बागवान - दिव्या शर्मा
बागवान
मुंह दिखाई की रस्म चल रही थी ,ये मेरे लिये नया माहोल था |औरते आती मुझको देखती और शगुन हाथ में रख देती सब कुछ अलग सा भाषा और रहन सहन मै शुरू से शहर में रही गांव का ये मौहोल वहां से अलग पर बनावट से दूर ,अपनी तारीफ मुझको अच्छी लग रही थी
दिल में डरभी था की क्या मै रह पाऊंगी इस मौहौल मे
ईसी उधेडबुन मे थी कि तभी कछु खुसरपुसर सुनाई दी
आ गया यहॉ भी एक औरत बोली ,चैंन नही बूढे को ,हम्म कोई और बोला खुद तो मर गई मुशिबत हमारी कर गई ,
तभी मेरे श्वसुर ने मेरे पति को आवाज लगाते हुए कमरे में उन बुजूर्ग के साथ प्रवेश किया ,सारी औरते घूँघट को ठीक करते इधर उधर हो गई ,वो बाबा मेरे पास आय और मेरे हाथ में दस का नोट डाल कर आशर्वाद दे कर चले गय ,मै सोचती रह गई की ये सब औरते आखिर उनको ऐसा कियो बोल रही थी पर मै पुछ नही पाई समय गुजर गया मै गॉंव से पति के साथ शहर आ गई ,अपनी दुनिया मे खो गई मुझको ना वो बाबा याद रहे ना वो औरते
पर एक दिन आचानक सब याद आ गया
पति ऑफिस से घर आय और दिन की तरह नही ,उदासी उनके चेहरे पर थी मै डर गई की क्या हुआ होगा
वो चुपचाप आ कर बैठ गय |
क्या हुआ है मैने पुछा
कुछ नही वो बोले
नही कुछ तो हुआ है बताओ ,मै बोली
क्या बताऊ तुम जानती ही नही किसी को भी
फिर भी मुझको जानना है बताओ
एस पर उनहोने बताया उन बाबा के बारे मे
वो बोले तुमको याद है एक बार तुमहारी मुंह दिखाई में एक बाबा आय थे ,मुझको वो सब याद आ गया ,मै बोली हां याद है पर सारी औरते उनको बुरा कियो बोल रही थी मैने पुछा इस पर जो कहानीउनहोने सुनाई वो बागबान से कम नही थी
ये कहानी एक ऐसे बूजूर्ग की जो अपनी पत्नी से बेइन्ताह प्यार करता था ,हां था ही कियोकि वो मर चुके थे
रामचन्दर यही नाम था उनका और उनकी भगवती
जब भी बाबा कही से आते तो सबसे पहले वो दादी के हाथ देखते कही काम से हाथ खराब तो नही हो गय ,कभी मायके ना जाने देते अकेले लोग हसंते उन पर ,लेकिन वो अपनी दुनिया में मस्त
समय तो तब खराब हुआ जब घर की सत्ता बच्चो के हाथ आई और माँ बाप का बटवारा हो गया
अब वो दोनो साथ ना थे कियोकि बूढे हो गय और साथ रहने की ज़रुरत नही थी ,दादी ये सहन ना कर पाई और चली गई ,दुनिया छोड कर और बाबा को अकेला कर
वो सदमा नही सह पाए दिमागी संतुलन खो दिया इसलिय उस दिन औरते उनको बोल रही थी ,बाबा अपनी भगवती को ढुंडने आय थे मै सुन रही थी और उनके दर्द को महसूस कर रही थी |
तो आज आप इतने उदास कियो ,आप तो ये सब जानते होंगे मै बोली
तब मेरे पति ने बताया की दिव्या आज बाबा कुँए मे कूद कर मर गय ़़़़़़ मै सन्न रह गई ,पर कैसे कियो
तब उनहोने जो बताया ऊसको सुन कर मै सोचती रह गई की आखिर बाबा मरे या मारा गया
वो दादी को ढूंड रहे थे और बहु से बोले की बहु भगवती को देखा ,बहु बोली मर गई कूँए मे कूद कर
इतना सुनते ही वो कुँए की और दौड पडे और कूद गय
नही बचे वो नही बचे ,ये अपने आँसू नही रोक पाय और बोले ठीक हुआ अब वो मिल लेंगे अपनी भगवती से ||
मुंह दिखाई की रस्म चल रही थी ,ये मेरे लिये नया माहोल था |औरते आती मुझको देखती और शगुन हाथ में रख देती सब कुछ अलग सा भाषा और रहन सहन मै शुरू से शहर में रही गांव का ये मौहोल वहां से अलग पर बनावट से दूर ,अपनी तारीफ मुझको अच्छी लग रही थी
दिल में डरभी था की क्या मै रह पाऊंगी इस मौहौल मे
ईसी उधेडबुन मे थी कि तभी कछु खुसरपुसर सुनाई दी
आ गया यहॉ भी एक औरत बोली ,चैंन नही बूढे को ,हम्म कोई और बोला खुद तो मर गई मुशिबत हमारी कर गई ,
तभी मेरे श्वसुर ने मेरे पति को आवाज लगाते हुए कमरे में उन बुजूर्ग के साथ प्रवेश किया ,सारी औरते घूँघट को ठीक करते इधर उधर हो गई ,वो बाबा मेरे पास आय और मेरे हाथ में दस का नोट डाल कर आशर्वाद दे कर चले गय ,मै सोचती रह गई की ये सब औरते आखिर उनको ऐसा कियो बोल रही थी पर मै पुछ नही पाई समय गुजर गया मै गॉंव से पति के साथ शहर आ गई ,अपनी दुनिया मे खो गई मुझको ना वो बाबा याद रहे ना वो औरते
पर एक दिन आचानक सब याद आ गया
पति ऑफिस से घर आय और दिन की तरह नही ,उदासी उनके चेहरे पर थी मै डर गई की क्या हुआ होगा
वो चुपचाप आ कर बैठ गय |
क्या हुआ है मैने पुछा
कुछ नही वो बोले
नही कुछ तो हुआ है बताओ ,मै बोली
क्या बताऊ तुम जानती ही नही किसी को भी
फिर भी मुझको जानना है बताओ
एस पर उनहोने बताया उन बाबा के बारे मे
वो बोले तुमको याद है एक बार तुमहारी मुंह दिखाई में एक बाबा आय थे ,मुझको वो सब याद आ गया ,मै बोली हां याद है पर सारी औरते उनको बुरा कियो बोल रही थी मैने पुछा इस पर जो कहानीउनहोने सुनाई वो बागबान से कम नही थी
ये कहानी एक ऐसे बूजूर्ग की जो अपनी पत्नी से बेइन्ताह प्यार करता था ,हां था ही कियोकि वो मर चुके थे
रामचन्दर यही नाम था उनका और उनकी भगवती
जब भी बाबा कही से आते तो सबसे पहले वो दादी के हाथ देखते कही काम से हाथ खराब तो नही हो गय ,कभी मायके ना जाने देते अकेले लोग हसंते उन पर ,लेकिन वो अपनी दुनिया में मस्त
समय तो तब खराब हुआ जब घर की सत्ता बच्चो के हाथ आई और माँ बाप का बटवारा हो गया
अब वो दोनो साथ ना थे कियोकि बूढे हो गय और साथ रहने की ज़रुरत नही थी ,दादी ये सहन ना कर पाई और चली गई ,दुनिया छोड कर और बाबा को अकेला कर
वो सदमा नही सह पाए दिमागी संतुलन खो दिया इसलिय उस दिन औरते उनको बोल रही थी ,बाबा अपनी भगवती को ढुंडने आय थे मै सुन रही थी और उनके दर्द को महसूस कर रही थी |
तो आज आप इतने उदास कियो ,आप तो ये सब जानते होंगे मै बोली
तब मेरे पति ने बताया की दिव्या आज बाबा कुँए मे कूद कर मर गय ़़़़़़ मै सन्न रह गई ,पर कैसे कियो
तब उनहोने जो बताया ऊसको सुन कर मै सोचती रह गई की आखिर बाबा मरे या मारा गया
वो दादी को ढूंड रहे थे और बहु से बोले की बहु भगवती को देखा ,बहु बोली मर गई कूँए मे कूद कर
इतना सुनते ही वो कुँए की और दौड पडे और कूद गय
नही बचे वो नही बचे ,ये अपने आँसू नही रोक पाय और बोले ठीक हुआ अब वो मिल लेंगे अपनी भगवती से ||
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