खीर (लघुकथा): मनीष मिश्रा
*लघुकथा*
*खीर*
"श्याम,
जल्दी जाओ बेटा वरना दूध ख़त्म हो जायेगा और आज 4 किलो दूध ज्यादा लाना खीर बनानी है।हर
साल दिवाली पर खीर बनती है।"
अपने
पटाखे समेटने में जुटा श्याम खीर का नाम सुनकर जल्दी से भागा। खीर उसे बहुत पसंद
थी। दूध वाले की दुकान तंग गलियों से निकल कर मुख्य सड़क के दूसरे चौराहे पर थी।
श्याम पैदल ही रोज दूध लेने वहां जाता था। सड़क पर आते ही श्याम ने एक छोटी बच्ची
को देखा जो अपनी माँ का हाथ पकडे उनींदी आँखों के साथ चल रही थी।
कुछ
दूर पर सामान ढोने वाली गाडियो के पास वो औरत और वो बच्ची रुक गई, श्याम आगे निकल गया।
श्याम
दुकान से दूध की थैली लेकर अपनी मस्ती में चलता है।वो औरत अभी भी गाडियो के पास
खड़ी थी पर अब वो बच्ची नही दिख रही। श्याम की नजरे गाडियो के पास बच्ची को खोज रही
थी। अचानक एक गाड़ी के पीछे के हिस्से में बच्ची कुछ बीनती हुई दिखती है, शायद फटी
हुई बोरियों से गिरे हुए चावल के दाने। श्याम की नजर उस औरत से मिली। दोनों ने नजर
झुका ली।
आज
दीवाली है, माँ ने खीर बनाई है। पर आज श्याम को खीर कड़वी लग रही है।
Post a Comment: