकार तलाश करो.... इसमें मेरा ही भला नहीं होगा।"

तभी हवा में एक द्वार उत्पन्न होता है.....

"हाँय..... आज तो मैंने नशा भी नहीं किया है फिर मेरी आँखों को हवा में ये क्या दिख रहा है..... लगता है इस हिरण ने भांग खा रखी थी.... इन नामुराद भेड़ियों से अब ढंग का शिकार भी नहीं होता।"

उस द्वार में से ध्रुव और बुद्धिपलट बाहर आते हैं।

"लगता है की नशा बढ़ रहा है, अब तो मानव भी दिखने लगे।"

"तुम्हे हमारे साथ चलना होगा कोबी" ध्रुव ने कहा

"आप कोई देवदूत हैं क्या?? "
(लगता है इस हिरण ने जहर खा रखा था, और उसकी वजह से मैं भी.... नहीं मैं नहीं मर सकता)
"मुझे कोई नही ले जा सकता। तुम जो भी वापस जाओ।... अबे कम्बख्तों देख क्या रहे हो... टूट पड़ो"
कोबी अपने भेड़ियों को आदेश देता है और भेडिये उन दोनों को घेर लेते हैं

"रुक जाओ कोबी... और ध्रुव तुम यहाँ... आखिर बात क्या है" भेड़िया भी वहां आ पहुंचा था

"कहने सुनने का वक़्त नहीं है भेड़िया... हम कोबी को लेने आये हैं और उसे ले जाकर रहेंगे"

"ले जा कर रहेंगे से क्या मतलब... कोबी कोई चन्दन की लकड़ी नहीं जो तुम शहरी उसे जंगल से ले जाओगे... चीर डालूँगा मैं सबको (ये कहीं इस भेडिये की चाल तो नहीं ... ताकि मेरे जाने के बाद ये जेन के साथ आराम से रहे)"

"ये भेड़िया का जंगल है ध्रुव और यहाँ किसी की जबरदस्ती नहीं चलती"
" देखते हैं"
इतना बोलकर ध्रुव स्टार रोप को एक डाल पर फंसाकर बुद्धिपलट के साथ भेड़ियों के घेरे से बाहर आ गया ... बुद्धिपलट को पेड़ पर छोड़ कर झूलते हुए भेड़िया को एक किक जड़ दी

"लगता है तुम्हे बातों की नहीं लातों की भाषा समझ में आएगी ध्रुव"
भेड़िया ने ध्रुव को रोकना चाहा लेकिन उसका लचीला बदन उसकी पकड़ में न आ सका ... रोप के सहारे झूलते हुए ध्रुव ने कोबी को भी एक किक लगा दी और कोबी का गुस्सा भड़क गया

"हे भेड़िया देवता... मदद" ... गदा के प्रकट होते ही कोबी ने एक की प्रहार से उस पेड़ को ही उखाड दिया जिस पर ध्रुव झूल रहा था

ध्रुव के ज़मीन पर आते ही भेडिये उस पर टूट पड़े
"इनसे बचना होगा वरना ये मेरी हड्डियों को भी नही बख्शेंगे... जंगल के जानवरों की सहायता लेनी होगी"
ध्रुव ने एक एक कर आस पास मौजूद हर जानवर की ध्वनि निकाली लेकिन .... कोई भी जानवर न तो अपने देवता भेड़िया से उलझन चाहता था और ना ही कोबी से

"जानवरों ने तो मदद नहीं की अब दूसरा तरीका ... हाँ सिग्नल प्लेयर  "
तेज़ रोशनी से भेडिये पीछे हो गए... अब बुद्धिपलट ने नियंत्रक के वारों से भेड़ियों को साध लिया और भेड़िया पर हमला करने का आदेश दे दिया...

कोबी ने ध्रुव पर गदा का वार किया जिससे ध्रुव पीछे की ओर उछलकर बच गया

"बहुत फुदकता है रे तू... गदा का एक वार तेरी चटनी बना देगा"
"जब वो एक वार मुझे छू पाएगा तब ना"

ध्रुव कलाबाजियां खाते हुए अब तक कोबी के नाखूनों और गदा से खुद को बचाये हुए था
"ओफ.. इसकी फुर्ती गज़ब की है मैं ज्यादा देर तक बच नहीं पाऊंगा .... ये इतनी तेज़ी से गदा चला रहा है कि मैं इसके नज़दीक नहीं जा पा रहा.. बस एक बार ये पास आ जाए... "

कोबी ने अगले वार के लिए गदा उठाई और ध्रुव ने उसकी उंगलियों पर स्टार ब्लेड मारा... निशाना सटीक था और ज्यादा दूरी न होने की वजह से काफी तेज़ था ... गदा गिर गयी ... ध्रुव ने कोबी के नजदीक पहुंच कर नर्व गैस कैप्सूल फोड़ दिया ...
"ये कैसा धुँआ है ... खों खों.." अनियंत्रित कोबी बुद्धिपलट के वार से बच नहीं सका

अब तक भेड़िया, गुलाम भेड़ियों से निपट चुका था
"इसने कोबी को शायद कोई नशीली दवा सुंघाई है... इसे जल्दी रोकना होगा"

भेड़िया ने उखड़े हुए पेड़ को उठाकर ध्रुव पर फेंका... ध्रुव ने छलांग तो लगाई लेकिन पेड़ बड़ा था ... वो उसकी डालियों में उलझ गया... भेड़िया जैसे ही ध्रुव को पकड़ने के लिए नज़दीक आने लगा... पेड़ के पास आते ही ध्रुव ने कलाई से स्टार रोप उसके पैरों पर छोड़ कर उसके पैरो को बांध के घसीट लिया ... अब भेड़िया पेड़ में उलझा था और ध्रुव अब तक बाहर आ चुका था ... इससे पहले कोई कुछ और करता ... बुद्धिपलट के इशारे पर कोबी ने अपनी गदा के वार से भेड़िया को मूर्छित कर दिया
इसके बाद तीनों धनंजय के द्वार से वापस राजनगर की पहाड़ियों पर आ गए।

"पर हमें इस अड़ियल कोबी की जगह भेड़िया को अपने साथ लाना चाहिए था .... वो इससे ज्यादा बुद्धिमान भी है।" धनंजय ने मिसकिलर से कहा

"हा हा हा .... धनंजय, हमें दिमाग की नहीं ताकत की ज़रुरत है, ताकत की!!!"
धनंजय की आँखों में झांककर मिसकिलर ने अपना वाक्य पूरा किया
"*दिमाग की तो पूरी लाइब्रेरी है हमारे पास.... 'सुपर कमांडो ध्रुव'.... एक आध किताब की ज़रुरत नहीं हमें* "

एक अन्य अनजान सी जगह पर समाधी में लीन एक व्यक्ति की समाधी सहसा ही टूट जाती है और उसके गले से आवाज़ आती है
"*नहीं !!!! ये असंभव है, यह रोकना होगा *"

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"अजीब सा स्थान है, ऐसा लगता है जैसे समस्त संसार यहाँ हो कर भी नहीं है.... खामोशी का साया है, फिर भी कानों में शोर है.... कहाँ हूँ मैं? ये कौन सी जगह है?"
एक अनजान सी जगह पर खड़ा नागराज खुद से ही बात कर रहा था तभी पीछे से आवाज़ आई..... जानी पहचानी आवाज़....

"ये जीवन का अंत है... तुम्हारे जीवन का .... अब किसी को तुम्हारी आवश्यकता नहीं है।"

" 'विसर्पी' .... तुम... तुम ये क्या कह रही हो, मेरा अंत .... पर कैसे .... क्यों?"

जवाब में एक और आवाज़ गूंजी
"क्योंकि अब सत्य का समय पूरा हुआ, अब शक्तियों का विस्तार होगा और ऐसा तभी होगा जब तुम ख़त्म होगे नागराज।"

"ध्रुव, मेरे दोस्त!!.... सिर्फ मेरे होने या ना होने से सत्य का अस्तित्व नहीं है... तुम भी तो हो सत्य के रक्षक.... और भी हैं.... परमाणु, शक्ति, डोगा, तिरंगा.."

"अब हम सब अपनी शक्ति को अपने लिए इस्तमाल करेंगे.... क्योंकि हमने जीवन के असली सुख को जान लिया है.... जब सब अपने हित में लगे हैं तो हम क्यों नहीं... सत्ता उसी की होती है जिसके पास शक्ति हो"

नागराज आवाज़ की दिशा में पलटा तो वहां परमाणु, शक्ति, कोबी, तिरंगा और अन्य सुपर हीरो खड़े थे साथ ही में मिसकिलर, रोबो, नगीना, और अन्य सभी विलन भी थे।

"तुम सभी गलत राह पे जा रहे हो मित्रों... मैं रोकूँगा तुम्हे।"
नागराज ने अधीर होते हुए कहा

"अब तुम कुछ नहीं कर सकते नागराज।"

"महात्मा कालदूत आप भी!!!!!"

"नहीं .... मैं रोकूँगा.... सबको।"
ये कहकर नागराज ने अपनी नागरस्सी से सबको बांधने का प्रयास किया पर सबने एक साथ नागराज पर वार किये और नागराज वहीं पर मृतप्राय हो गया और...... और योग साधना में लीन नागराज की आँखें खुल गयीं, उसका पूरा शरीर पसीने से लथपथ था...

"ये कैसा पूर्वाभास था।"

तभी पूरा कमरा प्रकाश से भर उठा और उस प्रकाश में से एक आकृति प्रकट हुई, एक भेड़िया मुख मानव की आकृति, और एक दृढ़ आवाज़ उभरी
"ये आने वाले समय में घटने वाली घटनाओं का सार था वत्स"

(ये कौन हैं, जानवर जैसा मुख है पर सन्यासियों जैसा तेज़, कोई साधारण व्यक्ति तो नहीं हैं)
"आप कौन हैं महानुभव? मैनें आपको पहचाना नहीं"

"हम भाटिकी हैं, गुरुराज भाटिकी,  कोबी और भेड़िया के गुरु।"

"प्रणाम गुरुवर, कृपया अपनी बात विस्तार से समझाएं।"

"वत्स, आज प्रातः जब हम योग साधना में थे तो अचानक कोबी से हमारा संपर्क टूट गया, बहुत प्रयत्न के बाद भी जब हम कोबी से संपर्क नहीं स्थापित कर पाये तो हमने उसके भविष्य को झाँकने का प्रयत्न किया और हमें पता चला की कोबी और अन्य सभी शक्तिशाली योद्धा किसी गहरे षड्यंत्र के शिकार होने वाले हैं या हो चुके हैं....अब सिर्फ तुम ही इस धरती को और इन सबको इस षड्यंत्र से बचा सकते हो, और तुम इसका शिकार न हो इस लिए हमने तुम्हें ये दृश्य दिखाए।"

"पर अगर ये सारे योद्धा मिलकर मेरे विरुद्ध होंगे तो मैं तो इनके सामने वैसे ही रहूँगा जैसे हाथी के सामने चींटी।"

"अपना समस्त सामर्थ्य एकत्रित करके चींटी भी हाँथी को मात दे देती है नागराज... तुम्हे भी अपनी सभी शक्तियों को एकत्रित करके इस युद्ध को लड़ना होगा, अपनी शक्तियों को उस स्तर तक ले जाना होगा जहाँ तक तुम आजतक नहीं गए... मित्रों पर भी घातक वार करने होंगे और उन्हें बचाना भी होगा... ये युद्ध तुम्हारी परीक्षा है नागराज.... *विजयी भव* !!! "
 इन शब्दों के साथ गुरुराज भटिकी वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
और नागराज गहरी चिंता में डूबता चला गया।

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*नागमणि द्वीप* की राज्य सभा चल रही थी.... सम्राज्ञी विसर्पी नागासन(नागद्वीप का सिंघासन) पर विराजमान थी, उनके बायीं और युवराज विषांक बैठा था और उसके बाद पंच नाग अपने अपने स्थानों पर खड़े थे..... विसर्पी सभा को संबोधित कर रही थी

"राज ज्योतिषी ने अपनी गणना के आधार पर बताया है कि नागद्वीप पर कोई भयानक संकट आने वाला है... "

विसर्पी की बात पूरी न हो सकी... सभा के बीचोंबीच एक द्वार प्रकट हुआ और उसमें से आवाज़ आई
"संकट तो आ चुका है विसर्पी।"
द्वार से नगीना ने बाहर कदम रखा और अपनी बात पूरी करी
"और तुम इस संकट से नागद्वीप को नहीं बचा सकती, हाँ अगर खुद को बचाना चाहती हो तो मेरी शरण में आ जाओ।"

"वाणी पर संयम रखो नगीना वरना कुछ बोल पाने के योग्य नहीं रहोगी।"
पंचनाग एक साथ बोल उठे

इस दौरान द्वार से कोबी, परमाणु और धनंजय भी बाहर आ गये। इस बार नियंत्रक नगीना के हाथों में था क्योंकि ध्रुव को डर था की नागद्वीप में इच्छाधारी नागों के बीच कहीं बुद्धिपलट खुद ही न डर जाए।

"सैनिकों बंदी बना लो इन सबको।" विसर्पी ने आदेश दिया पर कोई भी सैनिक अपने स्थान से नहीं हिल सका.... आधे सैनिक धनंजय के स्वर्णपाश में फंसकर मूर्छित हो गए थे और आधे परमाणु रस्सी में

"प्यादों के सहारे युद्ध नही होते विसर्पी, हिम्मत है तो मुझसे लड़ो।"

*युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी।*
नगीना की ओर बढ़ते हुए पंचनागों को परमाणु और कोबी ने राज्य सभा से बाहर खींच लिया और विषांक को धनंजय ने अपने साथ उलझा लिया।

लगभग एक साथ ही धनंजय ने विषांक पर और विसर्पी ने राजदंड से नगीना पर  ऊर्जा वार किये, जहाँ विषांक ने धनंजय के वार को अपने हाथों से रोक लिया वहीँ नगीना इस वार से राज्यसभा की दीवार तोड़ते हुए बाहर जा गिरी, इस दौरान नियंत्रक भी छिटक कर दूर जा गिरा।

"आह... काफी शक्ति है इस राजदंड में और मेरा तंत्रमुण्ड अभी तक पूरा नहीं हो पाया है इसलिए मैं इस वार के असर को कम नहीं कर पायी... अब जरा संभल कर लड़ना होगा साथ ही नियंत्रक भी उठाना है।"

★ध्रुव से लड़ते वक़्त नगीना का तंत्रमुण्ड क्षतिग्रस्त हो गया था (षड्यंत्र -1)

"मेरे वार को साधारण किरण की तरह हाथ से रोक दिया!! अद्भुत"
 विषांक की क्षमता से अनजान धनंजय आश्चर्यचकित था उसने तुरंत ही स्वर्णपाश का प्रयोग किया।

"मुझे बांधना आसान नहीं महोदय।"
विषांक ने अपने हाथों में बंधे सर्प आभूषण (सोने का बना सर्प रुपी बाजूबंद) को देखा और वो उसके हाथ से निकल कर सर्प के समान स्वर्णपाश से उलझ गया

"इस बालक को कमतर नहीं आँकना चाहिए इसने कुछ देर के लिए सही पर स्वर्णपाश को रोक जरूर लिया है"

इधर अभी नागों का पलड़ा भारी था पर एक और मोर्चे पर स्थिति अलग थी

"हम पांच हैं और तुम दो ... हम तुम्हे समर्पण का अवसर देते हैं।" नागार्जुन ने चेतावनी दी तो कोबी हँसते हुए बोला

"पर मुझे तो तीन ही दिख रहे रहे हैं, इस बुड्ढे की तो उमर वैसे ही गुज़र गयी है और हडीले की हड्डियों से ज़्यादा वजन तो मेरी पूँछ का है"

कोबी के इस उपहास से क्रोधित नागदेव ने कोबी को अपनी दाढ़ी से बांध दिया और कोबी की हड्डियाँ कड़कड़ा गयीं
"अब भी बुड्ढा बोलेगा जंगली।"
कोबी ने छूटने के लिए पूरी शक्ति लगा दी पर
"मेरी दाढ़ी के बंधन सिर्फ मैं ही खोल सकता हूँ बेटे... जल्दी मर और ... छूट जा।"

अब नागार्जुन ने भी एक ही साथ कई वार कर दिए कोबी पर... परमाणु ने अपने छल्लों से बाणों का मार्ग रोक लिया मगर दो बाण फिर भी कोबी का बदन भेद गए।
"अरे.... इसके घाव तो भर गए" नागार्जुन चौंकते हुए बोला।

"तुम चिंता न करो कोबी मैं अभी इस बुड्ढे को परमाणु रस्सी से बांध देता हूँ फिर इसे तुम्हे खोलना ही होगा।"

पर परमाणु के पहले सर्पराज की गदा का प्रहार हुआ परमाणु की छाती पर, वो दूर जा गिरा और गदा वापस सर्पराज के हाथों में

"आआअह्हह्हह!!! जल्दी छुटना होगा वरना सच में मर जाऊंगा, ये तो अच्छा है की जेन नहीं है यहाँ... मुझे ऐसी हालत में देखती तो मेरा मज़ाक उड़ाती.. अरे मेरी पूँछ कब काम आएगी"
अब कोबी ने अपनी पूँछ को बढाकर नागदेव को जकड़ लिया और स्थिति बदल गयी

"अब या तो तू मुझे छोड़ या दोनों साथ मरेंगे।"

"इसकी पूँछ ने मेरे हाथों के साथ साथ गरुणदंड भी जकड़ लिया है, मुझे सहायता चाहिए"

सिंघनाग ने आगे आकर कोबी की पूँछ को खंरोचना चाहा पर जितनी तेज़ वो खरोचता उससे ज्यादा तेजी से कोबी के घाव भर जाते अंततः हारकर नागदेव को कोबी को आज़ाद करना पड़ा

परमाणु ने नागप्रेती और नागार्जुन पर atomic blast करने चाहे लेकिन नागार्जुन की फुर्ती से बाण चलते हुए उनका मार्ग अवरुद्ध कर दिया। नागप्रेती ने आगे बढ़ कर परमाणु को पकड़ लिया और उसका शरीर सोखना शुरू कर दिया।
"मैं एक बार किसी को पकड़ लूँ तो पूरा निगल कर ही छोड़ता हूँ।"

"अगर ऐसा है तो देख .... मैं गया ....
*Transmit* "
परमाणु नागप्रेती के पीछे प्रकट हुआ और अब नागप्रेती परमाणु रस्सी के शिकंजे में था।

सर्पराज अपनी गदा से कोबी पर प्रहार करता है जिससे कोबी लड़खड़ा जाता है लेकिन तुरंत ही संभल कर क्रोधित आवाज़ में कहता है
"बेटा गदा कैसे चलाते हैं ये मैं तुझे सिखाता हूँ.... *हे भेड़िया देवता... मदद* ।"
अब कोबी के हाथ में भी गदा थी... प्रलयंकारी गदा ।

इधर विसर्पी और नगीना में भी भयंकर द्वन्द चालू था
नगीना के तंत्र वारों को विसर्पी राजदंड की सहायता से फलित नहीं होने दे रही थी और शारीरिक प्रहारों में विसर्पी नगीना से उत्तम योद्धा थी .... लेकिन नगीना में कुटिलता की मात्रा अधिक थी... विसर्पी के अगला वार करने से पहले नगीना अदृश्य हो गयी ... अब वो स्थान बदल बदल कर विसर्पी पर वार कर रही थी

"तेरी चाल कभी सफल नही होगी नगीना।"
विसर्पी ने राजदण्ड हवा में उछाल दिया जो सीधे अदृश्य नगीना के पेट पर जा धंसा... अब नगीना अदृश्य होते हुए भी दृष्टिगोचर थी
"आअह्ह्ह.... ये कैसे संभव हुआ" नगीना तड़पकर कह उठी

"राजदण्ड प्राणी की हृदय गति को पहचानता है नगीना" विसर्पी के होटों पर मुस्कान और वाणी में कटाक्ष था

"विसर्पी ..... तेरा युद्ध कौशल तो उत्कृष्ट है पर तुझमें अनुभव की कमी है।"
नगीना स्वयं तो असहाय थी पर उसने अपना तंत्र प्रतिरूप बनाया जो सीधा नियंत्रक उठाकर विसर्पी पर वार करने में सफल रहा
"अब तुम मेरी सेविका हो विसर्पी"

"आज्ञा महारानी नगीना" विसर्पी ने शीश झुकाकर कहा
" राजदण्ड निकाल कर मेरे सुपुर्द करो।"
"जो आज्ञा महारानी"

इसी दौरान सभा क्षेत्र में धनंजय का अनुभव भी उसे विषांक के सम्मुख असहाय होने से रोक नहीं पा रहा था
(अदभुत बालक है ये, न जाने इसकी शक्तियों कि कोई थाह है भी या नहीं... अच्छी बात बस इतनी है कि इसे स्वयं अपनी शक्ति की सीमा नहीं पता ... ये हर प्रहार के होने के बाद उस स्तर की ही काट खोजता है और वार करता है... अगर इसे अपनी शक्तियों का अनुमान होता तो मैं कब का पराजित हो जाता।)

धनंजय ने अपने धनुष की प्रत्यंचा को खींचकर बिना किसी बाण के विषांक की ओर छोड़ा जिससे उत्पन्न तरंगों ने विषांक को एक ओर उछाल दिया धनंजय ने दोबारा प्रत्यंचा खींची

"अब नहीं महानुभव।"
विषांक का हाथ विशालकाय होकर धनंजय के सामने आ गया ... प्रत्यंचा छोड़ते ही तरंगे उस विशाल हथेली , जो कि एक कटोरी नुमा आकार ले चुकी थी, से टकराकर दोगुनी तीव्रता से धनंजय को लगी ... धनंजय दूर जा गिरा और धनुष भी उसके हाथ से गिर गया।

"इसे वश में करना असंभव है, इसे परास्त करना होगा और ये मेरा अंतिम शस्त्र है"
धनंजय ने अब स्वर्ण चक्र का उपयोग किया जोकि एक तेज़ धार चक्र था जिसके अंदर की यांत्रिकी उसे न सिर्फ तीव्र गति से घुमा रही थी अपितु उसमे तीव्र विद्युत् प्रवाह भी था
 "ये सुदर्शन चक्र का ही एक रूप है विषांक तुम इससे नहीं बच सकते।"
 
"मैं अपनी शक्तियों से अपना कवच भी बना सकता हूँ महानुभव।"
विषांक के कवच ने चक्र को उसका शरीर काटने तो नहीं दिया पर उसके शरीर को भेदने से नहीं रोक पाया ...
"आआआअह्हह्हह्ह" .... विषांक की ह्रदय विदारक चीख से पूरा नागद्वीप हिल गया.... चक्र की विद्युत ऊर्जा ने विषांक के रक्त को सुखा दिया .... लेकिन चूँकि वो नागपाशा की अमर कोशिकाओं से पैदा हुआ था इसलिए मरा नहीं ...... सिर्फ कोमा में चला गया।
इस चीख ने महात्मा कालदूत  को भी हिला दिया जो विशाला के साथ अपने जीवन के अनंत युद्ध में रत थे

पर नागदीप में ये अंतिम चित्कार नहीं थी
जहाँ एक ओर परमाणु नागार्जुन और नागदेव को विज्ञान की शक्ति से परिचय करा रहा था वहीँ कोबी अकेले ही सर्पराज और सिंहनाग पर भारी पड़ रहा था।

"ये गरुणदंड है परमाणु ये तुम्हे खा जायगा।"
गरुणदंड के मुख का आकार बढ़ने लगा ...

"पहले ये मेरे परमाणु छल्ले तो हजम करे"
परमाणु लगातार छल्ले छोड़ता रहा जब तक की गरुणदंड का मुँह भर कर बंद नहीं हो गया ... फिर एक ज़ोरदार ब्लास्ट से गरुणदंड के चीथड़े उड़ गए ... इसी के साथ परमाणु ने नागदेव को भी परमाणु रस्सी से बाँध दिया।

"इस धनुष वीर के हाथों से धनुष गिराना होगा नहीं तो ये इस तक किसी भी वार को नहीं पहुचने देगा"
परमाणु के वार इस बार नागार्जुन के धनुष पर केंद्रित थे ।

"हा हा हा .... ये अर्जुन का गांडीव है मूर्ख मानव, ये न तो नष्ट होगा और ना ही मेरे हाथों से गिरेगा।"

"गांडीव न टूटे पर इसकी डोर तो टूट सकती है ना" ... परमाणु ने धनुष की डोर पर वार किये पर नागार्जुन ने उन्हें अपने तीरों से बेकार कर दिया

"एक बार एक मानव ने ऐसा किया था ★ पर अब नहीं .... मैं किसी भी वार को डोर छूने भी नहीं दूंगा"
[★ध्रुव ऐसा कर चुका है प्रलय में]

(सीधे वारों से ना सही पर तरीका बदलने से काम हो सकता है)
*SHRINK*
परमाणु का शरीर चूहे जितना छोटा होकर तीव्र वेग से धनुष की डोर के बंधने वाले स्थान पर जा पहुंचा और तेज़ी से घूमते हुए उसने डोर खोल दी.... बिना धनुष के नागार्जुन के लिए परमाणु का एक ही punch काफी था... नागार्जुन होश की सीमा से पार चला गया।

सर्पराज गदा चलाने में निपुण तो था लेकिन उसे कोबी जितना युद्ध कौशल व् अनुभव नहीं था अतः दोनों का गदा युद्ध सर्पराज के मूर्छित हो जाने के साथ समाप्त हुआ

सिंघनाग भी आज पहली बार स्वयं से अधिक खूंखार प्रतिद्वंदी से टकराया था ... एक ओर जहाँ कोबी के घाव भी स्वतः ही भर जा रहे थे वहीं उसके पास द्वन्द के लिए गुरुराज भाटिकि की सिखाई युद्ध कला भी थी .... परिणाम स्वरूप ये लड़ाई भी कोबी ही जीता।

विजय के पश्चात् नगीना, धनंजय, परमाणु और कोबी एक स्थान पर एकत्रित हुए ही थे की वहां पर एक क्रोध भरा स्वर गूंजा
"बस बहुत हुआ.... अब नागदीप की धरा तुम सबके रक्त से लाल होगी।"

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*उसी समय राजनगर में*

जहाँ एक तरफ दुनिया से अच्छाई समाप्ति की ओर अग्रसर थी वहीं यहाँ एक माँ को अपनी दुनिया की ही कोई खबर नहीं मिल पा रही थी

" कहाँ चला गया मेरा लाल... क्या अपनी माँ की याद नहीं आती उसे।
रजनी मेहरा, I.G राजन से अपना दुःख बयां कर रही थी

सामने TV पर न्यूज़ चल रही थी
¶ *राजनगर के सुपर हीरो सुपर कमांडो ध्रुव को राजनगर से गायब हुए आज पूरे एक माह हो गया है राजनगर पुलिस और कमांडो फ़ोर्स भी ध्रुव का कोई पता नहीं लगा पा रहे हैं इस बीच खबर आई है कि कुछ दिन पहले ध्रुव को राजधानी दिल्ली में वहां के रक्षक परमाणु एवं शक्ति के साथ लड़ते हुए देखा गया था, उस दिन के बाद से परमाणु और शक्ति भी लापता हैं, प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार ये सभी हवा में ही गायब हो गए थे... एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार.....*¶¶¶¶

"शांत हो जाओ रजनी हमने ध्रुव की खोज में इंस्पेक्टर स्टील को दिल्ली भेज दिया है... वो जल्दी ही आ जाएगा"

"पता नहीं पर मेरा दिल बहुत घबरा रहा है... आप वो.. नागराज... हाँ नागराज से क्यों नहीं मिलते ... वो ढूंढ लाएगा हमारे ध्रुव को.."

"पागल मत बनो रजनी, हम उसे खोज लेंगे... मैं ऑफिस जा रहा हूँ तुम बस अपना ख्याल रखना.....(पलटकर जाते हुए खुद से कहते हैं) ये तो अच्छा है की श्वेता अभी विदेश में है वरना वो भी ..(आंसू पोंछते हुए) ... राम सिंह"
"जी साहब"
"मेमसाब का ध्यान रखना"
"जी साहब"

राजन मेहरा के जाने के बाद रजनी मेहरा बाहर आती हैं... "राम सिंह..."
"जी मेमसाब"
"गाड़ी निकालो.... हम महानगर जाएंगे"
"ल..लेकिन"
"तुमने सुना नहीं"
"अभी लाया मेमसाब"
"अपना फ़ोन मुझे देते जाओ, तुम साहब को इस बारे में कुछ नहीं बोलोगे"
"ज....जी"

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नागराज की कर्मभूमि *महानगर* जहाँ की सड़कें हमेशा वाहनों से भरी रहती हैं... आज इन सड़कों पर इन वाहनों के साथ एक उम्मीद भी दौड़ रही है ... रजनी मेहरा की उम्मीद... की यहाँ का रखवाला उनके बेटे को उनके पास ले आएगा

"नागराज कहाँ मिलेगा राम सिंह?"
"ये तो पता नहीं मैडम.. लेकिन ये भारती चैनल वाले उससे मिलवा सकते हैं ... शायद.. ऐसा कहा जाता है कि उसका इस कंपनी से कोई सम्बन्ध है।"
"ठीक है फिर वहीँ चलो।"

भारती कम्युनिकेशन में
"मैडम भारती आपसे मिलने मिसेज मेहरा आई हैं"
भारती किसी फ़ाइल को पढ़ रही थी तो बिना चेहरा ऊपर किये पूंछती है
"कौन मिसेज मेहरा?"
"मैम, मिसेज राजन मेहरा, ध्रुव की माँ"
"उन्हें तुरंत अंदर बुलाओ"
भारती चौंककर उठते हुए बोलती है

रजनी मेहरा अंदर आते ही बोलती हैं
"मुझे नागराज से मिलना है .... अभी"
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वेदाचार्य धाम में नागराज और वेदाचार्य इस समस्या पर चर्चा कर रहे हैं
"दादा जी, ध्रुव गायब है, दिल्ली में उसका परमाणु और शक्ति के साथ टकराव हुआ फिर वो दोनों भी गायब, ब्रम्हांड रक्षक फ्रीक्वेंसी पर भी कोई संपर्क नहीं हो रहा... मतलब गुरुराज भाटिकि की बात सच थी"

"मेरी गणनाएं भी यही कह रही हैं।"

"स्थिति गंभीर है, प्राप्त जानकारी के मुताबिक ध्रुव नगीना से टकराया था उसी के बाद से गायब हुआ, यानि इस वक़्त वो नगीना के अधीन कार्य कर रहा है... लगता तो असंभव है"

"नगीना सिद्ध तंत्रिका है वो ऐसा कर सकती है या हो सकता है उसने पिछली बार की तरह कोई वरदान प्राप्त किया हो★
[★नगीना गरलगंट से गुलाम बनाने वाला अंकुश प्राप्त कर चुकी है मृत्युदंड में]

"और इस बार उसने ध्रुव को या शायद अन्य सुपर हीरोज को भी अपना मोहरा बनाया है... अगर ये सच है तो दुनिया को बचाना लगभग असंभव है"

"नागराज डर रहा है .... मत भूलो कि तुम अच्छाई के पक्ष में हो... और नगीना भी तुमसे डरी हुई है तभी अब तक तुम पर कोई हमला नहीं हुआ"

"मैं नगीना से नहीं ध्रुव से डर रहा हूँ दादा जी।"
"ध्रुव से.... नाग सम्राट नागराज एक साधारण मानव से डर रहा है, एक बार तुम कहते की तुम्हे सभी सुपर हीरोज के संयुक्त होने से डर लग रहा है तो मैं मान भी लेता... पर केवल ध्रुव से..."

"मत भूलिए दादा जी की उसने अभी अभी अकेले ही शक्ति और परमाणु जैसे शक्तिशाली योद्धाओं को धूल चटाई है... पूर्व में वो मुझे भी हरा चुका है... उसका दिमाग हम सबकी हर शक्ति ये ज्यादा शक्तिशाली है... और मेरे डर का कारण सिर्फ ये नहीं है"

"फिर क्या है?"

"उसके इस खतरनाक दिमाग पे लड़ने वाले हैं ये सभी योद्धा... और अगर गुरु भाटिकि द्वारा दिखाए गए पूर्वाभास को सच मानूँ तो शायद... महात्मा कालदूत भी।"
नागराज कमरे से जाने लगा फिर कुछ सोंचकर पलटा और बोला "दादा जी आप एक काम करिए......
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कुछ देर बाद रजनी मेहरा नागराज सामने बैठी हुई अपना दुःख बता रही थी
"अब बस तुम्ही से उम्मीद है बेटा"
आज रजनी में अपनी माँ ललिता देवी की छवि को महसूस कर रहा था नागराज... उसकी आँखों में अश्रु थे ... शायद ही इस संसार में किसी ने इससे पहले कभी नागराज को इतना भाव विह्वल होते देखा था... नागराज अपनी जगह से उठ कर रजनी मेहरा के पास गया ... घुटनों पर बैठ कर उनका हाथ अपने हाथों में लिया और दृढ़ता पूर्वक बोला

"ध्रुव जहाँ पर भी है मैं उसे सही सलामत आपके पास लेकर आऊंगा माँ... ये एक बेटे का अपनी माँ को दिया वचन है... *अब स्वयं काल आए .... या कालदूत .. ध्रुव वापस आएगा* "
नागराज रजनी के चरण छूकर उन्हें राजनगर के लिए रवाना कर देता है

नागराज अभी दूर जाती हुई रजनी की कार को निहार ही रहा था कि भारती ने पीछे से नागराज के कंधे पर हाथ रखा और नागराज स्वतः ही बोल पड़ा
"ध्रुव कितना खुशनसीब है ना.... उसे हमेशा अपनी माँ का प्यार मिला पहले राधा माँ का और उनके जाने के बाद रजनी माँ का.... और एक मैं हूँ ... जो पैदा होते ही अपनी माँ के लिये पहले श्राप लाया और फिर.... मृत्यु।"

*[70s के इस इमोशनल सीन के बाद अब चलते हैं 90s के विलन्स(villains) के पास😜]*

मिसकिलर - "नगीना, परमाणु और कोबी के साथ मिलकर नागदीप पर कब्ज़ा कर लेगी, अब इससे पहले कि नागराज को पता चले उसे रस्ते से हटाना होगा..... कुछ सोचा है तुमने?"

ध्रुव- "हम्म... नागराज की मौत की जगह भी सोच ली है और.... जल्लाद भी।"
रोबो- "कौन है वो जल्लाद?"

ध्रुव- "देखते जाओ.... मैं और शक्ति महानगर जा रहे हैं।"

ध्रुव और शक्ति के जाने के बाद रोबो मिसकिलर से कहता है
"एक बात समझ में नहीं आई... तुम्हारे इस पूरे खेल में मैं कहाँ फिट होता हूँ"
"जान जाओगे रोबो... (कुटिल मुस्कान के साथ)ऐसी भी क्या जल्दी है... अभी तो बस तुम अपनी रोबो फ़ोर्स को रेडी करो"

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*महानगर का डम्पिंग यार्ड* ... अभी अभी शक्ति ने ध्रुव के साथ यहाँ पर कदम रखा था
शक्ति- क्या ये तरीका सही है?
ध्रुव- हाँ क्योंकि और किसी तरह से बुलाने पर वो सावधान हो जाएगा

"मैं यहाँ हूँ ध्रुव ... मेरे पास ही आ रहे थे ना...और मुझे ख़ुशी है की शक्ति भी तुम्हारे साथ आई है"

ध्रुव ने पलट कर देखा तो नागराज खड़ा था
"तुमने मुझे कैसे तलाश लिया नागराज"

"कुछ दिमाग मेरे पास भी है यार... मुझे पता था की अगर तुम नगीना के वश में हो तो मुझे खोजते हुए महानगर अवश्य आओगे... मेरी सारी सर्प सेना इस वक़्त सिर्फ तुम्हारी ही तलाश में लगी हुई थी"

"अगर ऐसा ही है तो शांति से हमारे साथ चलो... वरना बेकार में ही तुम्हारा और मेरा समय खराब होगा"

"ज़रूर चलूँगा मेरे दोस्त पर उससे पहले तुम्हे राजनगर चलना होगा ... मैंने तुम्हारी माँ को वचन दिया है तुम्हे वापस लाने का"
इतना कहकर नागराज ने ध्रुव और शक्ति पर अपनी सर्प रस्सी छोड़ दी

"इन बचकाने तरीकों से तुम हमें कभी नहीं रोक पाओगे नागराज"
शक्ति की ऊष्मा ने सांपो को भस्म कर दिया और उसपर अपनी खड़ग से प्रहार किया जिससे नागराज आसानी से इच्छाधारी कणो में बदल कर बच गया
ध्रुव ने भी नागराज को स्टार रोप से बंधना चाहा लेकिन नागराज सांप की तरह सरसरा कर बाहर आ गया

(इन्हें किसी भी तरह से जल्दी ही काबू में लेना होगा... नागफनी सर्पों का प्रयोग करता हूँ)
नागराज ने नागफनी सर्पों से ध्रुव को बांध दिया और शक्ति पर भी नागफनी सर्प छोड़े...
"ये देव कालजयी के नाग हैं मुझे इनसे बचना होगा"
शक्ति उस स्थान से अदृश्य हो गयी

इधर ध्रुव अभी बंधा था
"काफी तेज़ पकड़ है इनकी लेकिन ये एसिड कैप्सूल इन सांपो को तड़पा देगा और उतनी देर में मैं आज़ाद हो जाऊंगा"

शक्ति ने नागराज पर एक कबाड़ पड़ी कार फेंकी ... नागराज ने साँपों से बांधकर उसे दूसरी तरफ उछाल दिया... अबकी नागराज की कलाइयों से सांप निकले तो एक बड़े से गुच्छे के रूप में शक्ति से टकराए

"आह्ह... जल्दी कुछ सोचो ध्रुव वरना ये हम पर भारी पड़ने लगेगा"
"सबसे पहले इसके साँपों को बाहर आने से रोकना होगा"

ध्रुव ने चपलता से पास के कचरे में पड़ी दो प्लास्टिक की बोतलों को उठाया और उनका अगला सिरा स्टार ब्लेड से काटकर नागराज के सामने आया ... नागराज कुछ समझता इससे पहले वो बोतलें उसके दोनों हाथो पर थी
"शक्ति इन बोतलों पर ऊष्मा वार करो .... जल्दी"
बिना एक पल गंवाए शक्ति ने वैसा ही किया और प्लास्टिक पिघल कर नागराज की कलाई के रोम छिद्रों में चिपक गयी

"अब तुम कम से कम सर्प सैनिकों का इस्तेमाल तो नहीं कर पाओगे नागराज"
(ये सही कह रहा है ... मेरे रोम छिद्र बंद हो जाने की वजह से अब मेरे सर्प बाहर नहीं आ सकते... सबसे पहले इनमें से किसी एक को लड़ाई से बाहर करना होगा)

"इस यार्ड में मेरे काम लायक काफी चीज़ें हैं"
शक्ति ने कुछ लोहे के टुकड़ों को अस्त्रों में ढालकर नागराज पर वार किया ... नागराज को फिर काणो में बदलना पड़ा

(ये कणो में ना बदल पाए इसके लिए इसे ध्यान केंद्रित करने से रोकना होगा)
ध्रुव ने फिर से कबाड़ में अपने काम का सामान खोज लिया और शक्ति को इशारे से एक लाउड स्पीकर बनाने को कहा ....  इस स्पीकर का मुह नागराज की ओर था...
शक्ति ने फिर से नागराज पर हथियार फेंके और ध्रुव ने स्पीकर के सिरे पर रखी इलेक्ट्रॉनिक बीन बजा दी
"आह्ह.... इस ध्वनि में मैं अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा हूँ" ...
अब नागराज का शरीर भालों से बिंधा था जिनके सिरे ज़मीन में धंसे थे... शक्ति का अगला वार शायद नागराज पर अंतिम होने वाला था
शक्ति की खड़ग का वार हुआ लेकिन नागराज को छू पाने से पहले ही नागराज के नीचे की ज़मीन धंस गयी और नागराज उसमे समा गया...

"ये क्या हुआ ... किसने की नागराज की मदद"
क्रोधित शक्ति चिल्लाई

"तुमने  की शक्ति "
दूसरी तरफ से ज़मीन से बाहर निकलते नागराज ने कहा
"तुम्हारे भलों ने मेरा जितना रक्त बहाया था उससे सैंकड़ों सांप बाहर आगए और मेरे नीचे की ज़मीन खोद दी"

बाहर आकर नागराज ने पास खड़े ध्रुव पर विष फुंकार का प्रयोग किया
"तुम जानते हो नागराज कि मैं 20 मिनट तक साँस रोक सकता हूँ.. ये फुंकार मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकती"

"ये फुंकार तुम्हे बेहोश करने के लिए नहीं बल्कि कुछ पलों के लिए अँधा करने के लिए है ध्रुव"

"ओह.. सच में फुंकार की धुंध में मुझे कुछ भी दिख नहीं रहा है"

नागराज ने पहले बीन को तोडा फिर पहले से ही बाहर सर्पो को शक्ति पर वार का आदेश दिया और शक्ति ने भी पहले की तरह ही उन पर ऊष्मा वार किया ... लेकिन इस बार एक जोरदार धमाका हुआ और शक्ति घायल हो गयी... नागराज ने इस मौके का फायदा उठाते हुए शक्ति को अपनी विष फुंकार का स्वाद चखाया और वो मूर्छित हो गयी

तब तक ध्रुव की आँखें देखने योग्य हो चुकी थी
"Damn it .... मैं नागराज के शरीर से निकले हुए इन नागफनी सर्पो को कैसे भूल गया... इनकी सहायता से नागराज ध्वंसक सर्पों का वार कर पाया शक्ति पर"

"शक्ति तो गयी .... अब मान जाओ ध्रुव... अपने आप को मेरे हवाले का दो"
"मैं तुम्हे पहले भी अकेले ही हरा चूका हूँ नागराज... अब भी हरा दूंगा"
(हालाँकि नागराज अपने सांप नहीं छोड़ सकता पर शारीरिक शक्ति में भी ये मुझसे कई गुना ज्यादा है... इसका एक भी वार अगर लग गया तो मेरी तो खैर नहीं .... पक्षियों की मदद लेनी होगी)
ध्रुव की चहचहाट ने कई पक्षि इकट्ठा तो कर लिए पर वो नागराज के विष की दीवार नहीं पार कर सके
जो नागराज ने अपनी फुंकार से बनाई थी

(इसे पकड़ पाना वाकई बहुत मुश्किल है... बिना सांपो के तो और भी ज्यादा)
ध्रुव ने ज़मीन पर पड़ी शक्ति की खड़ग उठाई और नागराज की ओर उछाल दी ... पर खड़ग नागराज के सर के ऊपर से निकल गयी
(ध्रुव का निशाना कभी चूक नहीं सकता) इतना सोंचकर नागराज अपने स्थान से हट गया और उसकी जगह पर पीछे खड़ी कूड़ा उठाने वाली गाडी का एक बड़ा हिस्सा आ गिरा जो शक्ति के खड़ग ने काट दिया था
"ओफ.. बाल बाल बचा"

(नागराज दिमाग का भी इस्तेमाल कर रहा है वो इतनी आसानी से हार नहीं मानेगा)

(ये लाउड स्पीकर... ये शायद मेरी मदद करे)
नागराज ने उस स्पीकर को उठा कर ध्रुव पर फेंक दिया और ध्रुव उसमे फंस गया.... लेकिन परिस्थियाँ अभी सुधरने वाली नहीं थीं शक्ति को होश आ गया और उसने नागराज पर अपने शक्ति मुंड से प्रहार किया और नागराज के संभल पाने से पहले ध्रुव को लेकर उड़ गयी

"ये जल्दी होश में आ गई ... मुझे तीव्र विष फुंकार का इस्तेमाल करना चाहिए था... मुझे इनके पीछे जाना होगा लेकिन पहले कुछ ज़रूरी काम करना है"
नागराज ने पास में शक्ति के ऊष्मा वारों से लगी आग में हाथ डालकर अपनी कलाइयों से प्लास्टिक छुड़ाया और ध्रुव शक्ति के पीछे चल दिया।
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*हिमालय* में एक अत्यंत गुप्त स्थान पर ध्रुव और शक्ति *किरीगी* को नागराज को मारने के लिए प्रेरित कर रहे थे

"लेकिन वो तो तुम दोनों की तरह ही संसार का रक्षक है"

"नहीं किरीगी... पहले था पर अब नहीं... इस समय वो ही संसार की सबसे बड़ी समस्या है और उसे आपके अतिरिक्त शायद ही कोई हरा सके"

"हराने तक तो ठीक है ... पर मारना ... ज़रूरी है क्या"

"हाँ देव... वरना ये सृष्टि खतरे में आ जाएगी"

"पर उसे कैसे पता चलेगा की हम यहाँ हैं" शक्ति ने दबे स्वर में ध्रुव से पूछा
"उस सर्प से जो तुम्हारी खड़ग के साथ यहाँ तक आया है"
शक्ति अपनी खड़ग को ध्यान से देखती है तो उसे भी वो सर्प नज़र आता है

तभी किरीगी की गुफा में नागराज का प्रवेश होता है
"बहुत भाग लिए ध्रुव ... अब तुम्हे मेरे साथ चलना होगा"
"ध्रुव कहीं नहीं जाएगा नागराज"
"ध्रुव को तो मैं लेकर ही जाऊंगा किरीगी देव"
"तब तुम्हे मुझसे युद्ध करना होगा"

किरीगी ने अपनी यौगिक ऊर्जा के वार से नागराज को गुफा के बाहर फेंक दिया... उसके बाद किरीगी, ध्रुव और शक्ति भी बाहर आगए

"काफी सही जगह ढूंढी है मुझे मारने केलिए ध्रुव ... तुम्हे पता है की बर्फ में मेरी विष शक्तियां ज्यादा असरकारक नहीं रहती"

किरीगी , शक्ति और ध्रुव तीनों नागराज पर एक साथ टूट पड़ते हैं

(मैं इन तीनो से अकेले नहीं लड़ पाऊंगा ... और अगर ध्रुव यहाँ रहा तो वो किरीगी को मेरी कमज़ोरियाँ बताता रहेगा... इसे यहाँ से दूर भेजना होगा)

नागराज की कलाइयों से ढेर सारे सांप निकल कर ध्रुव के पास एक षट्कोण रुपी आकृति में एकत्रित होने लगे.. . वो विशेष आकार पूरा होते ही एक तेज़ बवंडर उत्पन्न हुआ और ध्रुव को अपने अंदर खींच लिया ... ध्रुव को बचाने के प्रयास में शक्ति भी उसी बवंडर में फंस गयी... थोड़ी देर बाद सब शांत हो गया और रह गए बस किरीगी और नागराज

"बता कहाँ भेज दिया तूने ध्रुव को .... बता नहीं तो अभी परलोक सिधार जाएगा।"
क्रोध में डूबे हुए किरीगी ने अपनी योग ऊर्जा से बनाए हाथों से नागराज को दबाकर पूंछा ... नागराज ने इच्छाधारी कणो में बदलकर छूटने की कोशिश की लेकिन

"आह .... ये यौगिक बंधन तो मेरे इस रूप को भी नहीं छूटने दे रहा है।"

         ★★★ *कथा जारी है भाग 3 में*


★ *क्या बच पाएगा नागराज किरीगी से*

★ *कहाँ चले गए हैं ध्रुव और शक्ति? क्या लौट पाएंगे कभी?*

★ *क्या होगा नागदीप का? नगीना का राज या फिर एक और युद्ध*

★ *किसने दी है चेतावनी कोबी, परमाणु और नगीना को*

★ *आखिर क्या चल रहा है मिसकिलर के शातिर दिमाग में*

सवाल कई हैं ... और जवाब.....
सिर्फ एक....
*इंतज़ार*
*अगले भाग का*😉

1 comments :

mai prasansha karta hu aapke blog ki aur aapki kahaniyon ki. Bahut badhiya.

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